शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

बिखरी जिन्दगी के निखरे रंग

अपने कार्य के प्रति अंध प्रेम ने सामाजिक दुनिया से दूर कर दिया। पिछले महीने अपनों द्वारा चोट के उपरांत दफ्तर में अकेला रह गया था। सभी कार्यों से मुझे दूर कर दिया गया। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए बिल्कुल खाली बैठे रहना सजा से कम नहीं था। धीरे धीरे खाली रहने की आदत तो हो गई साथ ही कुछ रोचक बदलाव भी आ गए। समय से घर जाने लगा जिस कारण से शाम को सैर का समय मिलने लग गया। गाँव के बचपन के रिशतें फिर से हरे हो गए , बन्जर से रिश्तों में जैसे जान आ गई। अब वो सभी पुराने दोस्त खेतो की मेढ़ पर हर सप्ताह मिलने लगे है। शहर की अंधी चकाचौंध दुनियाँ से गाँव की अनपढ़ मिट्टी में खुशियाँ मिलने लग गई। जैसे कॉटन बोझ था मेरे दिल पर सारा उतर गया है। और अब दूर से शहर के उन लोगो को देखता हूँ तो उनका जीवन आजभी उन उलझनों से उलझा है वही सियासती चाल कभी वो चलते कभी उनके विरोधी। दुर्भावना वाले मन से कभी किसी पर दोषारोपण तो कभी किसी पर। खैर अभी जीवन सुखद व भरपूर है। देखते है आगे क्या रंग दिखलाता है जीवन फिर उसे शेयर करूँगा। अलविदा।। 

कड़वे शब्द बोलता हूँ