उदगम पावन और निश्छल
शास्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में,
किसी प्यासे का सहारा हूँ में
बढ़ी थी एक अमृत बूँद बन
जग की प्यास मिटाने को
ज्यों ही देखा, रवैया जग का
अमृत को जहर बना दिया
जिसने पिया उसको जला दिया
सहस्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में साफ़ स्वस्थ बूँद से, मलिन मिलता रहा
मुश्क़िल मे उसका अस्तित्व हो गया
पावन था मन जिसका, मलिनता में खो गया
सहस्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में किसी ने अपना पाप है धोने को मेरा आँचल पाया
कोई मिट कर , मेरी लहरो सी गोद में समाया
मेरे अक्स का दर्द मगर किसी के जहन ना आया
शास्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में
ख्वाहिश मेरी, मेरी साँसे लौटा दे ओह रब्ब के बन्दे
छोड़ दे जो, मेरे सहारे है , तेरे बेवजह के धंधे
तू तो कारोबारी हो गया, मेरा जल भिखारी हो गया
तू चैन से सो गया, मेर प्यासे का धर्म भी कहीं खो गया
सहस्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में तेरी कबरगाह नहीं, ज़िन्दगी का सरमाया हूँ में
बोझिल न कर तू मुझे, जीवनदायनी स्वरुप है मेरा
हुआ जो अंधकारमय अस्तित्व मेरा, जाने कब हो सवेरा
सहस्त्रधाराओ में एक धारा हूँ में, किसी प्यासे का सहारा हूँ में
# एक दिन कहाँ जाएगा
जब मीठा जल कड़वा हो जाएगा
वो प्रलय भरा समय, गर सोचा ना
तो जल्द सब का जीवन मिटाएगा
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