शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

भ्रांतियों का समाज

जीवन में कभी ये भ्रांति न पाले कि आपकी समस्या या आपके विचारों से किसी को भी कोई सरोकार है। इस समाज का केवल एक ही धर्म है वो है मतलब, जब तक हम एक दूसरे से जुड़े है तो केवल मतलब ही है। इसमें समाज गलत नही क्योंकि ये वास्तविक जीवन की जरूरत  और परंपरा बन चुका है। हाँ जिस काल के विचार मेरे जहन में कौंधते है वो विचार आज के युग में केवल किताबों में धरोहर बन गए है। आप के समक्ष सब आप के उन विचारों को सुनकर , पीठ पीछे खंडन व हास्य का पात्र बनाएंगे। यहाँ सवाल उनके गलत होने का नही क्योंकि सामाजिक नियम है जो विचार बड़े हिस्से को लाभप्रद लगे वो ही पालना में होना चाहिए,

समस्या ये है मुझे किसी से कोई भी वैचारिक, सामाजिक या व्यापारिक संबंध रखने में रुचि नही लेकिन पेट को पालने के लिए नौकरी, और नौकरी को चलाने के लिए समन्वय आवश्यक है, बेशक़ वो आपके विरुध चलता हो। मैंने समाज को वो कार्य करते देखा है जिनके लिए मुझे अक्सर टोका गया और खुद वो शौक से उन कार्यो को अंजाम देते है। इतनी दोहरी हो गई है जिंदगी नियमो का दोहन निजी आवश्यकताओं के आधार पर होने लगा है। भविष्य में कोशिश करूंगा अपने विचारों को किसी पर न थोपने की बजाए, उन्हें ग्रहण करूँ।

कड़वे शब्द बोलता हूँ