बुधवार, 15 अप्रैल 2015

बुझ गया मेरा मन

जब से उनसे हुयी अनबन
बुझ गया मेरा मन

बोझिल सी नजरें मेरी
उसको निहारती है
उसकी नज़रें जाने
किसको पुकारती है

हक़ जताना मुझे आता नहीं
मायूसी का चेहरा उसे भाता नहीं
वो हवाओ से बातें करता है
मेरा दिल जमीं पर ही चला करता है

वो बारिश की बूंदों सा मुझे घायल करता है
मेरा हाल उस ज़ख़्मी सा जो मरहम से भी डरता है

जारी है मेरे दिल का बैठ जाना
उनका मुस्करा कर निकल जाना
तन्हाइयो में उनके नाम से
सिसकियां निकल जाना

कोई लब से झूठा कर देता है उनका नाम
जाने क्यों बदन मेरा , जल जाता है

बहुत बेताबी है मेरे, अक्स को खबर भी नहीं
जो फैलता है मेरी रूह, कोई ज़हर तो नहीं

मीठा है उनका, दिल को बहलाना
सुर्ख बढ़ा है, नजरों से ओझल हो जाना

में पल पल उसकी राह ताकता हूँ
वो है कि ..................

राहें बदल जाता है

3 टिप्‍पणियां:

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  3. khaali hai panna kiski tasveer ubhaar doon, us beraham ki jo katal karta hai aur ahein bhi nahi bharta

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    daman mera itna nahi ki tu ji bhar ke ro le, meri chadar chhoti pad jaati hai khawahisho ke aage

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