मंगलवार, 30 जून 2015

कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

भीड़ तो है बहुत, कहने को कोई अपना नहीं
ज़िन्दगी ऐसा कुछ मेला हो गया
कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

चंद दोस्त बनाये थे इस जहाँ में
हर कोई मतलब निकलते ही चल दिया
ठगा सा रह गया दिल, आन पड़ी हो मुश्किल
कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

भरोसे के काबिल ना रही हो जब दुनिया
भला इंसान भी बुरा नजर आता है
कोई नया हाथ भी बढ़ा दे अगर, ज़ख्म रो पड़ते है
कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

दिल फिर भी दुआ करता है कि वो दोस्त कामयाब हो
जो मुझे छोड़ कर चले गए
कुछ यूँ बदला वक़्त की आज फिर अकेला हो गया

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अकेला हूँ बेशक, ज़ख्म अब भी साथ है
कुछ रोने के काम आते है, कुछ कुरेदने के

सोमवार, 29 जून 2015

प्रंशसक होते है सितारे

हर रोज लिखता हूँ एक कहानी
आज कुछ ख़ास उसके लिए
जो प्रंशसक (झाँसी की रानी) है मेरी दीवानी

मेरा हर शब्द उसको प्यारा है
वो मेरे लिए एक ख़ास सितारा है

उसकी प्रेरणा से मेरा कलम यूँ मचलता है
कुछ लिखने को,

मायूसी होती है गर वो मेरी रचना पढ़ ना पाए
लिखे हुए शब्द , देख उसको मोती सा चमक जाएं

वो खुद का अक्स ढूंढता है मेरे शब्दों के पैमाने में
मैं खूब सजाता हूँ उसको, शब्द रस के मयखानों में

मीलों दूर रहता है वो, हौंसला बन पास आ जाता है
अपनी हल्की सी मुस्कान से, मेरा दिल छु जाता है

रब्बा सलामत रखना मेरे इस दीवाने को
कभी रुस्वा ना करना, शब्दों के मयखाने को

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तारीफ तेरी में दो शब्द जो कह ना पाया
समझना इतना,
मेरी हर तारीफ में तेरी तारीफ़ का है साया

शनिवार, 27 जून 2015

मौसम बदलते है तू बदला तो क्या हुआ

कभी गर्म तो कभी सर्द हवा सा जब
मौसम बदलते है तू बदला तो क्या हुआ

अक्स मेरा लूट, वो चल पड़ा है अलग राह
मेरी राह उस तक थी तेरी राह बाकि थी जब 2
मौसम बदलते है तू बदला तो क्या हुआ

निगाहों ने फ़रेब किया हो जब, जुबान का शिकवा कौन करे
मोहब्बत में तो हम मरे थे उनकी तो ना थी जब 2
मौसम बदलते है तू बदला तो क्या हुआ

समन्दर सा गोते खाता था मन मेरा, जब उन्हें देख कर
अब वो बेवफा क्यों हुआ जब 2
मौसम बदलते है तू बदला तो क्या हुआ

किसको सुनाओ अपनी दिल की दास्ताँ
रोक था मुझे जग ने, उसके पीछे चल पड़ा था जब 2
मौसम बदलते है तू बदला तो क्या हुआ

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डूबा में था मैं इश्क़ में, पिघलेगा तू क्यों

शुक्रवार, 26 जून 2015

आप की कौन सी क्लास् है?

एक दोस्त ने आज जिक्र किया कुछ इस तरह कि अफ़सोस भी हुआ उनकी सोच पर और हैरानी भी। की आज भी लोग इतने शिक्षित होकर अंग्रेजी भाषा के ज्ञान से व्यक्ति की हैसियत और अस्तित्व को नापते है। अंग्रेजो के ज़माने में होता था चन्द हिंदुस्तानी उनकी खुशमद में अंग्रेजी सिख अन्य हिन्दुस्तानियो को निम्न वर्ग दर्शाते थे। आज अंग्रेजो के जाने के 70 बरस पश्चात भी इस तरह के लोगो पर अफ़सोस ना करूँ तो क्या कहूँ॥
हाँ अगर उनका कहना होता कि हमारे अथार्त् गांव के लोगो का जीवन शैली इतनी साफ़ सुथरी व सफाई के प्रति जागरूकता कम है तो समझ में आता। क्योंकि भारत वर्ष में अभी भी एक बड़ा वर्ग जीवन शैली निम्न स्तर की जी रहा है। उनके खाने में ना तो पोषक तत्व है और ना ही बनाने के संसाधनों में सफाई जिसके प्रति लोगो को जागरूक किया जाना आवशयक है।

पर इसका मतलब ये नहीं आप उस वर्ग को निम्न वर्ग की श्रेणी में लाये। और एक तरह से ये उनके खुद के परिवार के लिए गाली समान है क्योंकि कुछ पीढ़ी पहले हर परिवार गाँव से ताल्लुक रखता था। शहरी जीवन शैली पूर्णत आये अभी एक पीढ़ी ही गुजरी है। क्या उसके परिवार व् रिश्तेदार भी निम्न वर्ग के है और उनसे उनका कोई नाता नहीं। ऐसी बातें अक्सर उन लोगो को करते सुना है जिनके पास अचानक पैसा आया हो अन्यथा जिस पेड़ पर जितने फल होते है वो उतना झुका होता है।

मेरे व्यक्तव अच्छे है बुरे में नहीं जानता पर इतना अवशय है जो भी इंसान को किसी भी वर्ग से बाँट देता है वो इंसानियत का दुश्मन ही होता है।

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खामियां निकलते रहे दूसरो में ज़िन्दगी भर
पता नहीं चला खुद के दामन कितनी खामिया आ गयी

गुरुवार, 25 जून 2015

गुजार ले ज़िन्दगी बेशक चाँद लम्हें उधार ले

क्यों टूटा टूटा सा रहता है
गुजार ले ख़ुशी ख़ुशी ज़िन्दगी
बेशक चन्द लम्हें उधार ले

रोज आता नहीं वक़्त लौट कर
बस अफ़सोस रह जाता है जीने का
गुजार ले ख़ुशी ख़ुशी ज़िन्दगी
बेशक चन्द लम्हें उधार ले

तू पीछे भागता है उड़ती पतंगों के पीछे
कुछ कट जाती है तो कुछ उड़ जाती है
गुजार ले ख़ुशी ख़ुशी ज़िन्दगी
बेशक चन्द लम्हें उधार ले

मिट्टी के जिस्म को कांच का खिलौना बना दिया
जब चाहा जोड़ दिया तब चाहा खिलवाड़ किया
गुजार ले ख़ुशी ख़ुशी ज़िन्दगी
बेशक चन्द लम्हें उधार ले

किसी को हक़ नहीं , तेरी रूह को इस तरह रुलाने का
संग ज़िन्दगी तूने भी काटी रुस्वाई में, अकेला क्यों रहा बेवफाई में
गुजार ले ख़ुशी ख़ुशी ज़िन्दगी
बेशक चन्द लम्हें उधार ले

गुजार ले ख़ुशी ख़ुशी ज़िन्दगी
बेशक चन्द लम्हें उधार ले

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कोई साथ नहीं आएगा जब तू जाएगा
बस तेरा अक़्स ही तेरा साथ निभाएगा
आज तुझे वो जी भर तुझे हर लम्हा रुलाएगा
जब तू निकलेगा जहाँ से, वो नया जहाँ बसाएगा

भड़ास

तिल तिल मरता हूँ जाने कौन से जख्म से जलता हूँ
आह् भी तोड़ देती है, मुश्किल में सांस भी छोड़ देती है
काँटों का ताज मिला है जब भी ज़िन्दगी को गले से है लगाया
जानत के ख़्वाब दिखा कर दिल ने, दर्द के भवसागर में है फसाया
लोगो को लगता है मुझे आदत हो गयी जल जाने की
कहाँ मालूम है उन्हें, मेरी कहानी लिखी रब्ब ने आंसुओ को पि जाने की
अब में कह सकता नहीं, तन्हा भी रह सकता नहीं
तू पूछ भी ले दर्द मेरा, दिल ऐसा है ख़ामोशी कि कह सकता नहीं

मंगलवार, 23 जून 2015

प्रेम व्यथा

आज एक जंगल की प्रेम कहानी सुनाता हूँ
वहाँ रहने वाली कोयल की व्यथा बताता हूँ

जंगल में एक भावुक कोयल ने पंछी से दिल लगाया
कोयल की सखी मैना ने उसका राज जंगल को बताया

कोयल का जीना हुआ है मुहाल, हर को कसीदे कस जाता है
पंछी भी लाचारी से बेबस, अपना दुःख किसी को ना जताता है

मैना तुम माना की हो बहुत चंचल, अपनी ही सहेली का राज भुनाया
इतना भी नहीं सोचा, तेरे बुरे वक़्त में एक उस कोयल ने ही साथ निभाया

हर राह पर उन्हें कुते भोंकते मिल जाते है, उनको प्रेम को पाप बताते है
भोंकने वाले तो भोंक जाते है, प्रेमी युग्म को ठेस पहुंचा जाते है

मैना की एक गलती ने, प्रेम को विष का प्याला बनाया
हँसते खेलते जोड़े को, दर्द का रास्ता है दिखाया

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खुद लूहलुहान हो जिस्म जिसका
वो भी ज़ख्म कुरेद जाता है

शनिवार, 20 जून 2015

ए बारिश॥

ए बारिश क्यों मेरे दिल का हाल सुनाती है
गली गली हर चोराहा बरस जाती है

दो दिलों की दास्तां, महफ़िलों में सुनाती है
दीवारो की बातें, मकानों से गुजर जाती है
ए बारिश क्यों मेरे दिल का हाल सुनाती है

ए बारिश, मेरे दिल का न यूँ बेहाल कर
थोड़ा तो बादलों की धड़कनो का लिहाज कर
ए बारिश क्यों मेरे दिल का हाल सुनाती है

ये ठंडी हवाए, सीने के दर्द को हवा दे जाती है
भूली बिसरी यादों को, उड़ने के पर दे जाती है
ए बारिश क्यों मेरे दिल का हाल सुनाती है

मुझे हो सके तो इतना डूब की उठ ना पाऊ
भड़कते दिलो से, कहीं दूर में चला जाऊ
ए बारिश क्यों मेरे दिल का हाल सुनाती है

# ए बारिश, फिर एक ऐसा कमाल कर
   मेरे जैसे मेरे दिलबर को भी बेहाल कर

शुक्रवार, 19 जून 2015

8 घंटे की कैद छुट्टी वाले दिन

कुछ इस तरह होता है पागल इंसान
जहाँ हो महफ़िलो का हर लम्हा शोर
वहां एक अकेला कुछ लम्हें होता है बोर
आज शनिवार का दिन, अवकाश का होता है
मगर विकाश है की दफ्तर में अकेला रोता है

सुबह 9 बजे आते ही धुल की फांके छँटाता है
कुछ लम्हें घुटन का आदि खुद को बनाता है
कभी नजर घूमता है, खिड़की पर तो कभी फ़ोन नजर आता है
कोई भूला आ भी गया दफ्तर
खुद की परेशानी मेरे सीने पे लाद चला जाता है
आज शनिवार को बस भरपूर वक़्त ही नजर आता है
आदेशो की बेड़ियों से जकड़ दिया एक कुर्सी पर
तन्हा वक़्त में कोई गैर भी अपना हो जाता है
हर राह चलता भी लुभा जाता है
मगर इस सुनी राह पर कोई नजर कहाँ आता है

प्यासे हो जाते है लब मेरे, कुँए पर जा सकता नहीं
भूख प्यास दम तोड़ जाती है सिर्फ गम छोड़ जाती है
आज तो इण्टरनेट और बिजली ने भी कमाल कर दिया
एक अच्छे खास इंसान का बुरा हाल कर दिया

कुछ दिल से

जो व्यक्ति जीवन भर इस लिए सादगी से जिया हो की किसी के मन में उसके लिए नफरत ना हो। वो आज किसी के मन में खुद नफरत के बीज बो गया। इतना आसान नहीं होगा।

पहला दिन ही बहुत भारी पड़ गया था उसके लिए। बहुत बार कमजोर भी हुआ मगर फिर भी उसने हिम्मत बांधें रखी।

शायद कुदरत ने खुशियो से दूर रखने को ही मुझे जन्म दिया है जब कभी हंसी ख़ुशी जीवन गुजारने की कोशिश करता हूँ तो कोई ना कोई ऐसा बवाल आता है सारी खुशिया लूट ले जाता है। इस सादगी के चक्कर में हिटलर बन गया हूँ। लोगो की संवेदनाये मुझे कोमल बनाने की बजाये और कठोर बना देती है। शायद एक दोस्त का कहना की अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए चिल्लाता हूँ। ठीक वैसे अपने नरम ह्रदय को छुपाने के खातिर में भी बहुत कठोर हो जाता हूँ। फिर उम्र भर के पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिलता। कुछ पल का आवेश ऐसे कदम उठा लेते है कि मीलों की तन्हाई डस लेती है।

आंसू तो निकलते नहीं मेरे पर हाल ए दिल उस मंजर सा होता है कि बरसो ये अंखिया बरस गयी हो। कोई पूछे ये काले घेरे क्यों है। काले घेरे दो ही कारण से होते है एक तो इंसान सोचता बहुत हो या जागता बहुत हो। यहाँ तो दोनों ही कारण है। हलकी फुलकी ज़िन्दगी को मेने अपने झूठे उसूलो की खातिर बहुत मुश्किल बना दिया।

मोहब्बत बन तो, तुझे पाना नामुमकिन था
अब नफरत बन तेरे दिल में बस गया हूँ

गुरुवार, 18 जून 2015

कुछ कदम मेने ही गलत बढ़ाए होंगे

कुछ कदम मेने ही गलत बढ़ाए होंगे
उसने मुझे भरी महफ़िल है शर्मसार किया

हुए ज़ख्म गहरे, किसने ये प्रहार किया
हँसते खेलते मेरे मन को, तार तार किया

अपनी ही सिख भूल गया था में
हद से आगे , रिश्ते जी गया था में

अब इन बढ़ते कदमो को रोकना होगा
अरमानो को जलती आग में झोंकना होगा

भूल गया था जो वजूद अपना
इस कदर मेरा ये हाल हुआ
आज फिर जलालत ने जी भर मुझे छुआ

रब्बा इसलिए तुझ से ये हूँ मांगता
मुझे सन्मति दें कि खुद की राह भूल न जाऊ
इस दहकते लावे में कहीं उलझ ना जाऊ

बुधवार, 17 जून 2015

आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में
रह रह उनको सताता हूँ
वो बरस पड़ता है मेरी अनकही बातों पर

मायूसी भरा चेहरा मुझे भी रुलाता है
आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

सुर्ख आँखों से मुझे निहारता है वो
उम्मीद भरी नजरों से सीने में उतर जाता है
कुछ ना हासिल होने पर मायूसी से लौट आता है
आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

बदतर हो गयी मेरी वो बातें भी उनको
जिनसे कभी मुरझाया चेहरा चहक जाता था
बरसो से अडिग इमान बहक जाया करता था
आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

चंद साँसे है या तो यादों में ही गुजार लो
नहीं तो कुछ लम्हें हमारे
कुछ अपने जीवन पर वार दो
आज यहीं इस इन्तजार को मार दो
आज उनकी तक़लीफ़ बन गया हूँ में

#
जीना हो गर तुम्हें, गैरो पर मरना छोड़ दें
अपने लिए जियो वो पल बेशक पल भर के हो

शुक्रवार, 12 जून 2015

रंगो से भरी ट्रेन

भारत के विविधताओं और रंगो के बारे किताबो में तो पढ़ते है। पर ट्रेन में ये सब नजर आते है। हर कोई अलग अलग धर्म समुदाय रंग संस्कृति का भेद रखने वाला। ज्यादातर के मन में एक दूसरे को जानने की उत्सुकता नजर आती है। ट्रेन की गतिविधियों के विरोध में सब का एक स्वर में बोलना। विभिन्नताओं के होते एकजुट इंसान जब होता है तब सब को एक ही दर्द ने मारा हो । कुछ बुद्धिजीवी भी है जो जीवन की जटिलताओं पर बातें करना पसंद करते है। यकीन मानिए थोड़ा सा भी संकोच ना करते हुए बात कीजिये आप को भिन्नता नजर ही नहीं आएगी। जाते हुए हमारे पास स्लीपर में टिकट ना होने के बावजूद बड़े प्रेम भाव से कोलकाता तक का सफर अपने टिकट से करवाया। हमे कुछ समय अच्छी नींद मिले इसके लिए वो ट्रेन में टहलने निकल जाते थे। काश घर से निकल व्यक्ति का जैसा व्यवहार बाहर लोगो के प्रति होता है वही व्यवहार वो अपने क्षेत्र में क्यों नहीं रख पाते। अभी ट्रेन जाने कहाँ खड़ी है ।

समय मिला तो सोचा कुछ आप से बाँट लूँ।
अब वापिस जाते हुए ac टिकट हुयी तो बहार का मौसम वैसे सुहावना हो गयी।

जारी है ......

रविवार, 7 जून 2015

शरीर की बातें शरीर ही जानें

जीवन में कुछ भी सत्य नहीं
शरीर की भाषा के सिवा
मगर हम इतना अदि हो चुके है
हमे किताबो व समाज द्वारा दिया ज्ञान सर्वोत्तम लगता है
जबकि सत्य है शरीर की भाषा से ऊपर कोई ज्ञान नहीं। आपकी सारी कहानी बयान करता है आपका शरीर॥
हालाँकि हमारी किताबें कुछ हद तक मानती है पर वो सिर्फ मतलब के लिए
यानि की जहाँ आप के तरक्की करने की बात आये वहां आप की कैसी शरीर की भाषा होगी आप को बताएँगे
में यहाँ उस की बात नहीं कर रहा
में उस शरीर की भाषा की बात करता हूँ जो प्राकृतिक है जिसे इस किताबी ज्ञान की वजह से हम अक्सर मानने से मना कर देते है

जैसे कि अब मेरा दिल कर रहा है बाहर बारीश है नहा लूँ॥
मगर यार दुनिया कहेगी पागल है और ये सोच दफ़न कर देते है शरीर की जरुरत को

इस शरीर की जितनी जरुरत आप पूरी कर पाओगे उतने ही सुखी और रोगमुक्त जीवन होगा॥ चाहे आप किसी एक जीव/इंसान को ऐसी आजादी देकर देखो
कुदरत ने हर समस्या का हल बनाया जो उसने दी
मगर हम इंसानो ने जो समस्या पैदा की उसका हल हमारे पास ही नहीं।
इसलिए खुद को समाज के पिंजरे से आजाद कर कुदरत के हवाले कर दीजिये फिर देखिये सुंदरता संसार की बढ़ जायेगी॥

मोहब्बत का दिल॥जीवन मुश्किल

पहचान एक है मोहब्बत भरे दिल की
उस दिल में दुश्मन के लिए भी नफरत नहीं
जज्बात उमड़ते है हर अनजाने के दर्द पर
हो कोशिश लाख भी, बुरा ये कर पता नहीं
क्रोध में भी, खुद का सीना जलायेगा
मगर दूसरे पर उफ़्फ़ तक जाहिर करता नहीं
तीखी बातें सुन मुरझा जाता है ये दिल
इसकी ये खासियत ही इसकी मुश्किल
मतलब की दुनिया में इस्तेमाल हो जाता है
खुद जल कर, किसी का आशियाना रोशन कर जाता है
हक़ हो चाहे खुद का, औरो पे लुटाना चाहता है
पैगम्बर है मोहब्बत का, नफरत कैसे कर पायेगा
आखिरी कतरा भी देकर तुझे जिस्म का
अपना फ़र्ज़ ये निभा कर ही जायेगा
हौंसला टूट भी गया हो बेशक इसका
तेरा मनोबल फिर भी बढ़ाएगा

ख्वाहिश दम तोड़ गयी इसकी
पूरी करते हुए चाहत जिसकी
वो भी दुत्कार चला जाता है

शनिवार, 6 जून 2015

तनु वेड़्स मनु रिटर्न्स

काफी अच्छी मूवी थी
एक पुराना साथी था
जिसके साथ अच्छे दिनों में साथ काम किया था। आजकल वो बेरोजगार है उसके आग्रह पर ही मैने उसको फ़िल्म दिखाई मगर इतना सा भी मलाल न हुआ की मेने कोई गलत कदम उठाया क्योंकि कुछ दिनों पहले जब मेरे पास रोजगार नहीं था तो में भी मानसिक तौर से परेशां हो गया था और ऐसे समय कोई भी ख़ुशी काफी अनमोल होती है।
में आप को अपनी कथा नहीं सुना रहा सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि ये कहावत ही नहीं सत्य है जब कभी हम किसी के हित में कदम उठाएंगे तो उसका फल अवशय मिलता है॥ इसलिए परोपकार करते रहिये॥

अब जो आज देखा उसकी भी बात कर ले
आप ने भी शायद ये फ़िल्म देखि हो आप का पता नहीं मगर मुझे इस फ़िल्म से ये प्रेरणा  मिली कि जीवन में मधुरता छोटी बातों को बढ़ाने से नहीं बडी बातों को छोटा समझ माफ़ करने से आती है

इसलिए मधुरता फैलाते रहिये॥

बुधवार, 3 जून 2015

वक़्त जाया हो गया तन्हाई में

क्यों टूट जाता हूँ अक्सर
विपरीत दिशा की हवाओ से
मेरी भी ज़िन्दगी महका दो फिजाओ से

यूँ जिद्द करता है दिल, महफ़िलो की
अब तन्हाई डसने को आती है
रोज वो आने कह जब लौट जाता है

मासूम दिल करवटें लेकर आहें भरता है
पागल है जो कुछ भी कहने से डरता है
उसकी सिसकियां देख ये घबराता है

गर्मी की धुप सा, मेरा बदन वो जलाता है
लावा बन बहता है सीने में
भूकंप सा पैदा करता है जीने में

कोई कसर हो गर मेरे चाहने में
अनाड़ी समझ, नजरअंदाज करना

आँखें झूठ नहीं कहती सुना है बहुत
वक़्त मिले तो निगाहो से इनको पढ़ना

कड़वे शब्द बोलता हूँ