बुधवार, 1 अप्रैल 2015

नफ़रत मेरी तेरी नादानियां

उनको शिकायत रहती हम से क्यों नफरत करते हो
मोहब्बत आती नहीं कि किसी का होने से डरते हो

खवाब जब आँखों से देख लेते हो तुम
फिर क्यों, खुशिया अपनाते नहीं
कदम ज़िन्दगी हर रोज बढाती नहीं
मोहब्बत हर रोज हमे बुलाती नहीं

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क्यों नादानी भरी बातें करते हो
आग से खेलने को कहते हो
खुद तो दूर दूर रहते हो
हमे क़दम बढ़ाने को कहते हो

खुशियां महसूस अब होती नहीं
जब से अँखियाँ भी रोटी नहीं
तू बेशक अरमान को हवा दें
पर अब हसरत की ख़्वाहिश होती नहीं

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कड़वे शब्द बोलता हूँ