शनिवार, 31 जनवरी 2015

आखिरी पन्ना ज़िन्दगी का

क्यों ज़िन्दगी ऐसे इम्तिहान लेती है अक्सर बरसों के साथ आप को अपने प्रियजनों से अलग होना पड़ता है
आसपास होने के बावजूद दूरिया मीलो की हो जाती है।। इतना भी आसान नहीं होता एकदम ज़िन्दगी एक पटरी से दूसरी पटरी पर ले जाना।। बहुत कुछ छूट जाता है अंदर से कुछ घट रहा होता है।।

कल वेद सर की रिटायरमेंट थी दफ्तर में अक्सर वो रूखे व्यवहार के लिए जाने जाते थे।। कल उनकी बोलने की बारी आई तो उनका गला भर आया और उन्होंने साबित किया जो बाहर से जितना सख्त अंदर से उतना नरम होता है।। सभी की धारणा है की उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता शायद ये कोई नहीं सोचता होगा अकेले में वो भी उन सब बातों के मायने निकालते होंगे।। में खुश हूँ मुझे मौका दिया उन्होंने उनकी स्कूटर उनके घर पहुंचाने का।। सुखद अनुभव था यह मेरे लिए।।

बस एक गाना उनके नाम
कल तू चला जाएगा तो में क्या करूँगा
तू याद बहुत आएगा तो में क्या करूँगा

शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

फिर वो कहानी

बरस बाद आज वो आये हमारी गली
मेरे मोहल्ले की हर कली, महक चली

नजरें थी उनकी मेरे मकान पर
फ़िज़ा मुस्कराई सुन्सान घर की शान पर

पर उसे नजर ना आई कोई हलचल मेरे मकान पर

मोहल्ला भर पूछा मेरा पता और ठिकाना
पर किसी ने भी उसे था ना बताना

दूर कही था चला गया वो
अब जी भर उसकी यादों पागल हो

वो दिन आज भी लिखा उस चोराहे पर
तेरे इनकार से वो चला गया था दो राहों पर
एक मौत थी एक थी ज़िन्दगी

ज़िन्दगी तुम थे जिसने ठुकरा दिया
मौत को उसने गले लगा लिया

कितनी थी में पागल जो दिल की बात कह ना पायी
मोहब्बत में कभी ने मिले किसी को दिलबर की ऐसी रुस्वाई

इतना ही वो भी कह पायी
उसकी साँसों ने छोड़ी उसकी कलाई

आज फिर इस मोहब्बत ने
एक कहानी अपने हिस्से है पाई

# रब्ब क्यों दिल देता है
देता है तो फिर क्यों
दिल के बदले जिंद लेता है

फलसफे ज़िन्दगी के

बहुत उदास है ज़िन्दगी
खुश में बहुत हूँ
पर मेरे अपनों से देखा नहीं जाता

कोई हँसता देखता है मुझे
अन्दर का दर्द समझ ना पाता

जमीन खिसका देते है मुझको चाहने वाले
मेरे ही घरोंदे की ईंटे चुरा जाते है

में जिनको पलकों पर हूँ बिठाता
वो मेरा चैन उड़ा जाते है

आज लिखने को कुछ खास नहीं
मेरे शब्दों में शायद मिठास नहीं

में छोड़ भी दूं ये दुनिया
किसी के याद करने की आस नहीं

बुधवार, 28 जनवरी 2015

शायरी ट्वीट्स

दोस्त तुम बुरे नहीं
मेरा दृष्टिकोण बुरा है

अंदर से टूटा हूँ में कांच की तरह
तुझे चमक नजर आती टूटे दिल की
मुझे है की टुकड़ो की चुभन ने है मारा

किस्से और भी है मेरे ज़हन में
सुनाया मुझ से अब जाता नही
तू इस कदर रो पड़ा दिल भर के
मुझे से कोई आंसू छुपाया जाता नहीं

क्यों तोड़े दिल तुम्हारा
जब कुछ लगता ही नहीं हमारा

गम हो गर इतने तुझे
तो मेरे नाम कर दे

कुछ अन्धकार हुआ है
शायद मेरे दर्द रस्ता भूल जाए
और सकूँ आये सीने को।।

पढ़ लिखा नहीं तुझ सी किताबें मेने
पर ज़िन्दगी बढे करीब से पढ़ी है दोस्त

महसूस होता नहीं गर तुझे
फिर क्यों पलकें झपकता है
बारिश के डर से

शुक्रिया ए दोस्त
जो तूने ज़ख्मो को कुरेदा
जम कर दर्द है बरसे

इतनी समझता है गर  दिल तुम्हारी बातें
कम्बखत मेरे दिल को भी समझाना
तुम से मिलने की जिद्द किये बैठा है

कसूर मेरा इतना
जिंद से ज्यादा चाहा तुझे

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

नज़म

किस्से और भी है मेरे ज़हन में
सुनाया मुझ से अब जाता नही
तू इस कदर रो पड़ा दिल भर के
मुझे से कोई आंसू दिखाया जाता नहीं

अंदर से टूटा हूँ में कांच की तरह
तुझे चमक नजर आती टूटे दिल की
मुझे है की टुकड़ो की चुभन ने है मारा

अश्क़ बहाये तो भी ये जाता नहीं
रंजिश होगी शायद जो शरमाता नहीं
दर्द है ज़ालिम बड़ा
पीड़ बिन भुलाता नहीं

सोमवार, 26 जनवरी 2015

कुछ ट्वीट्स


इतनी समझता है गर  दिल तुम्हारी बातें
कम्बखत मेरे दिल को भी समझाना
तुम से मिलने की जिद्द किये बैठा है

कसूर मेरा इतना
जिंद से ज्यादा चाहा तुझे

मकान बन कर रह गया घर मेरा
जब से रोटी परदेश में मिलने लगी है।।

इंसान का तो मुकद्दर है परेशानी
कभी दफ्तर तो कभी घर की कहानी

यूँ कातिल नजरो से क्यों देखते हो
किसे क़त्ल करने का इरादा है

जाता हूँ पर लौट आने का है वादा
पहले से बेहतर वक़्त लाने का है इरादा

जिसके दिल में भरा हो प्यार
उसके लिए उत्तम ये संसार
जिसके दिल में हो विकार
उसका जीना भी है बेकार

भूला में(इंसान) जीना , जीत की राह में
खो दिया अपनों को, पैसे की आह में

कहती है तू उड़ना सीख ले
पर मुझे पर क़तर जाने का डर सताता है

काश और विकाश के बीच पीस गया हूँ
नाम विकाश, काश बन रह गया हूँ

शनिवार, 24 जनवरी 2015

शायरी

हर वक़्त मुझे तेरा इन्तजार है रहता
तू सामने है गर दिल बेकरार है रहता
तेरे आने से पहले जाने का गम सताता है
तू नहीं आता।, तेरी जगह सीना दर्द भर ले आता है

तेरी नजरों में
बेशक में
बेपरवार् हूँ
पर सही मायनो में
में ही तेरे हुस्न का कद्रदान हूँ

रात नशीली ना हो
इसलिए तेरी आँखों से पीते नहीं
गर क्या करे इस दिल का
बिन पीये आँखों के जाम
लगता है हम जीते ही नहीं

05 दिसंबर 2009 का पन्ना

शायरी दर्द से भरी

दर्द है किसी के जाने का
डर है कोई छूट जाने का
लिख दी तक़दीर कुदरत ने
सब कुछ लूट जाने को

तन्हाई इतनी है कि शब्द कह नहीं पाता
हर लम्हे को सोच।। आँखों से लहू झलक जाता

करामात है कुदरत की ज़िन्दगी और मौत
डर के अन्धकार में उसका नाम ही अलख ज्योत

जब कभी उसकी चाहत, मेरी बेचैनी बढाती है
टीस उठती है सीने में, मायूसी का दौर है लाती

02 मार्च 2009 के डायरी का पन्ना।।

टोटके। हास्यप्रद।। शायरी।।

कलम पकड़ी है हाथ में। खंजर ना समझना।।
क़त्ल करने दिल का आये है। कंजर ना समझना।।

काम होते आवारा के यूँ ख़त और पैग़ाम लिखना
हम तो ईमेल करते है जाहिल और अनपढ़ ना कहना

कट जाता है मेरा वक़्त। जब तेरी याद आती है
गर थम जाते है लम्हे।। जब तू सामने आता है

पीड़ मेरे मन की। तेरे मन को भी रुलाएगी
तू आये या आए।। तेरी याद हर वक़्त सताएगी।।

दोस्त बनाने के नाम पर हम ने भीड़ जुटायी है
एक तेरी दोस्ती थी जो तन्हा और संज़ीदगी लायी है

क्यों लिखते हो ऐसा। कोई समझ नहीं पाता
दर्द से भर हर लफ्ज़। हर किसी को है रुलाता

10 दिसम्बर 2008 का पन्ना

व्यवस्था का दुष्चक्र

दुसरो पर कीचड़ फैंकने वाले ये नहीं सोचते की उनके हाथ भी कीचड़ से सं चुके है
मगर उनको परवाह नहीं होती क्योंकि वो बुरी तरह से उस कीचड़ में धंस चुके होते है उनसे कोई सफेदपोश बर्दाश्त नहीं होता।। इसलिए वो अपने कुंठित मन का सारा कीचड़ उस सफेदपोश पर डालने की कोशिश में रहते है।। मगर वो सफेदपोश इतना संवेदनशील होता है कि दुखी मन से उस कीचड़ से बचने के रस्ते खोजता है।। क्योंकि उसका लक्ष्य एक स्वस्थ व्यवस्था में जीने का है।। कीचड़ में तो रहना कोई मुश्किल नहीं।। संघर्ष तो स्वच्छता के लिए करना पड़ता है।।

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

नौकरी नहीं सांप सीढ़ी हर कदम गिराने को है सपोले

आज का दिन भी एक बुरा दिन साबित हुआ
जिस जोश से सुबह सुबह एजेंडा तैयार कर के सेट बना कर रखे थे।। उम्मीद तो ये थी की सराहना होगी मगर हुआ इसके विपरीत।। विकर्ण मानसिकता वाले जिला सलाहकार ने इतने अनर्गल आरोप लगाये जो निराधार थे।

दो ही कारण हो सकते है या तो उनके कोई कान भरता है या फिर उनको ख़ुद पर शर्म आती होगी की वो इतना बुरा कार्य करते है उनके साथ कोई साफ़ छवि कैसे रह सकता है।। क्योंकि सरकारी दफ्तरों में 90 प्रतिशत लोग खाने की फिराक में होते है कुछ मांग कर खाते कुछ और बहानो से।।

मुझे घृणा तब होती है जो व्यक्ति मुझ पर आरोप लगा रहा है वो बहाने से कभी किसी से कुछ मांगता है कभी कुछ।। और मुझे कहता है की तेरा क्या स्वार्थ है जो सब के काम करता है।। अरे मुर्ख व्यक्ति जिसे खाना होता है वो काम करने की बजाये बहाने लगाएगा।। ताकि उसे कुछ मिले और वो काम करे। मेरी प्रकृति है की जिस कार्य को दिया जाता है में सब भूल उस कार्य को पूर्ण करना का पर्यत्न करता हूँ । बैंक में खातो का, स्थापना शाखा, bpl आदि कार्यो का मेरे से कोई सम्बन्ध नहीं फिर भी में उन सब का कार्य करता हूँ। क्या उन लोगो का कार्य भी में किसी स्वार्थ से करता हूँ। एक वर्ष में इतना भी नहीं जान पाया वो व्यक्ति वरिष्ठ होने के सम्मान का भी हकदार नहीं इस तरह की हरकतों से वो मेरी नजरो में अपना सम्मान गिराएगा।। अगर मुझे गलत तरीको से पैसे कमाने का तनिक भी शौक होता तो यूँ सुबह 5 बजे घर से से निकल कभी बस पकड़ो कभी कदमो से दूरिया नाप दफ्तर 2 घंटे पहले पहुंचना और शाम को फिर बस निकल जाने पर 5 km पैदल चलने की आवशयक्ता नहीं होती।। में भी एक बाइक ले सकता और समय समय पर आता।। में जितना अपने क्रोध को दबाकर खुश रहकर काम करने की कोशिश करता हूँ उतना ही संकीर्ण विचारो वाले व्यक्ति मुझे परेशां करते है।। में तो प्रभु से निवेदन करूँगा ऐसे वक़्त मुझे सहन शक्ति देना क्योंकि क्रोध में अक्सर इंसान वो कदम उठाता है जिसका शायद जीवन भर उसे मलाल रहता है।। अब कल शनिवार पूरा दिन कोई काम नहीं पर निजी स्वार्थ के चलते दफ्तर में बुलाया जाता है और मानसिक शोषण किया जाता है।।

एक तरफ सरकार कम वेतन पर कच्चा कर्मचारी रखती है ऊपर से पक्के कर्मचारी से अधिक कार्य लेकर मानवाधिकार की बात करते है।। इस देश में इन्साफ तो सिर्फ किताबो की कहानी बनकर रह गया है।। चापलूस व्यक्ति का जमाना है काम करने वाले ने तो फिर भी चोट खाना है। ज़मीर नाम का शब्द अब किसी इंसान के शब्दकोष का हिस्सा नहीं रह गया।।

आप में से कोई अच्छा सुझाव दे सके तो अवशय दें आप की अति कृपा होगी

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चलता हूँ कुछ लम्हे सकूँ के है
कल फिर नरक में जाना है
जहरीले शब्दों को पीना है
और कंठ नीला कर आना है
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गुरुवार, 22 जनवरी 2015

ओह रब्बा ।। मेहर कर।।


ओह रब्बा

इतना कमजोर दिल मेरे किस काम का
तूने जुबां देकर पत्थर सी
मोम का दिल क्यों मेरे नाम किया

बिन आंसुओ के दर्द ने
सरेआम बदनाम किया

रोता हूँ हर तीखे शब्द की चोट से
कोई वाकिफ नहीं मेरे इस रोग से

ओह रब्बा

मेरी दुआ इतनी कबूल कर
सीना निकाल मेरे जिस्म से
या इस जिस्म को ही धुल कर

कुछ ट्वीट्स


टूटे है अक्सर वो
जो मिटटी से बने है

शुक्रगुजार तेरे जो महफ़िल रोशन कर दी
वरना सब चोट खाये थे
खंजर का नाम ओ निशान ना था

खोल दे दिल के द्वार
इस पार है प्यार
क्यों फिर तकरार

महबूब के सितम तो देखो
एक तो हसीं
दूजा नाजनीन

कुछ इस कदर छुआ मन मेरा
की पाँव ज़मीन पर नहीं मेरे

खोट मेरी नजरो में मत निकालो
कुदरत ने रचा ही इतना हसीन तुमको

कोई मिसाइल इस सीने पर भी चला दो
बहुत आतंक मचाया इसकी धड़कनो ने

मेरे दर्द पर यूँ हँसता है वो
छाले नही कोई फूल हो

भरी सुबह बरसा जो बदरा
कहीं कोई अपना तो ना हो बिछड़ा

ऐसी हालत की कुछ तुम जो समझो

तेरे अश्क़ो की कसम
रोया में भी बहुत
पर आंसू एक ना आया
गर तू समझे मेरा दर्द
कांपते होंठ भी हो गए सर्द
जी भर चाहने का इनाम है
जो मुझे चैन ना आराम है
सांस सांस तुझ पर है अटकी
नजरें भी कुछ ऐसी है भटकी
लाचारी का आलम है कि
निवाला भी हलक छूता नहीं
बहूत हुआ तू मिल जा कहीं
पल पल डूबा तेरी चाहत में
बस जा तू इस दिल की राहत में

#गर समझ सके। तू मेरे हालात।।
दिल को सकूँ दे ।वो पैगाम भिजवा दें।।

बुधवार, 21 जनवरी 2015

कुछ ट्वीट मेरे


जाने क्यों
जब वो देखता नहीं सामने बैठा हुआ
मेरा दिल बैठ जाता है

तुम इस कदर आये आज मेरी ज़िन्दगी में
मेरे लफ़्ज़ों का कारवाँ तुझ पे सिमट सा गया

हमने चुना था तुमको प्यार के लिए
अधिकार के लिए दुनिया बाकि है

हो गर कोई गम तुझे ए हमनशी
बदल कर हमसे खुशिया ले जाना

मेरी मोहब्बत को उसने मजाक बना दिया
भरी महफ़िल में मेरा ख़त जो सुना दिया

तूने सोचने में जो वक़्त गंवाया
साँसों ने भी धड़कनो से दामन छुडाया

दर्द की बारिश है
कुछ तो गम बह जाने दो
नादाँ दिल को चैन आने दो

उमड़ उमड़ बरसा दिल आज मेरा
जो नैना झर झर बहने लगे

करम कर बस इतना
कुछ ख़ुशी मेरे हिस्से भी आये
बेशक चंद साँसे तेरे नाम हो जाए

लफ़्ज़ नहीं जो कि वो बयाँ हो जाए
बस  देख पढ़ने की कोशिश करता हूँ

सुर्ख गुलाब सा है दोस्त मेरा
महकता रहे सदा
ख्वाहिश है बस मेरी

ख्यालो को संभालना जरा
हमे नींद बहुत कम आती है

किसी के लिखे का मोहताज नहीं
नेक बाँदा हूँ रब्ब का
जागीर का कोई सरताज नहीं

# लाल पिला हमे बताकर
उनका चेहरा गुलाबी हो उठता है
खुद सपनो में रहते,
कि हमे झूठे ख़्वाब दिखाते है


असहाय अपने नहीं अपनों के दर्द से

इंसान अपना दुःख फिर भी सहन कर लेता है मगर जब अपने किसी को दुःख या तकलीफ होती है तो वो असहाय महसूस करता है।।

आज में भी कुछ ऐसा महसूस करने लगा जब मेरी दादी को तक़लीफ़ थी और मुँ असहाय सा देख रहा था।। भगवन् शक्ति देना मेरी दादी जी को दुःख सहन करने की।।

बेड़िया इस समाज की.....

बेड़िया इस समाज की
कुछ इस तरह से जकड़े है मुझे
ना जीने में हूँ ना मरने में

दिल कही और है मेरा
और दिमाग खींचे कही और
शायद इस पर भी है समाज का जोर

बेड़िया इस समाज की.....

वो चाहते बहुत है मुझे अक्सर आँखों से जाहिर करते है
मगर होंठ सिये हो किसी ने, शब्द बदल दिए हो किसी ने
इस तरह का मिजाज है हजूर का
शायद ये ही दस्तूर है समाज का

बेड़िया इस समाज की.....

उनको नहीं पता उनके कल और आज का
हर फैसले पर कब्ज़ा है समाज का
लेखा जोखा सब रखते है उनके काज का
मालूम नहीं हमे राज इस समाज का

बेड़िया इस समाज की.....

सिसकिया देखि है हम ने उनकी इस तरह
समाज ने ज़िन्दगी छिनी हो उनकी जिस तरह
दिल तो धड़कता है जुगनू की तरह
दिमाग को बांधे है जगत के अंधे कायदे

बेड़िया इस समाज की.....

मंगलवार, 20 जनवरी 2015

क्यों दर्द होता है

जब जब तू दूर होता है
आँखों में नमी
और दिल रोता है तो

क्यों दर्द होता है

घर कर जाती है तन्हाई
हर लम्हे से होती जब रुस्वाई तो
क्यों दर्द होता है

वो हँसता है मुझपर
फिर भी मेरा दिल उसको रोता है
सोचता हूँ  तो
क्यों दर्द होता है

पिघल ना जाऊ कही
उसकी तपिश में
ये सोच सोच कर
क्यों दर्द होता है

छोड़ गया वो मुझको
अपनी जरुरत पूरी करके
फूल से बन गया में पत्थर फिर भी
क्यों दर्द होता है

शनिवार, 17 जनवरी 2015

pk देखकर कुछ रोचक तथ्य पता चले

फुलझड़ी के पास मजे के साथ गूंगे बहरेपन का भी इलाज है

हिलती गाडी से पैसे मिल जाते है

पृथ्वी पर अलग अलग काम करने का अलग फैशन है

भगवान अगर कोई है जिसने हमे बनाया उसने हम पर अपनी मोहर नहीं लगाई।। यानी कोई ब्रांडेड नहीं सब नकली है।।

डर ही भगवान् है।। हम अपनी ज़िन्दगी कहीं अपनी मर्जी से ना जी ले इसलिए भगवान बनाया।।

और आत्मरक्षण के लिए सब से बढ़ी ढाल भी ये ही भगवन है।।

इस दुनिया में दोस्त वो ही है जो आप को पैसे देता है नहीं तो सब आप से पैसे लेते है

ये तो सब थी रोचक बातें

अब एक असली बात
जो ये फ़िल्म सिखाती है
शायद थिएटर से निकल हम वो ही बात भूल जाते है बाकि सब याद रखते है।।

मेरे एक दोस्त ने मुझे मीष्णा नाम दिया मुझे इसका मतलब नहीं पता पर उसके मुताबिक जो अंदर कुछ और बहार कुछ।।

50प्रतिशत उसने सही कहा

की अंदर कुछ। अंदर तो अथाह सागर है उन भावनाओ का जो इस बनावटी दुनिया में लोगो को काहनियो और किताबो में ही अच्छी  लगती है।। बाहर आया तो जाने क्या क्या बवाल को जन्म देंगे।। सीधी सी बात भी उल्टी समझते है।। सही कहता था pk ये पृथ्वी लुळ हो गयी है।। यहाँ आप की बात किसी भगवान् को नहीं जाती।। सब गलत नंबर है गलत नंबर जानते क्यों है।।हम मिलाते ही गलत नंबर है।।
इस फ़िल्म ने आज मुझे तो वो दिया जिसकी मुझे बहुत दिनों से तलाश थी।। दो आँसू जी हाँ दो आंसू।।
इतने दिनों से पत्थर बन कर ज़िन्दगी जी रहा था।। आज पता चला मेरे अंदर एक दिल है जो कहीं खो गया था।। जिसने धड़कना ही बंद कर दिया था।। आप को मालूम नहीं पर मेरे आंसू तब निकले जब pk ने उस दोस्त को खोया ।। जिसने तन्हाई में उसका साथ दिया था और वो डोर टूट गयी जो हमे एक अक्सर अजनबी से बांधती है और ये ही सच्चा प्रेम होता है।। जिसमें स्वार्थ नहीं दिल जुड़ते है।।

और हम समाज के ठेकेदार चाहे तो  इस प्रेम को जाने कितने तरीके से खोट निकाल देंगे कभी धर्म कभी जाती कभी रंगभेद तो कभी आकार में।।
में आमिर खान का फैन नहीं हूँ पर इस फ़िल्म के लिए उनको बधाई देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कुछ प्रेरणा आप ले जीवन में इस कहानी से।।
अब जी भर आंसू बहा लेने दीजिये कम्बखत जाने कहाँ थे इतने दिनों से।। पूरा दिल भर आया उमड़ उमड़ बरसे है आज तो।। जन्नत से भी ज्यादा खुशिया इन आंसूओ की।।

भुलाये भुला नहीं जाता ...

भुलाए भुला नहीं जाता
वो रह रह कर याद है आता

हर लम्हा मुझ से कुछ चुराता है
फिर जाने क्यों पलकों में
समेट चला जाता है

भुलाये भुला नहीं जाता ...

मेरी धड़कनो का बढ़ा
अपनी थाम लेता है
अपने होंठो पे मुस्कान से
एक हसिन जाम देता है

भुलाये भुला नहीं जाता ...

शरारत भरे मन से
एक इशारा करता है
पल पल मुझको देख
लंबी आहें भरता है

भुलाये भुला नहीं जाता ...

मेरी खामोश धड़कनो को
पहचान जाता है
बिन कहे दर्द ए हाल
जान जाता है

भुलाये भुला नहीं जाता ...

मासूम दिल को सम्भाल जरा
मुझे जताना नहीं आता
और तुझ से है की
छुपाना नहीं आता

भुलाये भुला नहीं जाता ...

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

कुछ ट्वीट

चाबुक ना तू मेरे लिए
मोहब्बत की अर्जी थी
गुलामी की नहीं

कोई शौक नहीं मुझे मोहब्बत का
कम्बखत दिल चंचल है थोडा

बदस्तूर जारी नफरतो का दौर
वो आज भी नजरें चुरा जाते है

हवा बन गुजरी वो साँसों से
उसकी महक से बदन खिल उठा

कुंठा से भरा मेरा मन
तूने उज्जवल कर दिया

खंजर चला कर सीने पर
साँसे निकल जाने की शिकायत करते हो

खंजर चला कर सीने पर
साँसे निकल जाने की शिकायत करते हो

कोई भूल हमे भी याद कर ले
हम तो किसी को भूलते ही नहीं

जंगल सी ख़ामोशी क्यों है
कोई इंसान नही बसता क्या?

बुधवार, 14 जनवरी 2015

ओह रब्बा यूँ ना शैतान बना

मांगता हूँ हर सांस में सदबुद्धि तुझ से ओह रब्बा
यूँ ना मुझ को शैतान बना

ह्रदय को बेध जाते कठोर शब्द ज़माने के
मुझ को भी ना ऐसा कठोर बना

में तो जीवन में बसना चाहता हूँ
यूँ ना मुझको शैतान बना

ख़ामोशी लूट लेती खुशिया सबकी
मुझको ऐसा ना खामोश बना ओह रब्बा
यूँ ना मुझ को शैतान बना

दर्द उनको भी होता है जो दर्द देता है
उनके दर्द से ना अन्जान बना ओह रब्बा
यूँ ना मुझको शैतान बना।।

शनिवार, 10 जनवरी 2015

तू है कि क्यों

ज़िन्दगी मुस्करा दे जरा
तू है कि क्यों मुझे से खफा हो गयी है

तेरी इस कदर बेरुखी
मेरे लिए एक सजा हो गयी

लिपट उठती है ख्वाहिशे इस दिल में
तू है कि क्यों सिलवटों में खो जाती है

तू बाजूबंद सी हो गयी है
पहचान तो है मगर
मुनासिब नहीं

सुलगते जिस्म का ऐतबार नहीं
तू है की क्यों तपिश से घबराई हुयी है

मेने बेबस नजरों से जो देखा
तू है की क्यों शरमाई सी हुयी है

अरसे बाद मेरे अरमानों ने ली अंगड़ाई
तू है की छुईमुई सी खोई सी है

# लम्हें ना मेरी ज़िन्दगी के ज़हरीले बना
तू खुद के नूर से मेरे काँटों भरे जीवन को सज़ा

सोमवार, 5 जनवरी 2015

ख्वाहिशो के सौदागर

रुई का गद्दा बेच कर
मैंने इक दरी खरीद ली,
ख्वाहिशों को कुछ कम किया मैंने
और ख़ुशी खरीद ली

सबने ख़रीदा सोना
मैने इक सुई खरीद ली,
सपनो को बुनने जितनी
डोरी ख़रीद ली

मेरी एक खवाहिश मुझसे
मेरे दोस्त ने खरीद ली,
फिर उसकी हंसी से मैंने
अपनी कुछ और ख़ुशी खरीद ली

इस ज़माने से सौदा कर
एक ज़िन्दगी खरीद ली,
दिनों को बेचा और
शामें खरीद ली

शौक--ज़िन्दगी कमतर से
और कुछ कम किये
फ़िर सस्ते में ही
"सुकून--ज़िंदगी" खरीद ली

above lines Sent bye Someone not written by me 


कड़वे शब्द बोलता हूँ