गुरुवार, 21 जून 2018

सन्त बनाम मानव

सन्त एक शब्द अगर आप किसी के लिए प्रयोग करते है तो अनायास एक सम्मान की भावना उमड़ पड़ती है परंतु समय के साथ भ्रांतियां जुड़ने लगी और हमने ऋषि, धर्मगुरुओं, समाजसेवियों व अन्य गणमान्य पुजारी इत्यादि लोगो को सन्त कहना शुरू कर दिया। उसका वास्तविक कारण आधुनिकता के दौर में असली संतों का न मिलना है।

सन्त है क्या?

वो मनुष्य जो ग्रहस्थ जीवन को त्याग , गृहस्थी में लीन लोगों के कल्याण के लिए निकल पड़ता है। नही समझें? कुछ आधुनिक युग के हिसाब से कहुँ तो वो अनुभवी व्यक्ति जो मनोदशाओं और परिस्थितियों के
ज्ञान से पारंगत , सामान्य व्यक्तियों को उनके समाधान या कल्याण के लिए अपने ज्ञान का संचार करता है। उनका मकसद कभी एक स्थान पर रहकर डेरा जमाना नहीं होता था वो निरंतर ज्ञान के प्रकाश से रोशन करते हुए आगे बढ़ जाते थे, उन्हें किसी समस्या या तकलीफ़ का ज्ञान होता था क्योंकि भ्रमण से से उनके ज्ञानकोष में निरंतर वृद्धि होती रहती थी, भावनाओं पर नियंत्रण कर वो एक मशीन की भांति कार्य करते थे ,

उदाहरण के तौर पर किसी की मृत्यु हो जाती है तो हम काफी विलाप करते है परंतु हमारे जानकर व रिश्तेदार हमे सांत्वना देते है कि प्रकृति का नियम है, क्योंकि वो भली भाँति परिचित कि किसी के जाने से कभी संसार नहीं रुकता। ठीक वैसे सन्त इन भावनाओं को दूसरे के माध्यम से साध कर स्वयं को इतना परिपक्व बना लेता है कि दुख और सुख के समय मनुष्य कुछ पल को अधीर हो जाता है, सन्त जानता है कि जब उसके मानसिक पटल से वह आघात पहुँचाने वाली बात वक़्त के साथ धूमिल हो जाएगी तो फिर वह मुख्यधारा में लौट आएगा, इसलिए वह उस वक़्त संजीवनी की भांति अन्य उदाहरणों से,  युक्तियों से उसका समाधान कर देता है। मेरी नजर में दो महापुरुष है जिनको मेने जाना है एक बाबा नानक और दूसरा गौतम बुद्ध , जिन्होंने सन्त शब्द को पूर्ण रूप से परिभाषित किया है। हालांकि मेरे ज्ञान से बाहर अन्य भी काफी सन्त हुए है।

आप कहेंगे कष्ट निवारण तो डॉक्टर भी करता है तो वह भी एक सन्त हुआ, एक वकील भी कानूनी समस्याओं से बाहर निकालता है वो भी सन्त हुआ, एक शिक्षक भी अज्ञानता के अंधेरे से ज्ञान के प्रकाश में ले आता है तो वह भी सन्त हुआ, पर मैं खंडन करता हूँ क्योंकि सन्त सांसारिक सुखों के लिए कार्य नही करता कि आपके गृहस्थ समस्याओं या जीवन यापन के लिए कुछ समाधान करेगा, उसका कार्य आपको आध्यात्मिक रूप से समग्र बनाना होता है वह चंचल मन को बांधने की प्रक्रिया पर बल देता है, वह यह फर्क समझाता है कि डॉक्टर कहता है ये दवा लो आपका रोग ठीक हो जाएगा, सन्त कहते है ये नियम अपनाओ रोग ही नही आएगा। वकील कहता है भाई से जायदाद किस तरह से हासिल होगी, सन्त कहता है कि भाई को हासिल करलो जायदाद का मोह ही छूट जाएगा, शिक्षक कहता है इस ज्ञान को प्राप्त करने से , तुम सांसारिक सुखों को प्राप्त कर सकते हो जबकि वो नही कहता उन सुखों के साथ दुख भी साथ आते है, दुख भी एक प्रक्रिया है और सुख भी लेकिन सन्त इन दोनों परिक्रियाओं में स्थिर रहने का भाव सिखाता है, सन्त हिंसक समाज को अहिंसा का मूल्य सिखाता है। सन्त समाज को व्यर्थ के तनाव से दूर रहने का मार्ग दिखाता है, सन्त को क्रोध नही आता वो मुस्कराने की कला में पारंगत होता है उसे आभास होता है कि क्रोध के पल मिटने पर, मनुष्य को जो पश्चाताप अनुभव होगा वह इस क्रोध से भी भयावह है जब वह स्वयं ग्लानि के भाव से गुज़रेगा। सन्त जीवन को संजीवनी देता है , बस कोई सन्त आपको मिल जाये तो आपका जीवन भी महक उठेगा।

गुरुवार, 14 जून 2018

तुम हाँ तुम

तुम हाँ तुम
प्रेरणा बनी थी मेरे कलम की

बड़े फ़रेबी अंदाज से, मुझे समझाया था
खुद के दासी होने पर मुझे मालिक बताया था

तुम हाँ तुम
जिसने मुझे हँसना सिखाया था

एक राह दिखाई थी, कि दुनिया बड़ी हसीन है
ऐसा उड़ा था मैं, जैसे तू ही मेरा मोहिसिन है

तुम हाँ तुम
जिसके खातिर उसूलों को छोड़ दिया

उतर गए मेरे कोरे मन में, जैसा चाहा लिख डाला
मोहब्बत होने लगी थी ज़िन्दगी से, तो बदल गया

तुम हाँ तुम
जिसने मेरी शराफ़त को निचोड़ दिया

मासूमियत भरी मेरी सीरत को, फ़रेब से रूबरू कर दिया
तन्हाई में बहने वाली तन्हा रगों को, जुदाई के दर्द से भर दिया

तुम हाँ तुम
जिसने मुझे तन्हा से रुसवा कर दिया

शिकवा करते है मुझ पर लिखते नहीं वो
जिनकी तारीफ़ से, मेरी कलम ही रूठ गई

तुम हाँ तुम
जिसकी वजह से जीने की वजह ही छूट गई
😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢😢

शनिवार, 9 जून 2018

सक्षम युवा:- एक कदम हुनर की और

गत दिनों सरकार द्वारा योजना चलाई गई, 'सक्षम'

इस योजना का मकसद बेरोजगार शिक्षित युवाओं को रोजगार का प्लेटफॉर्म मुहैया करवाकर हुनरमंद बनाना था। इस योजना से कर्मचारियों की कमी झेल रहे विभागों को भी फायदा मिला। कुछ विभागों के लिए यह योजना संजीवनी साबित हुई ठीक वैसे उन युवाओं के लिए भी जो लग्न से कार्य करना चाहते थे उनको संबंधित विभागों द्वारा नियमित कार्य दिया जाने लगा, प्रारम्भ में जो कार्य माह तक सीमित था वह अब 6 माह व उससे अधिक दिया जाने लगा।

मुझे भी गत सप्ताह सक्षम युवाओं के साथ काम करने का मौका मिला, मुझे अपना वो समय याद आया जब लगभग 6 वर्ष पूर्व मेने भी सरकारी कार्यालय में कार्य करना प्रारम्भ किया था। मेरे संकोची स्वभाव के कारण मैं कभी किसी कार्य से किसी अधिकारी को मना नही कर पाया शायद उसका परिणाम मुझे समय समय पर नए चुनौतीपूर्ण कार्य करने को मिले, जिसके पश्चात अनुभव में बढ़ोतरी होती गई।

सक्षम युवाओं के साथ जो मेरा अनुभव रहा वो इस प्रकार था:-

सामान्य:- कुछ युवाओं के लिए ये योजना मात्र थी जिनका मकसद केवल सरकारी योजना का आर्थिक लाभ उठाना होता है वो युवा या तो कार्य की कठिनता से घबरा छोड़ जाते है या बेहतर युवाओं के सहारे समय पूरा कर लेते है।

मध्यम:- कुछ युवा जोशीले होते है कार्य करने में उत्साहित रहते है पर इन युवाओं से कार्य करवाने के लिए एक सूझबूझ वाले प्रबंधक की आवश्यकता होती है। जिसके मार्गदर्शन में ये बेहतर युवा बन सकते है।

बेहतर:- इन युवाओं में गजब की क्षमता भरी होती है, केवल कौशल प्रशिक्षण की कमी के कारण , विभाग इनकी प्रतिभा का सही इस्तेमाल नही कर पाते, इन युवाओं में अपने कार्य को करने की गजब की लगन होती है। ये तय समय मे कार्य पूरा कर लेते है।

निजी अनुभव के आधार पर सक्षम युवाओं के लिए कुछ सुझाव:-

1. अनुशासन :- अक्सर सक्षम युवाओं में अनुशासन की कमी देखने को मिलती है, हमे स्कूलों में भी बचपन से सबसे पहला सबक अनुशासन का सिखाया जाता है जोकि अक्सर वक़्त के साथ अव्वल की होड़ में हम भूल जाते है। अनुशासन से अभिप्राय समय की पाबंदी, ईमानदारी से कार्य व आदेशो की पालना है। अधिकारी हो सकता है कि अपने कार्य की गर्ज में आपके व्यवहार को नजरअंदाज करदे, लेकिन ये आपके भविष्य को प्रभावित करने का प्रथम कारक साबित होगा।

2. अधिगम कौशल (सीखने की लग्न):- हर व्यक्ति सभी क्षेत्र में निपुण हो ये आवश्यक नही, लेकिन जब किसी क्षेत्र में हमे अनुभव न हो तो हमे उस क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों के कार्य के तौर तरीकों को गंभीरता से सीखना चाहिए, ये समझ कि यह तो मेरा कार्य नही आपकी संकीर्ण सोच को दर्शाता है आगे बढ़ने के लिए जीवन मे फूलों की सेज नही कांटों के भंवर से गुजरना पड़ता है। इसलिए जब कभी कठिन कार्य मिले तो उसके सरल उपायों(शॉर्टकट) की बजाए निपुण व्यक्तियों के सानिध्य में  तय मापदंडों के अनुसार कार्य करना चाहिए।

3. ऊर्जावान:- रास्ते कठिन होंगे तो तय है कि ऊर्जा का भी क्षय होगा, तो उस स्थिति में स्वयं को नकारात्मक ऊर्जा से बचकर स्वयं को सकारात्मक ऊर्जा से आगे बढ़ना चाहिए । किसी भी कार्य की सफलता आपके हाथ नही है लेकिन कोशिश पर आपका नियंत्रण है,  न हार मानने का जज़्बा एक दिन सफलता को अवश्य प्राप्त करता है।

सक्षम योजना आपके लिए कार्य सीखने का प्लेटफॉर्म है न कि जीविका का साधन, इसलिए अपने को हुनरमंद बनाये और योजना के माध्यम से बने अवसरों से आगे बढ़ने की कोशिश करें।

कड़वे शब्द बोलता हूँ