गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

मुश्किल से संभाला इस बेकाबू दिल को (=>

धड़कन थाम बैठा था आज
जब जब वो आये थे मेरे पास
मुश्किल से संभाला इस बेकाबू दिल को

वो अठखेलियाँ खेलता रहा मेरे जिस्म और जान से
में बूत सा बना रहा, अनजान था अपनी ही पहचान से
उनके थिरकते होंठो  की कशिश से
मुश्किल से संभाला इस बेकाबू दिल को

सांस तो उनकी भी उखड़ी होगी
या मेरा ही सीना गले तक आ गया
उसके बिखरें बालो का बादल
मेरे नैना को बरसा गया
मुश्किल से संभाला इस बेकाबू दिल को

मेरी मासूमियत तो देखो
दिल की बातें हंसी में टाल जाता हूँ
वो समझते है हम समझते नहीं
वो क्या जाने जज्बातों की बिसात
मुश्किल से संभाला इस बेकाबू दिल को

#हो सके तो रब्बा ये दौर फिर ना आये
मेरा संभला हुआ दिल कहीं गिर ना जाए
में कोई सन्यासी नहीं, जो हर वार तोड़ दूं
हुस्न के निशाने पर, अक्स ना छोड़ दूं

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

चंद रोज की ज़िन्दगी मौत की गोद समा गयी

चंद रोज की ज़िन्दगी मौत की गोद समा गयी
आज फैली हुयी ख्वाहिशे, एक सफ़ेद चादर में आ गयी
कोई काल की गति उसके सपनो को भी संग खा गयी
चंद रोज की ज़िन्दगी मौत की गोद समा गयी

चल रहा था वो लड़खड़ाते हुए, जमाने का बोझ डाले कंधो पर
आज उसके कंधो को भी चैन आ गया,
मौत के साथ ज़िन्दगी के बोझ निपटा गया

चंद रोज की ज़िन्दगी मौत की गोद समा गयी
चंद रोज की ज़िन्दगी मौत की गोद समा गयी

रविवार, 26 अप्रैल 2015

अंतर्मन में उलझ गया हूँ में

जो तस्वीर है तुम्हारी
बस गयी मेरी रूह में
कह सकता हूँ नहीं
रह सकता भी हूँ नहीं

अंतर्मन में उलझ गया हूँ में

तेरे नयन मुझ से अक्सर सवाल करते है
मेरे नयन है कि पलट कर कहने से डरते है
तू नैन मिला भी ले तो नजरें झुक जाती है
पल भर को तो साँसे आहें भर भर रह जाती है

अंतर्मन में उलझ गया हूँ में

शीशे सा दिल है मेरा, कैसे इसे चोर बनाऊ
कभी खुद से, तो कभी इस बैरी जग से छुपाऊ
रह रह उठती है लपटें, जो मेरे सीने में
कैसे, कब और क्यों में सब को दिखाऊ

अंतर्मन में उलझ गया हूँ में

दो घडी को मान भी जाए अगर दिल मेरा
जग की बातें, घायल कर जाती है इरादें
वो भी है कि, पल पल को शोलो सा बदलता है
अब इन अंगारो को सीने , कैसे में लगा लूँ

अंतर्मन में उलझ गया हूँ में

मेरा जिया है एक जो पल पल जलता सा है
उसका तो बस, हर वार मुझे छलता सा है
गवाही है मेरे दिल की, हर पन्ना देगा तुम्हें

अंतर्मन में उलझ गया हूँ में
अंतर्मन में उलझ गया हूँ में

# मैं कोई सितारा नहीं जो तुझे रोशन कर दूं
    उजड़े स तेरे इस दिल में, कैसे उम्मीदें भर दूं
   हो सजे तो समझ जाना, मेरी मजबूरियां
   मेरे दिल की नहीं, जालिम समाज की है ये दूरियां

सहस्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में

उदगम पावन और निश्छल
शास्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में,
किसी प्यासे का सहारा हूँ में

बढ़ी थी एक अमृत बूँद बन
जग की प्यास मिटाने को
ज्यों ही देखा, रवैया जग का
अमृत को जहर बना दिया
जिसने पिया उसको जला दिया

सहस्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में साफ़ स्वस्थ बूँद से, मलिन मिलता रहा
मुश्क़िल मे उसका अस्तित्व हो गया
पावन था मन जिसका, मलिनता में खो गया

सहस्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में किसी ने अपना पाप है धोने को मेरा आँचल पाया
कोई मिट कर , मेरी लहरो सी गोद में समाया
मेरे अक्स का दर्द मगर किसी के जहन ना आया

शास्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में

ख्वाहिश मेरी, मेरी साँसे लौटा दे ओह रब्ब के बन्दे
छोड़ दे जो, मेरे सहारे है , तेरे बेवजह के धंधे
तू तो कारोबारी हो गया, मेरा जल भिखारी हो गया
तू चैन से सो गया, मेर प्यासे का धर्म भी कहीं खो गया

सहस्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में तेरी कबरगाह नहीं, ज़िन्दगी का सरमाया हूँ में
बोझिल न कर तू मुझे, जीवनदायनी स्वरुप है मेरा
हुआ जो अंधकारमय अस्तित्व मेरा, जाने कब हो सवेरा

सहस्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में

# एक दिन कहाँ जाएगा
जब मीठा जल कड़वा हो जाएगा
वो प्रलय भरा समय, गर सोचा ना
तो जल्द सब का जीवन मिटाएगा

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

कागज की तरह मोड़ जाते हो कुछ लिखते हो और छोड़ जाते हो

कुछ लिखते हो और छोड़ जाते हो
कागज की तरह मोड़ जाते हो

संभाले नहीं थे, जो सपने संग थे संजॉय
हाथ में हाथ लिए बढ़ने से पहले
कागज की तरह मोड़ जाते हो
कुछ लिखते हो और छोड़ जाते हो

आंसुओ से भरी थी मेरी ज़िन्दगी
तुम जो दो पल की खुशिया लेकर आये
खुशिया जीने से पहले
कागज की तरह मोड़ जाते हो
कुछ लिखते हो और छोड़ जाते हो

अनजाने से हुयी गलती तो ना थी में तुम्हारी
जो भी तय थी संग की बातें थी सारी
बातों के समझने से पहले
कागज की तरह मोड़ जाते हो
कुछ लिखते हो और छोड़ जाते हो

इतना बेखबर ना बन ए ज़ालिम
ज़िन्दगी अभी बाकी है मेरी
नई शुरुवात करने से पहले
कागज की तरह मोड़ जाते हो
कुछ लिखते हो और छोड़ जाते हो

#सांसो से बांधे थे जो लम्हें
यूँ कैसे तुम तोड़ जाओगे
मुझे से तो जी चुराया तो सही
रब्ब से कैसे नजरें मिलाओगे
एक दिन फिर तड़पते हुए
खुद की नजरों से भी गिर जाओगे

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

सुबह जो आई , संग नए उद्देशय है लाई

सुबह जो आई , संग नए उद्देशय है लाई
हर कली, मंद मंद है मुस्काई
फूलो ने भी पलकें छपकाइ

सुबह जो आई , संग नए उद्देशय है लाई
हर जीव, निकला दाना पानी कमाने को
कुछ सपनो को अपना बनाने को

सुबह जो आई , संग नए उद्देशय है लाई
मोहब्बत की छटा है बिखर आई
फसलों ने भी ली है अंगड़ाई

सुबह जो आई , संग नए उद्देशय है लाई
हर जीवन ने अपनी गाडी दौड़ाई
किसी की आलस तो किसी की तेजी लाइ
सुबह जो आई , संग नए उद्देशय है लाई
सुबह जो आई , संग नए उद्देशय है लाई

कुछ नहो हो सकता हैवानो का


आज फिर शिकार हुआ उनके निशानों का
कुछ नहो हो सकता हैवानो का

इंसान फिर भी सवेदनशील होता है
हैवान तो सिर्फ हैवान ही होता है

मेरा दिल बेशक उनके कहे से रोता है
पर हैवानो पर कहाँ कोई असर होता है

ओह रब्बा॥ मुझे ना उन जैसा हैवान बनाना

वैसे ये बातें लिखना अच्छी बात नहीं
पर मुझे अंतर्मन के शुद्धिकरण के लिए लिखना पड़ता है॥

मॉफी इस करम की ए भगवन॥

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

दोहरापन विचारों का

लिखने का मन नहीं कर रहा पर लिखा नहीं तो नस नस में लावा बन दौड़ रहे खून के दौर को कम नहीं किया तो शायद नसें फट जाए।

अब बात आई की ऐसा हुआ क्या?

हुआ कुछ नहीं एक दोस्त(?) ने बहुत कुछ ज्ञान बांटा मुझे और फिर कहा ये तो कोई ख़ास बात नहीं।
पहले उस दोस्त के विचारो पर नजर डाले
उनके अनुसार महिलाओ को सम्मान मिलना चाहिए महिलाये पुरुषो से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं॥
जी बिलकुल, उत्तम विचार हम समर्थन करते है
अब उनके आज के नए विचार सुनिए
उनका मानना है गाँव में रहने वाले समुदाय सकीर्ण विचार व् शहरी समुदाय जैसे सवेदनशील नहीं होते॥
अनपढ़ और जाहिल होने के साथ वो लोग सवेदनहींन होते है। जबकि शहर के लोग पढ़े लिखे, सुशील और संस्कारी होते है।

अब मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि जो व्यक्ति समुदाय, धर्म एवम् रंग से इंसान में भेद करे वो खुद को संस्कारी और सुशील बताये तो आप् क्या समझें॥

अब समझ समझ की बात है और में किसी की समझ को नहीं बदल सकता ॥ इंद्री sdm दफ्तर में एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझ से दुर्व्यवहार किया था जिसके बारें मेने उपमंडल अधिकारी को शिकायत की थी तब उन्होंने एक जवाब दिया था
"विकास में आप को ठीक कर सकता हूँ या खुद को ठीक कर सकता हूँ पर एक बूढ़े दिमाग को ठीक नहीं कर सकता"

मतलब अगर हम अपने दिमाग सोच को एक धुरी पर टिका लेते है उनका कुछ नहीं हो सकता॥ अगर किसी समुदाय में सब अच्छे होते तब इस समाज में कोई विकृति होती ही नहीं। और सब बुरे होते तो कोई संगति भी नहीं होती।

देखिये में खुद उनकी बातों से इतना बुरा आहत हुआ कि खुद के धैर्य से रहने की बजाये एक दो विषय पर उलझ गया जबकि मेरी प्रकृति सुनने की है। पलट कर जवाब देना मुझे शोभा नहीं देता।। मेरी रब्ब से एक ही प्रार्थना है मुझे सन्मति प्रदान करें।। ताकि में किसी का भी अहित ना कर सकुं।। बाकि कोई जैसा भी हो उसकी प्रकृति उसके सिवा और कोई नहीं बदल सकता।।
बहुत कुछ लिखना था पर ओम चोपड़ा से मेरा फ़ोन रखना बर्दाश्त नहीं हो रहा॥

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

फूहड़ गाना:- ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल

ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल

सुबह शाम मेरी हालत हुयी क्रिटिकल
ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल
ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल

बिना तेरे मौसम भी नही लगता ओवेसम औवेसम
मुझे तो खालिश करता है बारिश का मौसम
ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल
ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल

सांसो का भी हुआ जाता है ब्रेकअप ब्रेकअप
पर तू है की नजर आता तुझे मेकअप मेकअप

ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल
ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल

वनीला, स्ट्रॉबेरी और जाने कितने फ्लेवर में तेरे लिए लाया
अक्सर मेने फाइव स्टार में , तुझको लंच करवाया

ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल
ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल

स्वीट बन जा ब्यूटीफुल
लाइफ हुयी क्रिटिकल
ओह ब्यूटीफुल तू है मेरे लिए फ्रुईटीफुल

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

कुछ इस तरह जूझती ज़िन्दगी एक बड़े हस्पताल में

6 बाय 3 का बिस्तर पर
एक 5 फ़ीट का बूढ़ा कंकाल
दमा और दम, दोनों है बेहाल
कुछ इस तरह जूझती ज़िन्दगी
एक बड़े हस्पताल में

जान फुंकती है कुछ दवा के नाम का जहर
पल दो पल की देरी, फिर वो ही बुरा हाल
मरीज के परिवार को भी , जी का जंजाल
कुछ इस तरह जूझती ज़िन्दगी
एक बड़े हस्पताल में

पूछे कोई बीमारी के नाम पर, चार सुनहरे नाम
इन्फेक्शन, टाइफाइड, मलेरिया और निमोनिया
मालूम हो कर भी, ना कोई होश ना कोई आराम
कुछ इस तरह जूझती ज़िन्दगी
एक बड़े हस्पताल में

मेरे घर की रोटी चलती रहे,
बेशक किसी की हड्डिया जलती रहे
बीमारियां यूँ ही, जिस्म में पलती रहे
कोर्स है मेरा चार दिन का, पांचवे दिन की गारन्टी नहीं
पूरी फीस के सिवा, मरीज की लाइबलिटी नहीं
कुछ इस तरह जूझती ज़िन्दगी
एक बड़े हस्पताल में

चंद साँसे ले, कोई चला जाएगा
फिर क्या हुआ, कोई चला गया
कल और कोई संभल ना पायेगा
फिर चलता हुआ, एक शख्स आएगा
मेरा धंधा फिर से चमक जाएगा
कुछ इस तरह जूझती ज़िन्दगी
एक बड़े हस्पताल में

# कारोबार जरूरी है पर दूसरे के जिस्म का ठीक नहीं
   धंधा वेश्या भी करती है, ज़िन्दगी लेने से वो भी डरती है
   कब तक चिताओ पर , यूँ रोटिया बना कर खायेगा
   एक दिन खुद तू भी, इस अग्नि में भस्म पायेगा
   बाकि सिर्फ इस जहाँ में, तेरा गुनाह किसी को रुलाएगा।।
 
नोट:- एक दोस्त के पिता को पिछले एक महीने में डॉक्टर को चार बार दिखाया, हर बार नया मर्ज बताया॥ पर कभी उसका इलाज ना हो पाया।। इस सन्दर्भ प्रस्तुत है ये ब्लॉग।। 

आदत हो गयी उनको अब मेरे दिए दर्द सहने की

आदत हो गयी उनको अब मेरे दिए दर्द सहने की
जरुरत बाकी नहीं रही, कोई लफ्ज़ कहने की

दर्द का घूँट पीकर, गला उसका भर आता है
कुछ आँखों के सहारे तो कुछ सिसकियों से
वो अपना गम ए इजहार कर जाते है
आदत हो गयी उनको अब मेरे दिए दर्द सहने की

फ़लसफ़ा समझ से बाहर है उनकी भी और मेरे भी
क्यों घट जाता है जो, दिल ए इनकार होता है
यहाँ नफरत का मतलब भी, ढेर सा प्यार होता है
आदत हो गयी उनको अब मेरे दिए दर्द सहने की

घंटो का उनका इन्तजार, तन्हा दिल का खुमार
आता है जब वो तो, प्यार भी उमड़े बेशुमार
बस एक इन होंठो से, जाहिर नहीं होता इकरार
आदत हो गयी उनको अब मेरे दिए दर्द सहने की

उम्र गुजर जाती है, एक रिश्ता जोड़ने को
एक लम्हा भारी होता है, दिल तोड़ने को
में बेवजह यूँ, कभी कोई तक़रार नहीं करता
आदत हो गयी उको अब मेरे दिए दर्द सहने की

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

कोई अर्ज पूछे तो कोई मर्ज़

नाकाबिल हूँ में अपना दर्द बताने में
होंसला नहीं । ख्वाहिश जताने में
कोई अर्ज पूछे तो कोई मर्ज़

अर्ज लिखने को दिल करता है
तो मर्ज आड़े आ जाता है
मर्ज़ जाहिर करता हूँ
कोई अर्ज लगा बैठता है
कोई अर्ज पूछे तो कोई मर्ज़

खामियां नजर आती है उनको मेरे शुकराने में
ढूंढते है कसीदे, मेरे थोडा मुस्कराने में
नजर ना आया उनसे हंसीन दोस्त ज़माने में
कोई अर्ज पूछे तो कोई मर्ज़

सुबह उनका नजाकत से वो सलाम
मिलता है मेरी रूह को, सकूँ सा आराम
सुनकर उनके होंठो पर, नाचीज का नाम
कोई अर्ज पूछे तो कोई मर्ज़

पसंद आते ना हो उनको बेशक शब्द हमारें
पर खूब लूटते है हमारी आँखों से वो नजारें
बस एक तलाश होती कि कब हम उनको पुकारें
कोई अर्ज पूछे तो कोई मर्ज़

मेरी नादानियों को अर्ज समझना
हो सके तो मर्ज समझ ना दिल से लगाना
हो कोई शिकवा भी अगर तुम्हें मेरे दोस्त
रूठ जाना, मगर दोस्त को ना ठुकराना
कोई अर्ज पूछे तो कोई मर्ज़

बुझ गया मेरा मन

जब से उनसे हुयी अनबन
बुझ गया मेरा मन

बोझिल सी नजरें मेरी
उसको निहारती है
उसकी नज़रें जाने
किसको पुकारती है

हक़ जताना मुझे आता नहीं
मायूसी का चेहरा उसे भाता नहीं
वो हवाओ से बातें करता है
मेरा दिल जमीं पर ही चला करता है

वो बारिश की बूंदों सा मुझे घायल करता है
मेरा हाल उस ज़ख़्मी सा जो मरहम से भी डरता है

जारी है मेरे दिल का बैठ जाना
उनका मुस्करा कर निकल जाना
तन्हाइयो में उनके नाम से
सिसकियां निकल जाना

कोई लब से झूठा कर देता है उनका नाम
जाने क्यों बदन मेरा , जल जाता है

बहुत बेताबी है मेरे, अक्स को खबर भी नहीं
जो फैलता है मेरी रूह, कोई ज़हर तो नहीं

मीठा है उनका, दिल को बहलाना
सुर्ख बढ़ा है, नजरों से ओझल हो जाना

में पल पल उसकी राह ताकता हूँ
वो है कि ..................

राहें बदल जाता है

मेरी साँसों के तार

मेरी साँसों के तार
कुछ तो उधार दें
खुद पर नहीं
मेरी ज़िन्दगी पर वार दे

मेरी साँसों के तार

बाँध तू बैठा कितने चैन और सकूँ से
में बिन पर पंछी सा, उड़ान भरता हूँ
हर लम्हा, हर योजन, याद करता हूँ

मेरी साँसों के तार

जोड़ दे गर तू खुद की साँसों से
बुझते चिलमन में जान फूंक दें
जहाँ हो प्यार की बारिश
पोखर कभी नहीं सूखते है

मेरे साँसों के तार

झिलमिल ना हो तू मेरे सितारे
तेरे लिए जाने कितने हीरे मोती है वारे
साहा भी तेरे तों बगैर
साँप नेवले का बैर

मेरी साँसों के तार

अपनी सीने से उतार ले
कीमत ना सही उधार ले
पर मेरे उजड़े चमन को
अपनी बगिया सा संवार ले

#मेरी साँसों के तार, तेरी साँसों से मिला दें॥
   इस अँधेरे दिल को भी तू जगमग सा बना दे॥

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

जमकर बरसा हूँ आज

में अक्सर इतना बुरा नहीं होता
जितना आज हुआ हूँ
शायद ज़िन्दगी में इतनी दुविधा के कारन ऐसा हुआ
पूरी ज़िन्दगी मेने ऐसा करम आज तक नहीं किया
जो आज किया, जितना जहर था सीने में उतार डाला
बहुत तक़लीफ़ थी इसलिए
या आप ये भी कह सकते हो
बहुत कमजोर हूँ इसलिए
मुझे खुद उम्मीद नहीं थी
में इस कदर कर जाऊंगा
जो सुलझाता था ज़िन्दगी औरो की
खुद उलझ गया है इस अंधे संसार में
मुझे उन सब से क्षमा की जरुरत है
जिन सब को मुझ से ढेर सारी उम्मीदें है

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

हस्पताल:-जिन्दा लाशों का महल

अगर आप समझते है की दुनिया में कोई दुःख दर्द नहीं है। सब स्वर्ग से संसार में ख़ुशी ख़ुशी रहते है तो आप एक बार हस्पताल देख लीजिये आप का नजरिया पूरी तरह से बदल जायेगा। यहाँ इतने दुखी है लोग आप को दुःख ही संसार नजर आएगा। हर कोई नयी पीड़ा नए ज़ख्म से परेशान है। एक दो दिन से नहीं बरसो पुराने मर्ज यहाँ मिल जायेंगे। हर उम्र हर रंग हर धर्म का मिल जायेगा।
आज बैसाखी का त्यौहार है लोग नयी फसल की खुशिया मना रहे है और ये लोग पुराने दर्द से कराह रहे है। दुःख में जीने का नजरिया बदलने के सिवा आप कोई मदद नहीं कर सकते। आप सिर्फ मूक बने रह देख सकते है शायद उस से ज्यादा दर्द आप महसूस कर रहे हो। पर आप की पीड़ा कोई नहीं जान सकता।
अभी तो 11 बजे है जाने पूरा दिन कौन से रंग दिखायेगा।।

रविवार, 12 अप्रैल 2015

जब से वो जान गए कीमत मेरे जज्बातों की

जब से वो जान गए कीमत मेरे जज्बातों की
वजन आ गया उनकी बात में

दो मीठे बोल से खरीद मुझे
बंद कर दिया अपनी तिज़ोरी
क़ीमत थी जो मेरी, उसकी आदत पुरानी
इतनी सस्ती हो जो, उसकी कीमत किसने जानी
जब से वो जान गए कीमत मेरे जज्बातों की

हरक़त होती मुझे तो वो कुछ मीठे बोल ले आता है
मेरी उठती आवाज को अपनी औकात दिखा जाता है
जब से वो जान गए कीमत मेरे जज्बातों की

मासूमियत का भी क्या मजाक है उसने बनाया
हर जर्रे को कर्ज़दार बना, खुद का नाम चमकाया
जब से वो जान गए कीमत मेरे जज्बातों की

हंसी को मेरी, है जब से उसने चुराया
मेरा रोने का अधिकार भी है लुटाया
जब से वो जान गए कीमत मेरे जज्बातों की

नस नस मेरी को, इतना है कमज़ोर किया
हर छोटी बात पर, धड़कता है मोरा जिया
जब से वो जान गए कीमत मेरे जज्बातों की

हैरान होते है लोग भी मेरे इस दाम पर
हँसते है कुछ इस तरह वो भी मेरे नाम पर
जब से वो जान गए कीमत मेरे जज्बातों की

#इल्तजा है तुझ से किसी और के ना ये दाम लगाना
जीते जी ना किसी शख्स को, मोहब्बत का गुलाम बनाना

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

बारिश॥बर्बादी॥बर्बरता॥

रोज की ये बारिश की बर्बरता सिर्फ बर्बादी के सिवा कुछ नहीं दे सकती। इसने साबित कर दिया की आवशयकता से अधिक कोई भी वस्तु हो जीवन में बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं दे सकती।

किसान रब्ब को निहारता है तो कभी अपनी फसल को
उसके पास 6 महीने की म्हणत को पानी में बहा दिया इस बेरहम कुदरत ने,

रोटी को मोहताज हो गया वो किसान
जिसने तुम्हारे घर भरे धन्य धान
कुछ तो सोच उस बारे ए इंसान

बदलती फ़िज़ा ने शिकंज बढ़ा दी मस्तक की
इस बरस और दो चार झुर्रियां पढ़ गयी

दाना दाना लूट रहा है मेरी बगिया का
कोई पगड़ी संभालता तो कोई डबड़ी

गाडी घोडा तो दूर की बात है
किसान का तो हर दिन अँधेरी रात है

चमक देखि बस उजड़े खलिहानों में
या फिर आसमां के गरजते बादलों में

दर्द मेरा कोई सुन कर नहीं जाता
बस हँसता है और मुस्कराता है

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं।।

हर कोई तांक जाता है
जो देखे वो ही झाँक जाता है
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

लाचारी और बेबसी का कोई ठिकाना नहीं
जिसे देखो हर पांचवे के पास आशियाना नहीं
गरीबी का बेशक कोई पैमाना, नहीं पर में हूँ
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

अस्मत मेरी खुलेआम , बेआबरू हो जाती है
राह चलते को नीलामी की वस्तु नजर आती है
पर्दा में करू किस किस हैवान से
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

कह खुश हो जाता है मोरा जिया
सारा जहाँ मेरा आँगन है कोई सीमा जो नहीं
पर कोई भी दुतकार दुत्कार चला जाता है
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

रोती अंखिया अक्सर, सितारों के नीचे
जो घूर जाता था भरी दोपहर
आंसू उसे नजर आते नहीं
एक जानवर है जो पास आने पर घबराते नहीं
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

लाज शर्म मुझे भी आती है
आबरू मेरी भी घबराती है
अँखिया ज़माने की मुझे नोच खाती है
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

मौका मौका मौका

हर कोई इस मौके की तालाश में रहता है कि कब कैसे किस का तमाशा बनाया जा सके। ये किसी एक की समस्या नहीं अधिकतर भारतीयो को दुसरो का मजाक बनाने में ख़ुशी मिलती है जब खुद पर बात आये तब उन्हें सारी दुनिया बुरी नजर आती है।

अब आजकल सारा दफ्तर जाने क्यों मेरे पीछे पड़ा हुआ है सारा दिन अनर्गल बातें बनाते है मेरे बारे में, जैसे मेने उन लोगो का कुछ चुरा लिया हो। ऐसा हाल जो लोग कल तक आप के शुभचिंतक थे आज आप को हर वक़्त ताने मारते नजर आएंगे।

बहुत कोशिश करता हूँ सब की बातों को अनसुना करने की आखिर दिल तो दिल है कहीं ना कहीं तो टीस उठ ही जाती है। मेरी सबसे बड़ी खामी जल्दी विश्वास करना है और आजकल ज़माने में कोई विश्वास के लायक रहा ही ना हो। मेरा तो इस जन्म में कुछ नहीं हो सकता, ना में अपनी प्रकृति बदल सकता हूँ और ना दुनिया को।

सिवाए यूँ लिख कर जहर निकालने के सिवा कोई विक्लप नहीं बचता।

मेरी दफ्तर के सभी दोस्तों से विनती है, मेरी तरफ यूँ गुनाह भरी नजरो से ना देखे में कोई गुनहगार नहीं।।

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

चल पड़े पिया संग पतंग बनके

निकले थे वो आज बन ठन के
चल पड़े पिया संग पतंग बनके

डोर से बंधी थी साँसे उनकी
चमक उठी थी आज कानो की झुमकी

रास्ते भी रुक गए थे उनके आज
भूल बैठे ये दुनिया और समाज
चल पड़े पिया संग पतंग बनके

मंद मंद चलते हुए भी पाज़ेब है खनके
सोना सा चमक उठ, गले के मणके
सोने यार दे नाल, चूड़िया भी खनके
चल पड़े पिया संग पतंग बनके

मिट गयी जो थी बरसो की दूरियाँ
खत्म हो गयी है आज मजबूरियां
आँखों का काजल भी है दमके
चल पड़े पिया संग पतंग बनके

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

गुनाहगार बन गया हूँ में तेरा

आज कुछ इस कदर हुआ है हशर मेरा
गुनाहगार बन गया हूँ तेरा

लफ़ज़ छोटे पड़ गए , तेरे ज़ख्मो के आगे
चीख बन शोर, सीने को चीर जाता है
अधीर् हुआ जाता है मन मेरा
गुनाहगार बन गया हूँ तेरा

माफ़ी नहीं कोई हिंसक प्रहार की
कुदरत कायदों में भी सुनवाई  नहीं गुहार की
मेरे कर्मो से , किसी को मिला जो आज अँधेरा
गुनाहगार बन गया हूँ तेरा

समाज ने भी उड़ाई, इस कृत्य की जो खिल्ली
आस पड़ोस सब की नजर, कचोट रही थी मुझको
गुनाहगार बन गया हूँ तेरा

कोई पहली बार ना था जो माफ़ हो जाता
मेरा खुद का जमीर, मुझे है खा रहा जो
गुनाहगार बन गया हूँ तेरा

रब्बा तूने क्यों मेरा, ह्रदय पत्थर सा है बनाया
मेरा मन, फूलो की कोमलता समझ ना पाया
जाने अनजाने , नफ़रत ना आ मुझे है घेरा
गुनाहगार बन गया हूँ तेरा

# शुक्रिया सहकर्मियों एहसास जो दिलाते हो तुम
    मेरे बुरे कर्मो को, अच्छे से आइना दिखाते हो तुम

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है
मेरे कोरे दामन पर, कुछ दाग छिड़क जाती है

नसीब तो देखो इस बदनसीब दामन का
सीरत मेरी, फिर उजला कर जाती है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

जितना रहो दूर, इन समाज के धब्बों से
ये मुड़ मुड़ कर आते है दामन भिगो जाते है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

नफरत का दौर इस जहन में, ये कड़वाहट लाती है
मेरी पीठ थपथपा कर, हैसियत मेरी दांव लगाते है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

मेरी भली सी ज़िंदगी, बुराई घोल दी जाती है
हँसते चेहरे पर, उदासी पोत दी जाती है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

किसी अपने दोस्त के द्वारा, आप की चादर मैली की जाती है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

कड़वे शब्द बोलता हूँ