मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

प्रेम, गुलामी व खजाना

प्रेम
समय समय इसकी परिभाषा और अर्थ मनुष्य ने , अपनी समझनुसार अथवा परिस्थितियों के अनुसार बनाये है,

मेरा भी कुछ मत है, भिन्न हो सकता है लेकिन व्यर्थ नहीं है, आज हम जिस पुरुह समाज को स्त्री के दमन का सबसे बड़ा कारण मानते है वो भूल जाते है कि बहुत के गर्भ में क्या घटित हुआ कि आज समाज में ये हालात है, कोई भी पौराणिक कथा अथवा उपन्यास में औरत पर अत्याचार की दास्तान नहीं सुनाई गई, लेकिन शिष्टाचार के नाम पर कुछ नाइंसाफी अवश्य हुई है।

मतलब कि पहले स्त्री को इतना प्रेम किया जाता था या सम्मान दिया जाता था वो धीरे धीरे आन बान और शान का विषय बन गई, फिर वक़्त के साथ वर्चस्व की लड़ाई में शान के अहंकार में , जीव से कब अमूल्य वस्तु बन गई शायद मानव को भी पता नहीं चला, कब स्त्री प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गई। उसके शरीर की पवित्रता को परिवार का अभिमान और पुरुष के दमन को शौर्य माना जाने लगा। हालांकि कुछ बुद्धिजीवी इसका ठीकरा अन्य धर्म व जातियों पर फोड़कर, स्वयं की ग्लानि से बचना चाहते है, और ये भूल जाते है कि अच्छा और बुरा हम हमेशा अपनी सुविधानुसार धारण करते है।

एक व्यक्ति हेलमेट पहनने में सुरक्षित महसूस करता है दूसरा न पहनने में खुद का गौरव, आप उन दोनों से सिख स्वयं की सुविधा के हिसाब से ही लेते हो। जैसे आपको सरल व सुविधाजनक लगेगा आप वही रास्ता चुनोगे।  अथार्त कब स्त्री को अमूल्य वस्तु बना दिया गया यह समाज को खुद भी पता नहीं चला, बस अहंकार और झूठी शान की वजह से खुद को बदलते गए।

इतिहास में मुझे लगता है गुलाम और मालिक का संबंध ही वास्तविक प्रेम को दर्शाता है अन्यथा सभी प्रेम काल्पनिक व लघु समय की जरूरतों से पनपते है। जबकि गुलाम शोषित होने के बावजूद बरसों तक अपने मालिक की निस्वार्थ समर्पण करता है। मानव की मूल भावना ही ग़ुलाम वाली है। यह नहीं कि केवल गुलाम ही शोषित होता है, वह गुलाम भी अगर अपनी पत्नि और बच्चों से ठीक वैसे व्यवहार की अपेक्षा रखता है जैसा उसका उसके मालिक के प्रति है। अथार्त मानव की मूल भावना ही शोषण कर, प्रेम प्राप्त करना है।

हम कहते है घर में अक्सर झगड़े होते है क्योंकि प्रेम नहीं होता, प्रेम नहीं वहाँ किसी का शोषण नहीं होता, अगर कोई शोषित हो तो उस घर में आपको अपर सुख नजर आएगा, अब महिलाओं के शिक्षित होने के उपरांत उनकी बराबर की भागीदारी में आने के कारण ही पुरुष के अहम को चोट पहुंची है इसलिए परिवारों में तनाव रहता है, वहीं जो पुरुष झुककर शोषित होना स्वीकार कर लेता है वही घर स्वर्ग हो जाता है,

प्रेम वह गुलाम भावना है जो आपको निज हित त्याग कर किसी विशेष के लिए समर्पित हो जाना है।

सोमवार, 5 नवंबर 2018

दिखावे की मानसिकता या भ्रमित संसार

मेरे कुछ दोस्त अक़्सर मुझे मेरे लेख के प्रंशसक होने की दुहाई देते है, और ये उनका झूठ उस वक़्त पकड़ा जाता है जब वो मुझसे सवाल  ऐसे कर जाते है जिनका जवाब में ब्लॉग में दे चुका होता हूँ, मुझे उनके जीवन से कोई प्रभाव नही वो चोरी करें, किसी को धोखा दें, किसी से मतलबी रिशतें रखे इत्यादि, फर्क तब पड़ता जब वो मुझ से सम्बंधित विषयों पर असहजता भरे जवाब देते है या बहाने प्रवृति के जवाब देते है।
एक नए तो आज सवाल किया क्या चाहिए? इतनी हंसी आई मन में कि पूछिये मत क्योंकि आजतक मेने जब भी कोई इच्छा इस दोस्त को जताई तो इसके हैरतअंगेज बहाने तैयार रहते थे, इसने मुझे हमेशा महसूस करवाया कि मैं उसकी प्राथमिकताओं में कभी था ही नहीं।
और मैं तो सभी दोस्तों से कहता हूँ कि केवल ज़िन्दगी और मौत के अतिरिक्त कोई कार्य जरूरी नहीं होता, इनसे अलग आपको कोई बहाना बनाता है यो समझिए आप उसकी प्राथमिकता नही थे। मेरे लिए ऐसा बहुत कम रहा मेरे दोस्तों ने मुझे कोई बात कही हो और मैने अनसुनी कर दी या उसपर अमल न किया हो। इसलिए शायद में उम्मीद भी वैसी रखता  हूँ जो कभी पूर्ण नही होता और मन को ठेस पहुँचती है।
कभी कभी तो सबके रवैये एक जैसे देखने पर लगता है कि मैं ही गलत हूँ बाकी सब ठीक, ये दोस्ती, निस्वार्थ त्याग इत्यादि किताबों में पढ़ाए जाने वाले शब्दकोश है। जिनका जीवन से कोई संबंध नहीं है। खैर छोड़िए हम तो खामोशी से देखने के सिवा कुछ नही कर सकते, उनको करने दीजिए उनका कर्म, मैं तो विकास की असली प्रवृति अकेले शांत रहने की, दोबारा ढल से गया हूँ, किसी से भी ज्यादा मेल भाव अब कर ही नही पाता। बस एक अलग दुनियाँ ही अच्छी है।

शनिवार, 3 नवंबर 2018

दोस्त vs उसूल vs मानवता

पिछले कुछ दिनों से में अजीब उलझन में हूँ, मेरे विचार सामान्यतः किसी से भी मेल नही खाते, मैं मानवता का कट्टर समर्थक हूँ और नही चाहता मेरे साथ रहने वाले भी किसी को नफऱत न करें और न ही पीठ पीछे उनकी बुराई करें। मतलब कि मेरा मन मेरे दोस्तों में भी स्वयं की विचारधारा देखना चाहता है लेकिन अक्सर जो मिलती नहीं।
आज मेरे दो मित्र घर आए उनकी भी शायद ये परेशानी थी कि पिछले कुछ दिनों से मैने उनसे सही व्यवहार नही किया जबकि ये अधूरा सत्य है, पूर्ण सत्य नहीं। मैं अपने जीवन को जितना हो सके कष्ट देता हूँ कोई ऐसा मौका नही छोड़ता कि चलो रहने दो, दुनियाँ तो यूँ ही चलेगी और अगर ऐसे कर दिया तो कुछ दिन बाद वो बात उससे से भयंकर मानसिक पटल पर असर करती है। मेरी भी धारणा पुराने लोगों की तरह है कि कभी किसी की पीठ पीछे बुराई न करें, कभी जहाँ विचार न मिलते हो वहाँ मेल जोल बढ़ाए, लेकिन आधुनिक समाज में दोस्ती हो या सामाजिक संबंध सब मतलब के आधार पर ही बनते है जिस कारण जब मैं अपने दोस्तों को किसी की बुराई करते देखता हूँ और जाने अगले पल उनके साथ उनका गूढ़ मेलजोल और फिर बाद में दोबारा बुराई करते नजर आते है तो बहुत ठेस पहुँचती है।

मेरा बचपन से एक दोस्त था मेने कभी उसकी दोस्ती में मेरा या उसका नही देखा, उसकी आर्थिक स्थिति बेहतर न थी,  कभी उसके मदद के सामने मेरी कोई मजबूरी आड़े नही आई, लेकिन रोटी ने हमे दूर कर दिया, नए दोस्त बने और अब मैं उसके पास नए दोस्तों के साथ जाने लगा था तो उसका व्यवहार अपेक्षा के अनुरूप न था, मुझे तो नही पर मेरे दोस्तों या जानकारों को वो नापसन्द करता था, आज उसके पास सब है मगर शायद वो दोस्ती वाली नियत नहीं, और धीरे धीरे मेरा मन उसकी इन हरकतों से दूर होने लगा, अब मेरे मन में उसके लिए वो भावनाएं नही थी तो एक सामान्यतः मनुष्य कि भांति मेने दोनो की कहानी को दोबारा पढ़ा तो मालूम हुआ मेरे दोस्ती के समर्पण और उसकी निष्ठा में जमीन आसमान का अंतर है। हालांकि ये पैमाने में जरूरत और पैसा इस्तेमाल था पर कहते है न सच्ची दोस्ती में कुछ आड़े नही आता तो उसकी तरफ से भी नही आने चाहिए थे। इस दोस्ती से जो अनुभव प्राप्त हुआ उसने कुछ धारणाओं को मेरे मन में एक नियमावली बना दी।

अब जहाँ कार्य करता हूँ वहाँ मेरे कुछ दोस्त बनें और मेरा स्वभाव आज भी वैसा है जबतक मुझे किसी भी व्यक्ति में खोट नजर नही आता मैं अपनी हद से भी ज्यादा उनके लिए समर्पित रहता हूँ और अगर उस रिशतें को दोस्ती की शक्ल मिल जाये तो समर्पण और घर हो जाता है, ऐसे ही 3 से 4 दोस्त बनें जो मुझे लगा मेरी विचारधारा या दोस्ती का जज़्बा रखते है, पर समय के साथ कुछ बातें उनकी मुझे बुरी भी लगती मगर जो बातें समान्यतः थी मेने इग्नोर कर दी जैसे:-

हम हर शनिवार ऑफिस जाते थोड़ा बहुत काम निपटा कर आउटिंग पर चले जाते, एक दिन वो कहते कि मुझे घर कोई काम नही इसलिए उठ चला आता हूँ, उनके कहने का लहजा पता नही कैसा था पर ये बात दिल को बहुत चोट कर गई जैसे मैं उनको बुलाता हूँ बोझ बनकर,

दूसरी बात जब हुई एक दिन एक दोस्त की गाड़ी खराब हो गई, उसने मुझ से गाड़ी माँगी, मेने स्वभाविक एक पल भी न सोचा कि मेरी पत्नी गर्भवती है और किसी भी वक़्त जरूरत हो सकती है नजरअंदाज करते हुए कहा, घर से गाड़ी उठा लो, अन्य दोस्त के साथ वो घर गाड़ी लेने आए , मेने उस दूसरे दोस्त से कहा एक गाड़ी ले जाओ, दूसरी में सुबह मैं ऑफिस आ जाऊँगा तो उसने अपनी मजबूरी गिना दी, उस वक़्त दूसरी चोट लगी कि मेरी परिवारिक ज़रूरत भी तो मेरी मजबूरी हो सकती थी, इस घटना का इतना दुष्प्रभाव हुआ मुझ पर दो दिन बात एक और अन्य दोस्त ने मुझ से गाड़ी मांगी तो मैने साफ मना कर दिया, मैं कमजोर आदमी मना करने पर इतना बुरा लगा जैसे मेने किसी का जीवन उजाड़ दिया हो। खैर मेने इस बात को भी भुला दिया।

तीसरी घटना हुई दफ्तर के एक अफ़सर के बेटे की शादी थी तो उन्होंने चुनींदा लोगो को बुलाया, जैसा कि मेरे दो दोस्त भी प्रतिष्ठित व्यक्तियों में थे तो उनको भी बुलाया गया, वो अफ़सर हम लोगों की विचारधारा से विपरीत था , चलो कोई बात नही वो भी, लेकिन दिन में उनमें से एक दोस्त इतनी बुराई कर रहा उस अधिकारी की और बार बार कह रहा हम नही जाएंगे उसके बेटे की शादी में इत्यादि, लेकिन अगली सुबह बड़ी हैरानी हुई जानकर कि वो दोनों उस शादी में बाइज्जत पहुँचे, मेने सोचा, चलो कोई न सामाजिक रिशतें निभाने के दस्तूर में चले गए होंगें, दिन में वो शादी की कहानियां सुना रहे, फिर उसके बाद उन्होंने फिर उस अधिकारी की बुराई शुरू करदी, फिर माथा ठनका, ये मेरे दोस्त नही हो सकते, पुराने समय लोग कहते थे जिसके नमक खाओ उसकी बुराई न करो, और यहाँ तो उस अधिकारी वाली विचारधारा हो रही, बस तीसरी चोट लगी सम्मान की जो सबसे बड़ी होती है ऐसे तो ये शायद मेरी भी पीठ पीछे बुराई करते हो,
इस तरह तीसरी घटना के बाद मेने खुद को 4 साल पहले वाले विकास के साँचे में लौटा दिया, न्यूनतम बोलचाल, व्यवहारिक राम राम, और खुद को चिंतन के स्वरूप में ढाल लिया, क्योंकि मुझे तो दुश्मन की भी बुराई नही करनी आती। फिर भी मेने उनको मौके दिए सुधारने को अगले शनिवार उनको अपनी लोकेशन बताई और आने को कहा, क्योंकि मैं अन्य दोस्त के साथ था, वो वहाँ नही पहुंचे, यहाँ मुहर लग गई कि इस दोस्ती के दिन लद गए,

हो सकता हूँ मैं गलत हूँ पर इस वक़्त तो मैं उसी चिंतन के स्वरूप में चल रहा हूँ जाने कौन सी बात मुझे वापिस लौटा दें, या कहीं दूर ही ले जाए, मगर आप सबसे ये जरूर कहना चाहूँगा, कि दोस्ती युँ ही न किया कीजिये मेरी तरह, हर कोई तुम्हारी तरह नहीं होता।

रविवार, 7 अक्तूबर 2018

ज़िन्दगी:- उलझे सवालों की किताब

हम में से ज्यादातर व्यक्ति पारिवारिक अथवा सामाजिक रिश्तों में असमंजस की स्थिति में रहते है, हमें मालूम नही होता कि हमारा कौन सा रास्ता सही है कौन सा गलत? इस कमोबेश में हम अक्सर उन लोगों से सलाह की अपेक्षा रखते है जिनको हम अपना शुभचिंतक या सुलझा हुआ व्यक्तित्व समझते है। जबकि ज्यादातर इन बातों में हम किसी दूसरे की सोच या समझ अपने जीवन में थोप लेते है।
उदारहण के तौर पर एक कुँवारा व्यक्ति जब किसी शादीशुदा से सलाह लेता है तो शादीशुदा आदमी उसकों अपने अनुभव बताने की बजाए जो कुंठा उसके जीवन में अथार्त जो खामी राह जाती है उन्हें उसके माध्यम से पूरा करवाना सुनिश्चित करें। वो कहेगा शादी का कोई फायदा नहीं शादी नरक होती है अकेले जीवन व्यतित करो, जबकि वो शादीशुदा जीवन के वो भावनात्मक पहलू बताना भूल जाता है या नजरअंदाज करता है जोकि अक्सर सभी महसूस करते है। शादी की वो रस्मे पहली बार हल्दी लगना, सभी रिश्तेदारों के केंद्र बिंदु बन खास अनुभव करना, जीवन में एक बार उम्मीद से बेहतर वस्त्रों को पहनना, घर में उसका एक अलग महत्व बढ़ जाना, नए रिश्तों का अपनापन इत्यादि बहुत से लम्हें वो नही बताता क्योंकि खुशियाँ हम जल्दी भूल जाते है और गमों का शरीर में घर बना देते है। विचारों के इस मंथन में हमेशा कोशिश करता हूँ अच्छे बुरे हर पहलू पर विचार करूँ। मेरी नजर में रिशतें बहुत मायने रखते है, लेकिन समाज कहता है कि रिश्तों में कुछ छिपा नही होना चाहिए जबकि मुझे लगता है हर व्यक्ति की निजता का स्थान होना आवश्यक है। पति पत्नि पर व पत्नि पति पर गिध्द की तरह नजर जमाते है और इस व्यवहार का परिणाम हमेशा उल्टा आता है, किसी एक को लगता है कि मेरे इतने त्याग के बावजूद मुझ पर भरोसा नहीं और वो वही गलती दोहराएगा, जबकि भरोसे की सूरत में किसी एक को लगेगा कि अपनी भावनाओं को नियंत्रण कर मुझे अपने हमसफ़र के भरोसे को कायम रखना है।

शेष फिर कभी अभी काम है कुछ.....

सोमवार, 1 अक्तूबर 2018

स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2018

जिला करनाल को आज दिनांक 2 अक्टूबर 2018 को गांधी जयंती के शुभअवसर पर सम्मानित किया गया। यह गौरव जिला करनाल ने 1 अगस्त से 31 अगस्त 18 तक चलाये गए सर्वे में तय मापदंडों में बेहतरीन कार्य के लिए दिया गया
कैसे हुआ संभव?

सरकार द्वारा निर्देशानुसार 28 जुलाई 2018 को माननीय श्रम व रोजगार मंत्री श्री नायव सिंह सैनी द्वारा किताब का विमोचन तथा स्वच्छता शपथ दिलाकर, स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2018 का जिला करनाल में शुभारंभ किया गया।
डगर आसान न थी, भारत सरकार द्वारा तय मापदंडों में जिला करनाल 70 प्रतिशत कार्य में अव्वल था लेकिन उसका 30 प्रतिशत प्राप्त करना भी चुनौती का कार्य था जिसमें जिला प्रशासन द्वारा रणनीति तय कर 14 बिंदुओं को चिन्हित किया गया। सबसे पहले सभी गाँव में स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2018 के बैनर को ग्राम सचिवालय/पंचायत घरों में लगवाकर गाँव स्तर पर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया, इसके पश्चात जिला कार्यालय से 3 स्वच्छता रथों को माननीय उपायुक्त महोदय द्वारा हरी झंडी देकर रवाना किया गया, जिन्होंने सभी 382 ग्राम पंचायतों का भ्रमण कर सर्वेक्षण की जानकारी पहुंचाई। इन बिंदुओं में मुख्यतः गन्दा पानी न खड़ा हो उसके लिए सोखते गड्डो का निर्माण, कचरे के उचित निपटान के लिए गार्बेज पिट बनाना जिस दौरान यह ध्यान दिया गया कि गीले कचरे जैसे रसोई का कचरा, फसलों के अवशेष तथा गोबर के लिए हर गांव में कम्पोस्ट पिट का निर्माण करवाना सुनिश्चित किया गया। जिन घरों में आँगन में जगह थी उनको किचन गार्डन बनाने के लिए प्रेरित किया तथा रसोई का गीला कचरा खाद के रूप में इस्तेमाल करने को प्रेरित किया गया।
सभी सार्वजनिक स्थलों पर सूखे कचरे के लिए नीले व गीले कचरे के लिए हरे कूड़ेदान का प्रयोग या स्थानीय संसाधनों को जुटाकर  टीन के कनस्तर जैसे   सामान का कूड़ेदान के रूप में प्रयोग करने की मुहिम शुरू की गई। सभी सार्वजनिक स्थलों जैसे आंगनवाड़ी, स्कूल, चौपाल, हाट बाजारों पर श्रमदान करके  सफाई अभियान चलाया गया। लगभग एक सप्ताह तक गाँवोँ में मुनियादी द्वारा स्वच्छता सर्वेक्षण ग्रामीण 2018 बारे जागरूक किया गया। स्कूलों में विद्यार्थियों द्वारा स्वच्छता रैली निकालकर गांव गाँव जन जन तक स्वच्छता संदेश पहुँचाया गया। इसके साथ साथ नुक्कड़ नाटक, मोहल्ला सभा व निगरानी समितियों द्वारा सुबह शाम खुले में शौच मुक्त की निरंतरता बनाये रखने को ठीकरी पहरा दिया गया तथा सुनिश्चित किया गया गाँव में कोई भी व्यक्ति खुले में शौच न जाता हो। ग्राम स्तर पर जिला प्रशासन कि सभी इकाई जैसे आंगनवाड़ी वर्कर, आशा वर्कर, ग्राम सचिव, चौकीदार, सफाईकर्मी, स्वयं सहायता समूह आदि ने ग्रामीणों को जागरूक करने में अहम योगदान दिया। कुछ गांवों मरीन स्वयंसेवी व निजी संस्थाओं ने भी बढ़ चढ़ कर अभियान में हिस्सा लिया। ग्राम पंचायतों द्वारा भी गाँव में स्वच्छता स्लोगन की पेंटिंग करवाई गई। स्वच्छता में अहम योगदान कर लिए स्वच्छग्रहियों को सम्मानित किया गया। इसके साथ ऑनलाइन एप्प पर ग्रामीणों को सिटीजन फीडबैक भरने के लिए जागरूक किया गया जिसमें सक्षम युवा, आंगनवाड़ी वर्कर, आशावर्कर, जन प्रतिनिधियों, स्वयं सहायता समूह, व कॉलेज जाने वाले विद्यार्थियों ने अहम योगदान दिया।
इन सब कार्यों के उचित किर्यान्वयन हेतु अतिरिक्त उपायुक्त महोदय द्वारा पर्त्येक खण्ड के लिए नोडल अधिकारी बनाये गए जिनके द्वारा सभी गाँवों में तय मापदंडों पर कार्य की समीक्षा व करवाना सुनिश्चित किया गया। समय समय पर कि जाने वाली गतिविधियों की मीडिया रिपोर्टिंग द्वारा जन चेतना का कार्य किया गया। सोशल मीडिया पर भी अपडेट रहकर, ग्रामीणों से  संपर्क बनाया गया।

जिला करनाल के लिए जनवरी 2017 में खुलें में शौच मुक्त का अचूक लक्ष्य, अगस्त 2017 में स्वच्छता पखवाड़ा में अग्रणी स्थान, इसी कड़ी में ग्राम स्वराज अभियान में बेहतर प्रदर्शन और अब स्वच्छता सर्वेक्षण ग्रामीण 2018 में अवार्ड मिलना मील का पत्थर साबित हुआ।

बुधवार, 26 सितंबर 2018

भावुक पल जिंदगी के

कौन कैसा है
अच्छा या बुरा

इस बात पर नहीं बात करनी , आज बात कहनी है एक व्यक्तिगत भावनाओं की, अक्सर हम कहते है कि केवल  बेटी जब बाबुल का घर छोड़ती है तो वो पल गम और खुशी एकमात्र पल होता है, मैं इसके पूर्णत विरोध में हूँ।

ऐसे भावुक पल जिंदगी में बहुत बार आते है बस कुछ महसूस करते है कुछ हल्के में गुजर देते हैं।

मेरे लिए ये पल बहुत बार आए, मुझे जब अपने दोस्त छोड़ने पड़े, वो हालांकि अपने उम्दा भविष्य के लिए आगे बढ़ जाते है। उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना तो होती है ख़ुशी का पल होता है, ठीक वहीं दिल में जोर से कसक उठती भी है। और लगता है सब छूट रहा है। और ये बात आपके दिल में ही घर कर जाती है, कुछ लम्हों बाद दिल उन दोस्तों की अच्छी यादों को नसीब मानकर एक मन मंदिर में तस्वीर बना देता है।

बस यूँ दिल भावुकता के पल को सँजो लेता है।

मंगलवार, 4 सितंबर 2018

शिक्षक

शिक्षक

मेरे लिए उस दिए के समान है जो aghyanta के अंधकार में शिक्षा रूपी रोशनी से सृजन करता है।

शिक्षक

मेरे लिए उस कुम्हार के सामान है जो मुझ माटी को एक आकार में ढालकर, समाज में दिशा और दशा प्रदान करता है।

शिक्षक

मेरे लिए वो रास्ता है जो मेरे जीवन को मंजिल तक पहुँचाता है

शिक्षक

और क्या कहूँ
शिक्षक ही वो स्तम्भ है जिसपर मुझे रचने का भार है, शिक्षक ही मेरे जीवन का सार्थक आधार है

रविवार, 15 जुलाई 2018

चॉकलेट की जैसी हो तुम

चॉकलेट की जैसे हो तुम

घुल जाती हो, होंठो से लगाते ही
ख़ुमारी छा जाती है नशे सी
चॉकलेट की जैसे हो तुम

कभी कभी कड़वी भी लगती हो
पर आदत है कि छूटती नही तुम्हारी
चॉकलेट की जैसे हो तुम

महँगी भी बहुत हो,
इसलिए अक्सर ख़्वाहिश मिटा देता हूँ
खुशबू से महक लेता हूँ
चॉकलेट जैसे हो तुम

बर्दशात नहीं होता, जब तुम किसी के पास हो
मेरी आँखों में नमी होती जब उदास हो तुम
खुशी को तेरी दूर चला जाता हूँ
यादों में खुद को भी भूल जाता हूँ
बिल्कुल
चॉकलेट जैसे हो तुम

लिखता तुम से हूँ, तो औरों की क्यों बात करते हो
इरादे तुम बदल लेते हो, मौसमी समाज से डरते हो
फिर मेरी खामोशी पर आहें भरते हो
चॉकलेट जैसे हो तुम

मालूम नहीं कब पढ़ते हो मेरे अल्फाज़
तुमसे बात कहने का एक ये ही है अंदाज
मेरी पहुँच से दूर हो गए हो तुम
चॉकलेट जैसे हो तुम

महंगे और शौकीन
खुशबू और हसीन
चॉकलेट जैसे हो तुम

कभी कड़वे तो कभी मीठे
नशा वन रगों में बस जाते हो
हाँ तुम ही तो
चॉकलेट जैसे हो तुम

#दोस्त #दुश्मन

बुधवार, 11 जुलाई 2018

माँ के दिल से

प्रिय हो तुम,
मेरे श्वास से भी ज्यादा
#कड़वाशब्द
माँ शब्द ....माना कि सँसार है
पर शिशु ही ममता का आधार है
#कड़वाशब्द
तेरी अठखेलियों से खिलती हूँ,
तुझ से ही, मैं खुद से मिलती हूँ
#कड़वाशब्द
शिकन तेरी, मेरी बेचैनी बढ़ाती है
माँ की मुस्कान, तेरी हँसी से लौट आती है
#कड़वाशब्द
रोज तेरी नई लीला, माँ का आनंद बन जाती है
शिशु की किलकारी, माँ के आंगन की बाती है
#कड़वाशब्द
ममता के चिराग में, रोशनी भर भर आती है
जब माँ की गोद एक नन्हें फूल से महक जाती है
#कड़वाशब्द
माँ की बात आज तुम्हें एक माँ ही सुनाती है
ममता रूपी दिए कि शिशु से अलख जग पाती है
#कड़वाशब्द
तुम बिन हर शब्द ममता का अधूरा है
मेरे शिशु से ही मेरा परिवार भरा पूरा है
#कड़वाशब्द
तो माँ की ममता के बखान में याद रखना जरूर
हर माँ के लिए उसका शिशु होता है उसका ग़ुरूर
#कड़वाशब्द
तेरे माथे को चूम कर जो सकूँ मिल जाता है
वो एहसास ही मुझे, माँ होने का हक़ दिलाता है

एक माँ की कहानी ....उसकी जुबानी

गुरुवार, 21 जून 2018

सन्त बनाम मानव

सन्त एक शब्द अगर आप किसी के लिए प्रयोग करते है तो अनायास एक सम्मान की भावना उमड़ पड़ती है परंतु समय के साथ भ्रांतियां जुड़ने लगी और हमने ऋषि, धर्मगुरुओं, समाजसेवियों व अन्य गणमान्य पुजारी इत्यादि लोगो को सन्त कहना शुरू कर दिया। उसका वास्तविक कारण आधुनिकता के दौर में असली संतों का न मिलना है।

सन्त है क्या?

वो मनुष्य जो ग्रहस्थ जीवन को त्याग , गृहस्थी में लीन लोगों के कल्याण के लिए निकल पड़ता है। नही समझें? कुछ आधुनिक युग के हिसाब से कहुँ तो वो अनुभवी व्यक्ति जो मनोदशाओं और परिस्थितियों के
ज्ञान से पारंगत , सामान्य व्यक्तियों को उनके समाधान या कल्याण के लिए अपने ज्ञान का संचार करता है। उनका मकसद कभी एक स्थान पर रहकर डेरा जमाना नहीं होता था वो निरंतर ज्ञान के प्रकाश से रोशन करते हुए आगे बढ़ जाते थे, उन्हें किसी समस्या या तकलीफ़ का ज्ञान होता था क्योंकि भ्रमण से से उनके ज्ञानकोष में निरंतर वृद्धि होती रहती थी, भावनाओं पर नियंत्रण कर वो एक मशीन की भांति कार्य करते थे ,

उदाहरण के तौर पर किसी की मृत्यु हो जाती है तो हम काफी विलाप करते है परंतु हमारे जानकर व रिश्तेदार हमे सांत्वना देते है कि प्रकृति का नियम है, क्योंकि वो भली भाँति परिचित कि किसी के जाने से कभी संसार नहीं रुकता। ठीक वैसे सन्त इन भावनाओं को दूसरे के माध्यम से साध कर स्वयं को इतना परिपक्व बना लेता है कि दुख और सुख के समय मनुष्य कुछ पल को अधीर हो जाता है, सन्त जानता है कि जब उसके मानसिक पटल से वह आघात पहुँचाने वाली बात वक़्त के साथ धूमिल हो जाएगी तो फिर वह मुख्यधारा में लौट आएगा, इसलिए वह उस वक़्त संजीवनी की भांति अन्य उदाहरणों से,  युक्तियों से उसका समाधान कर देता है। मेरी नजर में दो महापुरुष है जिनको मेने जाना है एक बाबा नानक और दूसरा गौतम बुद्ध , जिन्होंने सन्त शब्द को पूर्ण रूप से परिभाषित किया है। हालांकि मेरे ज्ञान से बाहर अन्य भी काफी सन्त हुए है।

आप कहेंगे कष्ट निवारण तो डॉक्टर भी करता है तो वह भी एक सन्त हुआ, एक वकील भी कानूनी समस्याओं से बाहर निकालता है वो भी सन्त हुआ, एक शिक्षक भी अज्ञानता के अंधेरे से ज्ञान के प्रकाश में ले आता है तो वह भी सन्त हुआ, पर मैं खंडन करता हूँ क्योंकि सन्त सांसारिक सुखों के लिए कार्य नही करता कि आपके गृहस्थ समस्याओं या जीवन यापन के लिए कुछ समाधान करेगा, उसका कार्य आपको आध्यात्मिक रूप से समग्र बनाना होता है वह चंचल मन को बांधने की प्रक्रिया पर बल देता है, वह यह फर्क समझाता है कि डॉक्टर कहता है ये दवा लो आपका रोग ठीक हो जाएगा, सन्त कहते है ये नियम अपनाओ रोग ही नही आएगा। वकील कहता है भाई से जायदाद किस तरह से हासिल होगी, सन्त कहता है कि भाई को हासिल करलो जायदाद का मोह ही छूट जाएगा, शिक्षक कहता है इस ज्ञान को प्राप्त करने से , तुम सांसारिक सुखों को प्राप्त कर सकते हो जबकि वो नही कहता उन सुखों के साथ दुख भी साथ आते है, दुख भी एक प्रक्रिया है और सुख भी लेकिन सन्त इन दोनों परिक्रियाओं में स्थिर रहने का भाव सिखाता है, सन्त हिंसक समाज को अहिंसा का मूल्य सिखाता है। सन्त समाज को व्यर्थ के तनाव से दूर रहने का मार्ग दिखाता है, सन्त को क्रोध नही आता वो मुस्कराने की कला में पारंगत होता है उसे आभास होता है कि क्रोध के पल मिटने पर, मनुष्य को जो पश्चाताप अनुभव होगा वह इस क्रोध से भी भयावह है जब वह स्वयं ग्लानि के भाव से गुज़रेगा। सन्त जीवन को संजीवनी देता है , बस कोई सन्त आपको मिल जाये तो आपका जीवन भी महक उठेगा।

कड़वे शब्द बोलता हूँ