मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

चुनाव:- लोकतान्त्रिक वैवाहिक स्वरूप आयोजन

चुनाव या कह सकते है सरकारी वैवाहिक लोकतान्त्रिक आयोजन
ये अपनी तरह का अनूठा आयोजन है जिसमे आयोजक को वेतन मिलता है। आयोजन में आने वाले लोग वोट रूपी शगुन से एक स्वस्थ समाज की कल्पना करते है कि उनके द्वारा चयनित उम्मीदवार उनको एक स्वच्छ वातावरण देगा जिसमे वो अपने कार्यो का निर्वहन निर्भयकता से कर सके। चुनते वक़्त उम्मीदवार का ईमानदार ही होना ही काफी नहीं होता क्योंकि अगर एक व्यक्ति कितना भी ईमानदार हो और वह व्यक्ति अपने क्षेत्र की समस्या को उच्च अधिकारी अथवा सम्बंधित विभाग में रखने की नेतृतीव् क्षमता रखता हो। दृढ़ता के साथ अपनी बात को ऊपर तक ले जाए।

मैने कुछ कर्मचारियों को चुनाव में ड्यूटी लगते ही उनकी भौहें तानते देखा है ये वो मेहनतकश लोग होते है जो सारा साल शायद एक कार्य का भी निर्वहन दिल से नहीं करते। जो व्यक्ति हमेशा मेहनत से कार्य करता है उसके लिए तो ये सुनहरा अवसर होता है अपने कौशल का प्रदर्शन करने का। अन्यथा आलसी व्यक्ति को ही ये चुनोतिपूर्ण कार्य प्रतीत होगा। और मेहनतकश इसे सहजता से कर भी जायेगा।
एक पल के लिए अगर आप को बताऊ तो आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के कार्यक्रम के हिस्सा हो जो कि अपने आप में अहम् उपलब्धि है। 

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

वो जब आये मेरे मोहल्ले में

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
होंठो से नहीं, नजरो से बतियाना हुआ
कुछ तो नजरो का मिलाना
कुछ उनका शर्माना हुआ

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
कुछ इस तरह उनका मुस्कराना हुआ
होंठ तो खुले नहीं, चेहरा गुलाब हो गया
देखते ही मैं तो लाजवाब हो गया

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
कुछ इस तरह उसका इतराना हुआ
उसने तो पूछ लिया, पता अपने ख़ास का
रंग उड़ गया मेरे आत्म विश्वास का

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
मेरा दिल ही निशाना हुआ
वो तो चले गए वापिस कब से
मेरे लिए उम्र भर का अफ़साना हुआ

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
तो मेरा दिल भी दीवाना हुआ

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

मोम सा हो गया हूँ मैं उस पत्थर के प्यार मैं

मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं
वक़्त से नाता तोड़ दिया
उस कम्बखत के इन्तजार में
मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं

बहुत जतन लगाये
उसके दिल को रास ना आया
मेरे धड़कते दिल का
उसको विश्वास ना हो पाया
मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं

मेरी आहों पर हँसता था वो
मेरी साँसों में रचता था जो
टूट कर बिखर गया उसकी बाँहों में
वो काँटे बिखेर गया मेरी राहों में
मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं

ज्योति बन जिंदगी रोशन कर दे ये समझा था मैं
आंसुओ का समुन्दर मेरी झोली में डाल गया है वो
नासूर बन जिंदगी को डस गया है जो
मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं



बुधवार, 9 दिसंबर 2015

वजह क्या है मुझे चाहने की

तू गुलाबो से घिरा है
तेरा हर ख़्वाब भी मिला है
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की

संगमरमर सा तो में भी नहीं
जो मुझे मोहब्बत का ताज समझे
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की

बह गया हूँ तेरी आँखों से
कभी ज़ख्म तो कभी दर्द बनके
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की

मेरे दिल में कोई जगह नहीं
तेरे दिल का ख़्वाब सजाने की
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की

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बुधवार, 2 दिसंबर 2015

गीत:- बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

ना इसकी फिकर ना उसका है डर
हर दर्द से अनजान, ना चाहतो का असर

बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

इक झूठी मुस्कान, दूजा स्वर अभिमान
टूटा दिल नहीं, रुसवा है उसकी पहचान

बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

चर्चे उसके होते है अब हर दूकान और मकान
मीनारों और किलों से ऊँची हो गई है उसकी शान

बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

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#
अंदाज ए यार हो गए बेज़ार
मोहब्बत का नहीं इख़्तियार

सोमवार, 30 नवंबर 2015

अक्स तलाशती ज़िन्दगी

अक्स तलाशती ज़िन्दगी ओझल हो गई है समस्याओ के काले बादलों में, कोई फुरसत का लम्हें की गुजारिश कर भी लूँ। कोशिशो के बावजूद फिर उसी चोराहे पर मिलता हूँ जहाँ रास्ते तो बहुत है, मगर मंजिल कहाँ होगी मालूम नहीं। हर जगह बेशक गलत हो सकता हूँ में, मगर मेरा दिल भी गलत है ये मालूम ना था। अक्सर सुना है दिल जो कहे वो किया कीजिये। कम्बखत भग दौड़ के ज़माने में हमारा तो दिल इम्तिहान में हार गया। मुझे किसी धर्म/जाति से कोई सारोकार नहीं। मेरी धड़कने एक ही भाषा की मुरीद है जो दिल से छूकर गुजरती हो। जब वो दिल को छूने वाली लहर भी कोई धोखा होने का एहसास दे तो आप के अंदर कोई ज़िन्दगी बाकि नहीं रहती।

रविवार, 8 नवंबर 2015

काव्य रस

काव्य मेरा रसहीन हो गया
जब से वो और भी हसीन हो गया

उसके लिए में ज़मीन
वो मेरा आस्मां हो गया

काव्य को मेरे हास्य जताता है
अपने रूप को सर्वोपरि दर्शाता है

जब से वो मेरे लिए अनमोल हुआ
मेरा स्वयं का मोल खो गया

#
वक़्त ही फल का रंग दिखाता है
अच्छे से अच्छा बदल जाता है

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

कविता

अभी टूट कर गिरा था
कि नए कोंपले फुट पड़ी

आँधी से जजर्र हुआ वृक्ष
नए अध्याय की और बढ़ चला

निशान अभी बाकि है क्षति के
बिखर सौ टुकड़े हुए मति के

हारी नहीं हिम्मत उठ खड़ा हुआ हूँ
लडख़ड़ा ही सही चलने लगा हूँ

फिर एक नया मौसम आएगा
मेरी शाखाओ से चमन लहराएगा

टूटी थी आस जिनकी
खुशियों का समां बंध जायेगा

ये टूटा हुआ दरख्त
फिर सम्भल जायेगा

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

बैसाखियों पर ज़िन्दगी

आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी

मोहताज हो जाती है जिंद सहारे को
ढूंढ़ नहीं सकता किसी किनारे को

आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी

लाचारी के आलम में अपने भी रूठ जाते है
दूसरों का बोझ उठाते वक़्त रिश्ते भी टूट जाते है

आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी

दया की नजरें चुभती है इन आँखों को
वक़्त तोड़ नहीं सकता बेबसी की सलाखों को

आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी
आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी

#
मुझे भी बिन बैसाखी जीने की चाहत है
ये ही उम्मीद जीवन में एक राहत है

बुधवार, 30 सितंबर 2015

पहला प्यार

मोहित हो गयी हूँ मैं
जबसे लड़े उनसे नैना
अँखिया दरश गयी उनको
भूली भूख प्यास और चैना

सजदे में उसके पलकें झुक जाती है
और वो बेरहमी से क़त्ल किये जाता है
मेरी धड़कनो से होकर
दिल तक दस्तक दे जाता है

उसकी आहट से मेरी बेचैनी बढ़ जाती है
दूरियों से जाने क्यों मेरी उम्र घट जाती है

साजना भर ले बाँहों में, जी लूँ जरा
पहले प्यार का जाम , पि लूँ जरा

#
यौवन का पूर्ण श्रृंगार
उसका पहला प्यार
जीवन का आधार
इश्क़ का इजहार

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

सर्वोतम हूँ में

सर्वोतम हूँ में

इस दौड़ में
जानवर हो गया इन्सान
भले बुरे की छोड़ पहचान
हो गया हूँ महान

सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में
दुसरो को नीचा दिखाता गया
खुद का परचम लहराता गया
दिल को बहलाता गया

सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में
नशे में चूर हो गया था मय के
भूल गया था मायने भय के
बस दौड़े जा रहा था

सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में
कुछ अपने थे जो समझाते रहे
मेरे जहन से रुकावट समझ बहते रहे
वो फिर भी अपना कहते रहे


सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में
सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में

सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में

#
सर्वोतम की होड़ में
मंजिल पर अकेला होगा तू
दुनिया छोटी आएगी नजर
कोई बराबरी को नहीं होगा बेशक




सौदागर वो इश्क का

सौदागर है वो इश्क का
किस के हिस्से आएगा
तय करता है अपने पैमाने से

किसी को जिस्म का भूखा बताता है
तो किसी को रूह का शहजादा जताता है
सौदागर है वो इश्क का



बुधवार, 16 सितंबर 2015

बेगानो से अपने अपनों से बेगाने

नन्हें कदमो से चलना सीखा था
की बचपन छीन लिया
अपने और कुछ बेगानो ने

खेत खलिहानों की जगह ले ली
आलीशान मकानों ने
ऐसा छला मुझे अपने और कुछ बेगानो ने

वक़्त की रैना में वो बेगाने भी अपने हो गए
हम कुछ वक़्त के लिए हसीं सपनो में खो गए
लगने लगा है कि वो बेगाने भी अपने हो गए

रास ना आई मेरी खुशिया, अपनों की ही नजर लग गई
इस तरह हुयी विपदा की
जो बेगाने हुए थे अपने
आज फिर बेगानो सा हो गए

जो संजोये थे संग जीने के सपने
वो कहीं अपनों की खुशियो में खो गए
जो बेगाने हुए थे अपने
आज फिर बेगानो सा हो गए

#
क्या खेल जीवन ने है खेला
आगे बढ़ने को नहीं
पीछे हटने को नहीं

तथ्य:- एक दोस्त ने अपने दोस्त की वेदना सुनाई थी कुछ इस तरह ही व्यक्त कर पाया॥ हिम्मत ना हुयी कुछ और लिखने की

गुरुवार, 10 सितंबर 2015

कुछ तो बात है

कुछ तो बात है
जो आँखों से दिल में उतर गया वो
साँसों में बस
ज़िन्दगी बन गया है वो

कुछ तो बात है
पल भर संग उसके
सादियो सा जी लेता हूँ में
कुछ लम्हों में
उम्र भर की चोट ले लिया करता हूँ मैं

कुछ तो बात है
मेरी तस्वीर
आँखों में लिए फिरता है वो
मेरी हर बात
दिल पर लिए आहें भरता है वो

कुछ तो बात है
लबो पर मेरा नाम आये
तो दुनिया से डरता है वो
मैं खामोश हो जाऊ गर
तो दुनिया से लड़ता है वो

कुछ तो बात है

शनिवार, 5 सितंबर 2015

सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर


सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर
बेदर्दी से दौड़े जा रहा हूँ
ना आज होश है ना कल की खबर

दर्द के सिवा कोई मंजर नहीं
फिर भी बह गया हूँ रसधार में
सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर

नाउम्मीदें के आलम में एक उम्मीद जगाये बैठा हूँ
नफ़रत के माहौल में मोहब्बत लौ जगाये बैठा हूँ
सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर

तू बेशक मुझे तरह तरह के नाम से बुलाता है
पर मेरा दिल सिर्फ एक ही धुन समझ पाता है
तेरे लिए एक ही राग गुनगुनाता है
सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर

बतिया मुझे से तू घडी दो घड़ी
मेरी ज़िन्दगी की टूटे ना लड़ी
तेरे कदमो में मेरी जान है अड़ी
सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर

सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर
सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर
सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर
तेरे दिल को छु जाऊंगा
नफरत के समुन्दर को
मीठे पानी की झील कर जाऊंगा
सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर
सवार हो इश्क़ के घोड़ो पर

#
ऐसा आया हूँ तेरे जीवन में
तोहफा समझ रब्ब का अपना बना लेना
ना पसंद आये तो बुरा सपना
समझ कर भूल जाना

सोमवार, 24 अगस्त 2015

बेड़िया है मेरे पाँव म बेड़िया है मेरे पाँव मे े

बेड़िया है मेरे पाँव मे बेड़िया है मेरे पाँव मे ं
जो झुलस गया इश्क़ की छाँव मे
खिलने था जहाँ वहां मुरझा गया

बेड़िया है मेरे पाँव मे
बेड़िया है मेरे पाँव मे

हर बाजी हारा हूँ
मोहब्बत के दांव में
मोहरा बन रह गया
शतरंज के प्यादों सा

बेड़िया है मेरे पाँव मे
बेड़िया है मेरे पाँव मे

हर शब्द कर देता है घाव
जो करता इलाज वो मर्ज बन गया
हर लम्हां उनको एक अर्ज बन गया

बेड़िया है मेरे पाँव मैं बेड़िया है मेरे पाँव मे

उसको देखा जब से, मिट गए सब चाव
भूख प्यास सब एक हो गए उसकी आस में
नफ़रत भी भूल गया मोहब्बत की तलाश में
बेड़िया है मेरे पाँव मे
बेड़िया है मेरे पाँव मे

#
वजह बेशक तू है हर दर्द की
आराम भी रूह को तेरी झलक से आता है
मैं आज भी उसकी आह भरता हूँ
वो बेशक मुझे बेवफा बुलाता है

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

उलझन भरी ज़िन्दगी

कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

मकसद नहीं
कोई इसका
फिर भी उलझाती है
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

बेमतलब का तमाशा
कभी आशा
कभी निराशा
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

कोई खींच लेता है
ख्वाहिशों को दबाकर
थोपी जाती है
उनकी मेहरबानियां
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

कोई सब कुछ लूटा देता है
कोई सब लूट ले जाता है
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

किसी ने सजदा किया
तो किसी ने किया रुस्वा
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

बर्दाश्त नहीं किसी को आह भी
कोई उम्र भर की चोट से उफ़ नहीं करता
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

किसी ने मतलब से अपनों को खो दिया
कोई बेमतलब गैरो को अपना बना गया
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

#
ज़िन्दगी की उलझनें हो जाएँगी कम
गर दिल से लगाना
और किसी को समझाना छोड़ दें

बुधवार, 12 अगस्त 2015

गीत :- ज़िंदा हूँ मैं जिंदा हूँ मैं

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं

अभी मोहब्बत जो बाकि है
मेरे दिल को धड़काती है
कहीं से है थोडा गुदगुदाती
कभी कभी है थोड़ा रुलाती

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं
इतना तो है ये बताती
मुझको है राह दिखाती

नफरत तो सिर्फ इंसान को जलाती
मोहब्बत ही है जो ख़्वाबो को सजाती
दो दिलों के रंग रूप धर्म के भेद छुपाती
बस मोहब्बत ही मोहब्बत जो दिल को महकाती

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं
इतना तो है ये बताती
मुझको है राह दिखाती

कुछ अठखेलियाँ वो मुझको दिखाती
कुछ मेरी नजरें उसको है जताती
वो शर्मा कर, कुछ है छुपाती
पर मोहब्बत से नहीं है बच पाती

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं
इतना तो है ये बताती
मुझको है राह दिखाती

हर पल उसकी साँसे है घबराती
कभी पुछु तो कुछ बहक सी जाती
दिल की आग वो लब पर नहीं लाती
बस एक झूठी मुस्कान बिखेर जाती

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं
इतना तो है ये बताती
मुझको है राह दिखाती

#
एक मोहब्बत ने ही मुझे इंसान बनाया है
नहीं तो हर रहगुज़र ने नफरत से ही मिलाया है
बस दुआ है रब्ब से मोहब्बत के जाम ही लुटाना
नहीं तो नफ़रत से जला देगा ये जालिम जमाना

रविवार, 9 अगस्त 2015

क्यों आदत हो गई .......

क्यों आदत हो गई
मुझे तड़पाने की
बात बात पर रूठ जाने की

संजोता हूँ सपने तेरे संग
वक़्त बिताने के
तू ढूंढता है बहाने
मुझ से दूर जाने के
क्यों आदत हो गई .......

बेशक ये रिश्ता मेने बनाया है
दिल ने तेरे भी हामी भरी होगी
बेशक हमारी राहें जुदा होंगी
फिर भी ज़िंदा मोहब्बत होगी
क्यों आदत हो गई .......

गुजारिश है तुझ से इतनी मेरी
चाहे मुझसे मीलों दूर चले जाना
पर रिश्ता है जो, अंतिम सांस तक निभाना
किसी भी वहम को मध्य ना लाना
क्यों आदत हो गई .......

#
मैं कुछ भी कह जाता हूँ बेचैनी में
गर तुझे है चैन मेरे दोस्त
मेरी बेचैनी ने जो किया है सवाल
उसका हल भी ढूंढ लाना



शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

दास्ताँ ए इश्क़

सामने बैठे है हजूर
थोड़ा नजरों से दूर
कुछ वो मजबूर
कुछ हम मजबूर

हल्की सी मीठी मुस्कान
साँसों से छुट्ती मेरी जान
नजरें जो मिल बैठे एक बार
उनके हो जाते हम पर एहसान

दिल से दिल की है पहचान
जानते हुए भी है अनजान
कानो में गूंजते उसके स्वर
मिश्री सा हुआ जाता हूँ मधुर

बरस बीत गए उनको निहारते
हम है की नजरों से नहीं उतारते
वो है कभी, अपना कह नहीं पुकारते
कभी तो एक लम्हा मेरे संग गुजार
बिलखती रूह का हो जाये उद्धार

#
चोरी सीना जोरी का जो है ये खेल
इस से होता नहीं दो दिलो का मेल
उम्र भर की कसक सीने को रुलाती है
वक़्त बे वक़्त वो बहुत याद जो आती है

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

कुछ शब्द

मोहब्बत बेइंतहा
वो नासूर हो गई
मेरी ये ही खता
मेरा कसूर हो गई

तू बेवफा है इतना कह
वो मुझ से दूर हो गई
उसकी दरियादिली और
मेरी बेवफाई मश्हूर हो गई

कसम से वो आठ पहर में
कुछ घडी तो हंसाता है
बाकि लम्हें बस रुलाता है

उम्र भर दिल में रखने का वादा करता है
पर जाने क्यों, सब से कहने से डरता है

उसूलों से बंधा है इस कायदे भरी दुनिया के
बस लम्हों में जीता है, उम्र भर के बोझ तले

#
पागल हो गया है दिल, कुछ भी लिख देता है
कभी अपनी किस्मत तो कभी उसकी तक़दीर

मंगलवार, 28 जुलाई 2015

जाने क्योंहर कदम वो

जाने क्यों
हर कदम वो
मुझे बेबस कर जाता है
होंठो से निकले तीरो से
मेरा सीना भेद जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
खुद की बातों से कर हैरान
मेरी बातों से परेशां हो जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
सिसकियां भर कर मुझे भी
खून के आंसू रुलाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
मेरी हर बात से रूठ जाता है
अपने सपनो से
मेरी ख्वाहिशें धूमिल कर जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
मेरी साँसों की डोर सा
बंधा चला जाता है
महरूम हूँ में
जो वो भरपूर हुआ जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
अग्न से पीड़ित कर मुझे
खुद शीतल सा हुआ जाता है
मेरी आहट से ही
कंपकंपा जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
जाने क्यों
हर कदम वो
मेरा सुर्रूर
और मगरूर सा हुआ जाता है
#
नशे सा छा गया है तू बेशक मुझ पर
तुझ से बेहतर भी नशे है ज़माने में
बस दो जाम लगते है उन्हें भुलाने में

रविवार, 26 जुलाई 2015

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बजरंगी भाई जान॥

कुछ दिन पहले मेरे दोस्त  बजरंगी और बाहुबली में फर्क तय कर रहे थे। बिना देखे तब मेने कहा था की बजरंगी सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए है और बाहुबली एक धरोहर को दर्शाती है। में वहां कुछ गलत था। एंटरटेनमेंट के साथ बजरंगी एक संदेशात्मक फ़िल्म है। सन्देश दो देश के मोहब्बत ही नहीं। बल्कि आज जो हो रहा है हम अपने स्वार्थ में इतने खो गए है की मदद तो दूर उल्टा किसी मदद करने वाले की निष्ठा में हजार खामियां निकाल उसे भी रोक देंगे॥ मोहब्बत को एक आदमी और औरत के रिश्ते के इर्द गिर्द बांध दिया। जबकि असली मोहब्बत तो इंसान की इंसान से उसके दर्द से उसकी हंसी से उसके गम से है।

#काश वो मुकाम दुनिया में फिर लौट आए धर्म रंग भेद पर जानवर सा लड़ने वाला इंसान फिर इंसान हो जाये॥

शनिवार, 25 जुलाई 2015

कलियों सा बढ़ चला था मेरा मन फूल बनने से पहले ही मुरझा गया

कलियों सा बढ़ चला था मेरा मन
फूल बनने से पहले ही मुरझा गया

सींचा तो बहुत मेने मोहब्बत के नीर से
ज़ालिम की नफ़रत थी ऐसी झुलसा गया
कलियों सा बढ़ चला था मेरा मन
फूल बनने से पहले ही मुरझा गया

मर्यादा रूपी बाढ़ से, बचाया था मेने इसको
वहम का तूफ़ान था जो मिनटों में सब ढह गया
कलियों सा बढ़ चला था मेरा मन
फूल बनने से पहले ही मुरझा गया

विश्वास भरी रिश्तों की डोर से उसको बाँधा था
चंचल मन था उसका, जो एक लम्हें में डोर छोड़ गया
कलियों सा बढ़ चला था मेरा मन
फूल बनने से पहले ही मुरझा गया

#
अब पतझड़ के मौसम मुझको रास नहीं
क्योंकि बसंत आने की मुझको आस नहीं
हो सके कुछ सर्द लम्हें दें जाना
तपिश से अब कुछ पिघलने का विश्वास नहीं

बुधवार, 22 जुलाई 2015

एक दौर का अंत शब्दों के बाण से

आज मेने इस कदर शब्दों को निचोड़ा
एक ज़िन्दगी की शाखा ने साथ जो छोड़ा

खुद के हाथो से रिश्तों का कत्ल हुआ
मेरा वो तीखा शब्द था जिससे जख्म हुआ

खुशियों के आलम में जुबान अक्सर बहक जाती है
वापस आते नहीं शब्द, बस उनकी यादें रुलाती है

जीवन में जिह्वा का इस्तेमाल से पहले एक सवाल
कहीं कोई ना टूट जाए दिल, बस रखना इतना ख्याल

मौसम और भी आएंगे, जब आप ख़ुशी से इतराओगे
बहकते शब्दों से फिर किसी अपने को रुलाओगे

कोशिश मेरी है की खुद के दायरे बांध लूँ
किसी के हँसते चेहरे का लबो से न नाम लूँ

शब्दों का चयन ही मुझको, इंसान बनाएगा
वरना बहकती जिह्वा से, शैतान हो जायेगा

#
बस तक़दीर लिखता है बेशक वो खुदा
कभी खुद के शब्दों से भी अपने होते है जुदा

सोमवार, 20 जुलाई 2015

दिल की कलम से

कुछ लम्हें मेरे जीवन के
तेरे गुलाम हो गए
तेरे चाहत के बिना
हम बदनाम हो गए

तलाशती है बेशक आँखें तुम्हें
जमाना तुम से पहले जान जाता है
बेबसी का आलम है कुछ इस तरह
तुमसे जुदा होकर भी पास है

दूर जाता हूँ जितनी योजन
दिल उतना तेरे करीब हो जाता है
तड़पता है तन्हा, पंछी सा छटपटाता है
बिन मौसम ये आँखों से बरस जाता है

लौट जाए हम तो, इश्क़ की राह से
मगर रह रह उनका ख्याल जो आता है
जो मुझ से दूर जाने की सोच से ही डर जाता है
मेरा होंसला बस यूँ ही उसके आंसुओ पर टूट जाता है

अब तो रब्ब तू ही मेहरबानी कर
जिस्म से दिल की रवानी कर
या उनकी आँखों में रौशनी भर
उसकी हर अर्ज कबूल कर

#
टूट कर भी, दिल उनको याद करता है
खुद फ़ना हो गये
पर उनकी सलामती की फरियाद करता है

रविवार, 19 जुलाई 2015

शिथिलता की और चंचल मन

मस्तिष्क के गहन मंथन और मन की शिथिलता के कारण सब कुछ अनान्यास नजर आ रहा है। मयूर की भांति नाचने वाला मन किसी घोर अन्धकार की दुनिया में रस्ते की तलाश कर रहा है। अत्यंत तीक्ष्णता से कार्य करने वाला दिमाग के घोड़े बेलगाम से हो गए है। अब इस चिंतन से शायद कुछ हल निकल आये। रात्रि का पहर जब भी मुझे कचोटता है समझो की में बहुत ही द्वन्देश की अवस्था में होता हूँ। मानसिक पटल पर सिवाए चन्द बूंदों के कुछ नजर नहीं आ रहा वो बूंदें भी सुख कर सिर्फ निशाँ बाकि रह गए है। एक तरफ सही का प्रश्न है तो एक तरफ गलत का? समस्या ये भी है की जगह बदलने से सही और गलत का मायने भी बदलते नजर आते है। देर रात जागना मेरी प्रकृति कभी नहीं रही पर अक्सर जब भी मुझे कुछ चुनाव करने पड़े ज़िन्दगी ने मुझे चैन से सोने नहीं दिया। और हर बार ज़िन्दगी हार जाती और ये सामाजिक ज्ञान बाजी मार जाता है। शायद ये वो बात हो रही है पानी में रह क्यों मगर से बैर। अब रहना इन लोगो के साथ है तो इनके बनाये कायदे मानने होंगे या मानने का दिखावा करना होगा। जैसा अक्सर हम जब करते है किसी दूसरे धर्म या जाति के व्यक्ति के साथ उसके जीवन शैली को अपनाने या जानकारी होने का दम भरते है। हालाँकि सब कुछ आखिरी में मिलना मिटटी में है फिर भी जाने क्यों इतने फसादों में उलझे रहते है। जब कोई विपदा आये तब जरूर सब्र का परिचय दे देते है। अगर सामान्य जीवन में भी हम सब्र से एक दूसरे की मानसिकता को समझ उनका आदर करना सीख जाये तो शायद बहुत सी समस्याओ का निपटारा हो जाये। अक्सर मुझे तक़लीफ़ होती है कोई मेरी बुराई करता है जबकि उसने मेरा कुछ लीग नहीं पर वो मेरे मानसिक पटल पर अपने जिह्वा से उसके मानसिक जहर को छोड़ जाता है और वो जहर हमे तक़लीफ़ देता है। किसी के दिल में जगह बनाने में बरसो लग जाते है मगर एक छोटी सी घटना आप को उसके दिल से निकल बाहर फैंक देती है । सही मायने में तो फैंकने वाला गलत है क्योंकि उसने उसकी एक गलती के पीछे सो अच्छाइयों को जल दिया। जबकि ये समाज भी एक गलती को ज्यादा महत्व देता है उसके 100 गुणों पर एक अवगुण भारी हो जाता है। अब कोई संत आप को सांसारिक साधनो का उपयोग करता नजर आ गया तो आप अचानक उसके प्रति अपना दृष्टिकोण बदल देते हो क्योंकि आप ने अपने मस्तिष्क में उसकी छवि बना रखी थी उसको झटका लग जाता है। अगर हम खोजी दृष्टि रखते है तब हमें कोई बात बुरी नहीं लगती। मुझे जब तक आप को जानने व समझने की उत्सुकता होगी तब तक आप की बुराई और अच्छाई को में सकरात्मक नजरिये से अध्यन करूँगा और आप से अच्छी पहचान के बाद आप की कोई नई बात पता चल जाती है तो जैसे मुझ पर पहाड़ टूट पड़ा हो। ये नजरिया ही हमेशा हमारे रिश्तों व् ज़िन्दगी के दुखो क कारण बनता है।

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

धुंआ है ये मोहब्बत

धुआँ है ये मोहब्बत
एक बार बहुत नजर आती है
एक हवा के झोंके से
कहीं खो जाती है

मन होता बावरा जब तक धुआं होता है
और कुछ इसे नजर आता नहीं

बुधवार, 15 जुलाई 2015

कोई मन छु जाता है

कोई मन
छू जाता है
में अक्सर
कदम चुराता हूँ
वो फिर कुछ
कशिश बनाता है

कोई मन
छू जाता है
बंधे रखता है
किसी बहाने से
खफा होता है
मेरी नजरें चुराने से
मिठास आती है
पास बैठ जाने से

कोई मन
छु जाता है
पलकें छपका कर
हामी भरता है
कहने से शायद
वो घबराता है
अंखियो से ही
अँखियाँ लड़ाता है
बस वो रिश्ता सा
बंध जाता है

कोई मन
छु जाता है
कोई मन
छु जाता है

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

वो

खिलौना बना था जो किसी का
आज मुझे खिलौना बनाता है

चाबी से चलता था जो
वो आज चाभी घूमाता है

शायद भूल गया है अपने दुःख
जो मेरे सुख चुरा ले जाता है

मुझे दो आँसू, खुद के सकूँ के लिए

वज्र सा लगा है सीने को

उमंग भरे मन से
गए थे मिलने उनसे
गैर बता गए वो जब
वज्र सा लगा है सीने को

नजरों से जाने कितने वार करते है
बस जुबाँ से जाहिर होने से डरते है

जैसे चाहे हमे तोड़ मोड़ जाते है
खुद का दिल खोल, हमें बोझिल छोड़ जाते है

#
कैसे लिखूँ कोई नग्मा मेरे हजूर
तेरी याद आते ही, हो जाता हूँ मजबूर
ज़ख्म सा हो गया है तू सीने में
बस नजरों का मरहम लगाये फिरता हूँ

मंगलवार, 7 जुलाई 2015

जाने किस का दर्द लिख दिया

पास हो होता है फिर भी दिल क्यों रोता है
अँखियों से तो नहीं, दबी जुबान से जाहिर होता है

पास बैठकर मीलों का फासला क्यों होता है दरमियाँ
दिल की रुस्वाइयां , होंठो से क्यों नहीं होती है बयाँ

सवाल खामियों का नहीं, हसरतो का है जरूरत से ज्यादा
वो चुप सा रहता है, मेरा दिल जाने कितना उनसे कहता है

#song
में तेनु समझावा की
ना तेरे बिना लाग्दा जी

वे चंगा नहीं कित्ता बिबा मेरे दिल तोड़ के
वे बड़ी पछताया आँखा, दिल तेरे नाल जोड़ के

सोमवार, 6 जुलाई 2015

कविता:- एक राह

एक राह
चुनी है जो
भिन्नता से भरी
कांटे भी मिले
फूलो का साथ
ऊपर से भरा
आत्मविश्वास
चुनिंदा चाह
और सिर्फ
एक राह
चुनी है जो
भिन्नता से भरी

शनिवार, 4 जुलाई 2015

तानो से क्यों नहीं ऊबते लोग

हम अगर दुनिया से अलग होकर या खुद का भी बैठकर वीडियो देखे तो शायद दिन में हर कोई एक दूसरे पर कई बार तंज कास जाता है। कुछ हद तक ताने जीवन में प्रेरणा का काम करते है लेकिन वो तब जब आप की खामियों के लिए दिए गए हो, ना की आप की खुशियो पर कसे गए हो। कुछ दिन पहले मेने एक सहकर्मी को इसके लिए बोला था कि आप दुसरो के व्यक्तिगत जीवन पर ताने या टिप्पणी ना करें उनको समस्या होती है। आज में स्तब्ध रह गया जब मेने देखा कि जिनके लिए मेने उस सहकर्मी से कहा आज वो ही उसकी तरक्की पर तंज कास रहे है

उदाहरण से समझाता हूँ सही समझ आएगा आप को

बरसात का मौसम था कच्चे रास्ते पर फिसलन भरी थी कुछ लोग वहां चाय की दूकान पर खड़े थे और आने जाने वालों का गिरने पर मजाक उड़ा रहे थे। अब हर चीज की सीमा होती है कोई बुजर्ग सज्जन खड़े थे उन्होंने उन्हें मना किया आअप मदद की बजाए उन लोगो पर हंस रहे हो। आप को मदद करनी चाहिए ।
बुजर्ग की बात नागवार गुजरी इसलिए वो युवा भी उस रास्ते से निकल पड़े और जैसा सब के साथ हो रहा था वो भी गिर पड़े॥ अब जो खुद कुछ मिनट पहले गिर सम्भले थे वो जोर जोर हंसने लगे।

बुजर्ग जो वहां खड़ा देख रहा था उसके पास शब्द नहीं थे। क्योंकि नैतिकता का स्तर इतना गिर चूका है कि हम आज स्वयं के लिए जीते है। स्वयं को खरोंच बर्दाश्त नहीं दूसरे की चाहे जान निकल जाए पसंद नहीं॥

मेरे तो ये ही प्रार्थना है सब मित्रो से कि हंसी मजाक बुरा नहीं लेकिन किसी की व्यक्तिगत खामी को निशाना बना कर मजाक करना/तंज कसना शायद ठीक नहीं क्योंकि जब वो ही लोग आप को निशाना बनाएंगे आप अपने आप से बाहर हो जाओगे। और ज़िन्दगी को सुलझाने की बजाए उलझ कर रह जाओगे॥

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एक दिन फैंकता रहा कीचड़ हर राहगीर पर
शाम को देखा तो में भी कीचड़ हो गया था

कड़वे शब्द बोलता हूँ