चंद रोज की ज़िन्दगी मौत की गोद समा गयी
आज फैली हुयी ख्वाहिशे, एक सफ़ेद चादर में आ गयी
कोई काल की गति उसके सपनो को भी संग खा गयी
चंद रोज की ज़िन्दगी मौत की गोद समा गयी
चल रहा था वो लड़खड़ाते हुए, जमाने का बोझ डाले कंधो पर
आज उसके कंधो को भी चैन आ गया,
मौत के साथ ज़िन्दगी के बोझ निपटा गया
चंद रोज की ज़िन्दगी मौत की गोद समा गयी
चंद रोज की ज़िन्दगी मौत की गोद समा गयी
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