सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

ए दिल है मुश्किल

ख्वाहिशों की बिसात
मुझे उसकी
उसे किसकी
किसको जाने किसकी
ए दिल है मुश्किल

मिला सकूँ नही
ना मुझे
ना उसको
ना किसी को
ए दिल है मुश्क़िल

दोस्ती थी
या प्यार
वफ़ा थी कि
बेवफा यार
ए दिल है मुश्क़िल

हर कोई था चाह में
किसी की परवाह में
खो गया था इश्क़ की राह में
ए दिल है मुश्क़िल

#
एक तरफ़ की
इबादत हो या मोहब्बत
ख़ुदा से हो खुदा नहीं
महबूबा से हो महबूबा नहीं
बस है तो दिल ए मुश्क़िल

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

मुश्किलों से लिखी मेरी कहानी:- किसी मुश्किल से

कदम चलती हूँ
लड़खड़ा जाती हूँ
किसी मुश्किल से

बहुत संजोया हर रिशतें को
हर किरदार बखूबी निभाया
दो पल हुई न खुशियां
कि घिर गई
किसी मुश्किल से

टूटती रहती हूँ
फिर भी मुस्कराती हूँ
बेबसी के लम्हों से
खुद को छुपाती हूँ
ये सोच की खो न जाऊ
किसी मुश्किल से

आजमाइश करती रही ज़िन्दगी
मैं नुमाइश बन रह गई ताउम्र
गाँठती रही डोर फिर टूट गई
किसी मुश्किल से

#
मुश्किलों से लिखी मेरी कहानी
अब खुशियों से आँसू आ जाते है
हम गम तो बर्दाश्त कर लेते है
खुशियों से घबरा जाते है।।

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

कंचन करनाल बनाने का

कंचन करनाल बनाने का बीड़ा हमने उठाया है
गाँव गाँव स्वच्छता का दीपक जलाया है
खुले में शौच मुक्त  का सपना सजाया है
कंचन करनाल .........2

हर गली मोहल्ले में जाकर, लोगो को स्वच्छता सन्देश सुनाया है
खुलें में शौच से होने वाली बीमारियों से चेताया है
कंचन करनाल  ..........2

निगरानी समितियों ने ठीकरी पहरा लगाया है
गाँव के हर चौन्क पर सुबह शाम का डेरा जमाया है
लोगों को खुले में शौच रोकनेे का संकल्प निभाया है
कंचन करनाल ......2

पंच हो या सरपंच
आंगनवाड़ी वर्कर हो या आशा वर्कर
नंबरदार हो या चौकीदार
स्वच्छता के बने है सब पहरेदार
सब मिलकर बदल रहे गाँव की तस्वीर
कंचन करनाल ......2

नन्हें सिपाहियों ने भी, स्वच्छता डोर थामी है
स्वच्छता रैली कर-कर सब को है बतलाया
खुलें में शौच ने मेरे गाँव का मान है घटाया
कंचन करनाल .......2

गाँव के हर घर बनवाया  है शौचालय
जब से चली मुहीम, गाँव हुआ देवालय
शपथ ले हर जन, खुलें में शौच से बदले मन
कंचन करनाल का .....2

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

खाली सा है हो गया मन मेरा

कभी कुछ चाहत
तो कभी कुछ राहत
खाली सा हो गया मन मेरा

ना ज़िन्दगी से आस
ना किसी पर विश्वास
बस कट रही है तिनको में
बिखर कर ज़िन्दगी
खाली सा हो गया मन मेरा

कोई मंजिल ही हमें ढूंढ ले
हम तो है कि रास्ते ही भूल गए
अब नहीं रहा हमें जिंदगी विश्वास तेरा
खाली सा हो गया मन मेरा

बशर्ते हो गयी मेरी अधूरी हर कहानी
मुझे जिन्दा रहना का आज भी शौक है
मेरे हर कदम पर इस दुनिया की रोक है
खाली सा हो गया मन मेरा .....2

#मुझे भी रौशनी दे
मेरी ज़िंदगी ओझल सी है
फूलों से जब भी दोस्ती की
काँटो ने हमें बर्बरता से छीला है

रविवार, 9 अक्तूबर 2016

स्वार्थी मानव मन

जीवन जीना सृष्टि की महत्वपूर्ण व् प्राथमिक कला है। जीने को सभी जीवन जी रहे है, पर मैने इतना महसूस किया कि अक्सर हम अपनी इच्छाओँ की पूर्ति ना होने पर इतने क्रोधित अथार्थ स्वयं में समाहित हो जाते है। निज हित के चलते हम विवेकहीन हो जाते है। जीवन के रस में क्रोध व् कुंठा रूपी जहर घोल देते है। ऐसे वक़्त पर समान्यता यह भी देखा गया है कि हम समाज से अलग पड़ जाते है। इस समय से गुजरना पीड़ादायक होता है एक तो आपको इच्छाओं की पूरा ना होने की पीड़ा ऊपर से समाज का आप के प्रति रवैया, इन सबसे निकलने का एकमात्र उपाय चिंतन है जोकि विभिन्न पहलुओं पर होना चाहिए क्योंकि निज हित में तो हम चिन्तन कर ही रहे थे पर हम ने उन पहलुओं पर विचार नहीं किया जो अन्य के हितों से जुड़े थे।
उदाहरणतयः एक बालक जिद्द करता है तो उसकी समझ केवल उस जिद्द को पूरा करने के सिवा उस से होने वाले परिणामो पर नहीं होती। वो चिंगारी की तरफ भी आकर्षित हो उसे पकड़ने की कोशिश करेगा और उसे उस पीड़ा को अनुभव नहीं होता जो चिंगारी उसे दे सकती है।
ख़ुद के जीवन को हम बिना समाज के प्रभाव नहीं जी सकते क्योंकि उत्तपत्ति का आधार समाज है। वैसे जीवन में कभी गौर किया कि हम जहाँ भी चले जाए नई जगह हम दोस्त क्यों बना लेते है। गौर कीजिए और चिंतन जीवन का सार्थक मन्त्र मिल जायेगा।।

कड़वे शब्द बोलता हूँ