गुरुवार, 15 जून 2017

ODF➕

ODF ➕ है क्या?

खुलें में शौच मुक्त होने के पश्चात गाँव में स्वच्छता के अगले चरण की और बढ़ना ही odf प्लस है। जिसके दौरान मुख्यतः पांच तत्वों पर कार्य किया जाता है
1. खुलें में शौच मुक्त की निरंतरता
2. ठोस कचरा प्रबंधन
3. तरल कचरा प्रबंधन
4. ग्राम स्वच्छता:- साफ सफाई
5. व्यक्तिगत स्वच्छता

1. खुलें में शौच मुक्त की निरंतरता बनाये रखना प्रमुख चुनौती है क्योंकि खुलें में शौच मुक्त एक अभियान से हुआ जा सकता है लेकिन बरसों के खुलें में शौच जाने की आदत में परिवर्तन लाने के लिए नियमित निगरानी आवश्यक है, जिसके लिए निगरानी समिति के सदस्यों का इस तरह से प्रबंधन किया जा सके कि दैनिक निगरानी हो सके। उदारहणतय अगर आपके पास निगरानी समिति में 50 सदस्य है तो रोज केवल 10 सदस्य निगरानी करें ताकि 5 स्थानों पर 2-2 व्यक्ति पहरा दे ताकि हर किसी को 5 दिन पश्चात पहरा देना पड़े जिस से निगरानी निर्बाधित चलती रहे।

2. ठोस कचरा प्रबंधन विस्तृत रूप से देखा जाए तो इसमें गलनशील व अगलनशील कचरे के दो प्रकार होते है। गलनशील में रसोई के अपशिष्ट पदार्थ, मवेशियों के चारा व गोबर इत्यादि आते है जिनका गांव में लोगो द्वारा प्रबंधन तो कर लिया जाता है मगर उनकी तकनीक में सुधार की आवश्यकता होती है
जैसे गांव में पुराने समय से गोबर की खाद के गड्ढे होते है, लेकिन उन गड्ढो में निरंतर गोबर डालते हुए उनको बेसिक बातें बता दी जाए कि समय पर मिट्टी व पत्तो की परतें बनाई जा सके जिससे बढ़िया कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकें।

अगलनशील में दोबारा इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं तो आमतौर पर ग्रामीण कबाड़ी को बेच देते है मगर पॉलीथिन, टेट्रा पैक इत्यादि कचरा जिसके निपटान का कोई स्थायी समाधान नही है एक गंभीर समस्या है, इसका वजन के हिसाब से उत्पादन प्रति घर साप्ताहिक 100 ग्राम भी नही होता, हाँ अगर हम इसका प्रयोग कलात्मक वस्तुएं बनाने के लिए कर सकते है जिनका ज्ञान स्वयं सहायता समूह प्रशिक्षण देकर, ग्राम स्तर पर सुगमकर्ता तैयार किये जा सकते है।

इसी कड़ी में स्वच्छता प्रेरक को वर्मी कम्पोस्ट व बायोगैस का इतना ज्ञान नही होता तो संवंधित कृषि सहायक को भी योजना के साथ जोड़ा जा सकता है ताकि लोगो को सटीक जानकारी दी जा सके।

3. तरल कचरा प्रबंधन एक ऐसी समस्या है जो आधुनिकरण के नाम पर संसाधनों का दिशा निर्देश की कमी में इस्तेमाल के कारण उत्पन्न हुई है। इसमें चाहे सेप्टिक टैंक वाले शौचालय का प्रयोग ले लीजिए, चाहे पानी के लिए सबमर्सिबल का प्रयोग व नालियों के निर्माण में इंजीनियर विंग का ध्यान न देना। इस समस्या को दूर करने के लिए लोगो के व्यवहार परिवर्तन के लिए व्यापक अभियान की आवश्यकता है, चाहे वो पोस्टर, रेडियो, पेंटिंग, घर घर जाकर इत्यादि सप्रेषण के माध्यमो से लोगो के मानसिक पटल पर चित्र अंकित करना। ताकि वह घरेलू स्तर पर सोखता गड्ढा बनाकर व रसोई के दूषित पानी को पेड़ पौधों में इस्तेमाल करके, वाश बेसिन के इस्तेमाल पानी का कनेक्शन टॉयलेट के फ्लश के साथ करके आंशिक सुधार किए जा सकते है।

4. ग्रामीण स्वच्छता:- बढ़ती जनसंख्या के कारण, जगह की कमी के कारण सार्वजनिक स्थलों पर ग्रामीणों द्वारा निजी कचरा व गोबर डालने से गांव की सुंदरता पर ग्रहण लग गया है, जगह जगह गलियों में पशुओं की खोर बना, पशु बांधने से भी समस्या गंभीर बनी हुई है, इसका समाधान समुदाय को ट्रिगर करके ही किया जा सकता है क्योंकि राजनीति करण की वजह से स्थानीय पंच व सरपंच इन विषयों पर गंभीरता नही दिखाते है। इसके लिए सामुदायिक स्वभाविक नेताओ की मदद ली जा सकती है। नालियों को ढकने के पश्चात उनके ऊपर सौंदर्यकरण को बढ़ावा देने के लिए फूल पौधे लगाए जा सकते है।

5. व्यक्तिगत स्वच्छता:- आमतौर पर सभी व्यक्ति गत स्वच्छता के प्रति जागरूक होते है, लेकिन फिर भी स्कूल में सेमिनार करके बच्चों को जागरूक करने से उनमें बचपन से व्यक्तिगत स्वच्छता को व्यवहार में लाया जा सकता है, क्योंकि बच्चें परिवार में बदलाव के कारण बन सकते है। इसमें साथ आंगनवाड़ी वर्करों, आशा वर्कर द्वारा घर घर जाकर महिलाओ को भी खाना बनाने व खाने से पहले, शौच पश्चात हाथ धोने की आदत में शामिल करने के लिए जागरूक किया जा सकता है।
उपरोक्त सभी कार्यों को आकार देने के लिए, एक दृढ़ इच्छाशक्ति व निर्देशन की आवश्यकता है, क्योंकि कोई भी योजना विफ़लता का कारण निर्देशन में ढील भी पाया जाता है, योजना के प्रारम्भ में जो दिशा निर्देश अधिकारी द्वारा दिये जाते है उनमें धीरे धीरे हो जाएगा जैसे विचारों से योजना के पूर्णतः सफल होने पर ग्रहण लग जाता है, इसके अतिरिक्त अन्य कारण गांव स्तर पर डेटा को अच्छी तरह से इकठा न करना भी मुख्य कारण है, हम प्रायः देखते है कि आंकड़ो को एक छत के नीचे बैठकर भर दिया जाता है जिससे बुनियादी सुधारों को छोड़ दिया जाता है। जबकि बुनियादी सुधारों के बिना कोई सफलता प्राप्त नही की जा सकती जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण शहर है, वहाँ सरकार द्वारा सभी सुविधाओं के बावजूद स्थिति दयनीय होती है।

उपरोक्त ज्ञान मेरे विवेकानुसार है जिसमें त्रुटि की संभावनाएं है मगर सुधार की गुंजाइश निरंतर रहती है, यही प्रकृति का नियम भी है, बस हम ये भूल जाते है सुधार के वक़्त उस प्रकृति को ही भूल जाते है, दूरदर्शिता का अभाव नजर आता है।

शुक्रवार, 9 जून 2017

साम्राज्य का दुष्चक्र

गत कुछ दिनों से में कार्यालय की ग्राम सचिव के समूह स्तर की बैठकों में भाग ले रहा हूँ, जिन अपेक्षाओं से मैंने इन मीटिंग में भाग लिया था उनसे विपरीत अधिकारी का आचरण देखने को मिला। मानता हूँ कि हो सकता है कि मेरी सूझबूझ का स्तर उतना न हो, लेक़िन मेरी समझ अनुसार इन बैठकों का नतीजा शून्य है, जैसे कोई खानापूर्ति के लिए कार्य किया जा रहा हो। जैसे दिखावा करने को की मेने तो अपनी जिम्मेदारी निभा दी दूसरों ने नही किया तो मेरा क्या दोष। क्या इतनी सार्थकता काफी है। केजरीवाल जैसा आचरण है ये तो? जितना हम दूसरों से कार्य की अपेक्षा रखते है अगर स्वयम को उसी तराजू में रखें तो शायद हम कुछ जान पाए। अधिकारियों के पिछले 3 वर्ष में 3 अधिकारी और 3 ही रूप दिखे। प्रथम अधिकारी तो जगजाहिर था, जैसा कहते है सब नेता चोर है पर मेरा काम करदे मुझे उससे क्या। द्वितीय अधिकारी ऐसा की जिसके लिए नौकरी एक सरकारी अध्यापक की तरह थी, जो हो रहा है ऐसे ही होगा मेरा वेतन मिल रहा है मेरा घर चल रहा है वो काफी है। और तीसरे अधिकारी की शिक्षा और दीक्षा देखकर लगा था कि ये अधिकारी तो कुछ जुनून रखता है जमीनी स्तर पर कार्य करने का, मगर आशाओं पर उस वक़्त पानी फिर गया जब मैंने उनकी अखबारों में चमकने की भूख, ग्राम विकास की पीड़ा को अनुभव करने से ज्यादा थी। मैं सहमत हूँ कि समाज स्वयम का दुश्मन बना हुआ है वो निज हित के कारण सामूहिक विषयों को दरकिनार कर देता है। लेकिन इतना आसान होता सत्य का रास्ता तो हर कोई मसीहा या फरिश्ता न होता। संसार नही बदल रहा तो मैं ही बदल गया, इस धारणा का दुष्परिणाम तब देखने को मिलेगा जब आने वाली नस्लें चैन की जिंदगी के लिए जमीन तलाशेगी और सिवा कचरे के और कुछ नही होगा, मेरा शक अधिकारी की क्षमता पर नही और न ही मैं उनकी विवेचना करने की क्षमता रखता हूँ, मैं स्वयं की पीड़ा व्यक्त कर रहा हूँ, क्योंकि इतनी शिक्षा और नयेपन का अधिकारी बहुत कम देखने को मिलेगा और जब वो ही अधिकारी नही काम करेगा तो तकलीफ़ होना जायज है, स्वयम की बात करूं तो फिर सब कहेंगे अहम हो गया, मैं अपनी निर्धारित कार्य को कभी रुकने नही देता और सही कार्य को अधिकारियों से करवा भी लेता हूँ। मुझे तक़लीफ़ इतनी सी बात देती है जब मुझे दुसरो की तुलना करके नीचा दिखाया जाता है, एक विषय पर जब आप मेरी तुलना उनसे करते है क्या अन्य विषय जिनमें मेरी दक्षता है उनकी तुलना की, नही कभी नही। क्योंकि वो विषय तो आपकी पसंद ही नही।

और कुछ बातें सीने में इसलिए दफन कर लेता हूँ क्योंकि समाज का हर बात को लेने का संदर्भ अलग होता है । जब कभी आप किसी का सम्मान करने का नाम करते हो और फिर पलट जाते हो तो क्या उसका अपमान नही हो जाता। और ऐसा एक बार नही बहुत बार हुआ, कभी रिवॉर्ड के नाम लैपटॉप की मीठी गोली, कभी स्वतंत्र दिवस पर सम्मानित करवाने के सपने, यहां इस बात से ये भी प्रश्न उठता है कि जब अधिकारी अपने क्षेत्र का कार्य सम्पन्न नही कर पाता और कर्मचारी से उसकी तय चुनोतियों से अलग कार्य की अपेक्षा रखता है और पूरा न होने पर उसे बैठकों में अपमानित करता है। हालांकि मेने अधिकारी को भी उनके उच्च अधिकारियों के समक्ष बेबस पाया है और ये ही सोचकर मैं स्वयम को तसल्ली देकर अपने कार्य को पूरी मेहनत से पूर्ण करने की कोशिश करता हूँ।
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आज बाहुबली 2 मूवी देखी उसमें कुछ सार समाज की समझ बतलाता है जब आपके मन कपट नही होता तो कपटी व्यक्ति आप का शोषण इस तरह से करेगा आप सोच नही सकते यही जीवन में घटित होता है सदा, जहां आप सहकर्मियों पर भरोसा करते है वहीं सहकर्मी निज हित के लिए आप को मूर्ख साबित करते है, जबकि वो ये भूल जाते है कि जो व्यक्ति उनके स्नेह में एक बार मूर्ख बनकर उन्हें फायदा देता है जीवन भर के दोस्ती में कितना अनमोल होता। और थोड़े लालच में वो बड़ा नुकसान कर देते है। वो मूर्ख मित्र तो मन से प्रसन्न जीवन आनंदपूर्वक जी लेगा क्योंकि उसके मन मैल नही। छल करने वाला सदा छल की दलदल में ही रहता है डर के साये में सदा।

कड़वे शब्द बोलता हूँ