शनिवार, 3 सितंबर 2016

खुलें में शौच मुक्त बनाना है

ना ख़ुद खाना है
ना औरो को खिलाना है
बस सोच है ये
अब हमारी
गाँव को
खुले में शौच मुक्त बनाना है

शौच से फ़ैलने वाले रोगों को
जड़ से ही मिटाना है
नन्हें बाल रूपी फूलो को
मुरझाने से बचाना है
मुझे अपने गाँव में
स्वच्छता का पौधा लगाना है
खुले में शौच मुक्त बनाना है

दादा और दादी
चाचा और चाची
माँ और पिता
भैया और बहना
सबको है समझाना
मुझे अपने गाँव के
इस कोढ़ को है मिटाना
खुले में शौच मुक्त बनाना है

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मानसिकता बदलने की जरुरत है
मेरे गाँव की भी तस्वीर खूबसूरत है
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कड़वे शब्द बोलता हूँ