मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

चुनाव:- लोकतान्त्रिक वैवाहिक स्वरूप आयोजन

चुनाव या कह सकते है सरकारी वैवाहिक लोकतान्त्रिक आयोजन
ये अपनी तरह का अनूठा आयोजन है जिसमे आयोजक को वेतन मिलता है। आयोजन में आने वाले लोग वोट रूपी शगुन से एक स्वस्थ समाज की कल्पना करते है कि उनके द्वारा चयनित उम्मीदवार उनको एक स्वच्छ वातावरण देगा जिसमे वो अपने कार्यो का निर्वहन निर्भयकता से कर सके। चुनते वक़्त उम्मीदवार का ईमानदार ही होना ही काफी नहीं होता क्योंकि अगर एक व्यक्ति कितना भी ईमानदार हो और वह व्यक्ति अपने क्षेत्र की समस्या को उच्च अधिकारी अथवा सम्बंधित विभाग में रखने की नेतृतीव् क्षमता रखता हो। दृढ़ता के साथ अपनी बात को ऊपर तक ले जाए।

मैने कुछ कर्मचारियों को चुनाव में ड्यूटी लगते ही उनकी भौहें तानते देखा है ये वो मेहनतकश लोग होते है जो सारा साल शायद एक कार्य का भी निर्वहन दिल से नहीं करते। जो व्यक्ति हमेशा मेहनत से कार्य करता है उसके लिए तो ये सुनहरा अवसर होता है अपने कौशल का प्रदर्शन करने का। अन्यथा आलसी व्यक्ति को ही ये चुनोतिपूर्ण कार्य प्रतीत होगा। और मेहनतकश इसे सहजता से कर भी जायेगा।
एक पल के लिए अगर आप को बताऊ तो आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के कार्यक्रम के हिस्सा हो जो कि अपने आप में अहम् उपलब्धि है। 

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

वो जब आये मेरे मोहल्ले में

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
होंठो से नहीं, नजरो से बतियाना हुआ
कुछ तो नजरो का मिलाना
कुछ उनका शर्माना हुआ

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
कुछ इस तरह उनका मुस्कराना हुआ
होंठ तो खुले नहीं, चेहरा गुलाब हो गया
देखते ही मैं तो लाजवाब हो गया

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
कुछ इस तरह उसका इतराना हुआ
उसने तो पूछ लिया, पता अपने ख़ास का
रंग उड़ गया मेरे आत्म विश्वास का

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
मेरा दिल ही निशाना हुआ
वो तो चले गए वापिस कब से
मेरे लिए उम्र भर का अफ़साना हुआ

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
तो मेरा दिल भी दीवाना हुआ

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

मोम सा हो गया हूँ मैं उस पत्थर के प्यार मैं

मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं
वक़्त से नाता तोड़ दिया
उस कम्बखत के इन्तजार में
मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं

बहुत जतन लगाये
उसके दिल को रास ना आया
मेरे धड़कते दिल का
उसको विश्वास ना हो पाया
मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं

मेरी आहों पर हँसता था वो
मेरी साँसों में रचता था जो
टूट कर बिखर गया उसकी बाँहों में
वो काँटे बिखेर गया मेरी राहों में
मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं

ज्योति बन जिंदगी रोशन कर दे ये समझा था मैं
आंसुओ का समुन्दर मेरी झोली में डाल गया है वो
नासूर बन जिंदगी को डस गया है जो
मोम सा हो गया हूँ मैं
उस पत्थर के प्यार मैं



बुधवार, 9 दिसंबर 2015

वजह क्या है मुझे चाहने की

तू गुलाबो से घिरा है
तेरा हर ख़्वाब भी मिला है
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की

संगमरमर सा तो में भी नहीं
जो मुझे मोहब्बत का ताज समझे
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की

बह गया हूँ तेरी आँखों से
कभी ज़ख्म तो कभी दर्द बनके
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की

मेरे दिल में कोई जगह नहीं
तेरे दिल का ख़्वाब सजाने की
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की
फिर इतना बता
वजह क्या है मुझे चाहने की

ट्वीट@kadwashabd

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

गीत:- बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

ना इसकी फिकर ना उसका है डर
हर दर्द से अनजान, ना चाहतो का असर

बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

इक झूठी मुस्कान, दूजा स्वर अभिमान
टूटा दिल नहीं, रुसवा है उसकी पहचान

बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

चर्चे उसके होते है अब हर दूकान और मकान
मीनारों और किलों से ऊँची हो गई है उसकी शान

बेख़बर हो ओ  ओ ओ ओ बेख़बर वो

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अंदाज ए यार हो गए बेज़ार
मोहब्बत का नहीं इख़्तियार

कड़वे शब्द बोलता हूँ