सोमवार, 24 अगस्त 2015

बेड़िया है मेरे पाँव म बेड़िया है मेरे पाँव मे े

बेड़िया है मेरे पाँव मे बेड़िया है मेरे पाँव मे ं
जो झुलस गया इश्क़ की छाँव मे
खिलने था जहाँ वहां मुरझा गया

बेड़िया है मेरे पाँव मे
बेड़िया है मेरे पाँव मे

हर बाजी हारा हूँ
मोहब्बत के दांव में
मोहरा बन रह गया
शतरंज के प्यादों सा

बेड़िया है मेरे पाँव मे
बेड़िया है मेरे पाँव मे

हर शब्द कर देता है घाव
जो करता इलाज वो मर्ज बन गया
हर लम्हां उनको एक अर्ज बन गया

बेड़िया है मेरे पाँव मैं बेड़िया है मेरे पाँव मे

उसको देखा जब से, मिट गए सब चाव
भूख प्यास सब एक हो गए उसकी आस में
नफ़रत भी भूल गया मोहब्बत की तलाश में
बेड़िया है मेरे पाँव मे
बेड़िया है मेरे पाँव मे

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वजह बेशक तू है हर दर्द की
आराम भी रूह को तेरी झलक से आता है
मैं आज भी उसकी आह भरता हूँ
वो बेशक मुझे बेवफा बुलाता है

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

उलझन भरी ज़िन्दगी

कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

मकसद नहीं
कोई इसका
फिर भी उलझाती है
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

बेमतलब का तमाशा
कभी आशा
कभी निराशा
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

कोई खींच लेता है
ख्वाहिशों को दबाकर
थोपी जाती है
उनकी मेहरबानियां
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

कोई सब कुछ लूटा देता है
कोई सब लूट ले जाता है
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

किसी ने सजदा किया
तो किसी ने किया रुस्वा
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

बर्दाश्त नहीं किसी को आह भी
कोई उम्र भर की चोट से उफ़ नहीं करता
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

किसी ने मतलब से अपनों को खो दिया
कोई बेमतलब गैरो को अपना बना गया
कभी मुस्कराती
कभी रुलाती
उलझन भरी ज़िन्दगी

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ज़िन्दगी की उलझनें हो जाएँगी कम
गर दिल से लगाना
और किसी को समझाना छोड़ दें

बुधवार, 12 अगस्त 2015

गीत :- ज़िंदा हूँ मैं जिंदा हूँ मैं

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं

अभी मोहब्बत जो बाकि है
मेरे दिल को धड़काती है
कहीं से है थोडा गुदगुदाती
कभी कभी है थोड़ा रुलाती

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं
इतना तो है ये बताती
मुझको है राह दिखाती

नफरत तो सिर्फ इंसान को जलाती
मोहब्बत ही है जो ख़्वाबो को सजाती
दो दिलों के रंग रूप धर्म के भेद छुपाती
बस मोहब्बत ही मोहब्बत जो दिल को महकाती

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं
इतना तो है ये बताती
मुझको है राह दिखाती

कुछ अठखेलियाँ वो मुझको दिखाती
कुछ मेरी नजरें उसको है जताती
वो शर्मा कर, कुछ है छुपाती
पर मोहब्बत से नहीं है बच पाती

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं
इतना तो है ये बताती
मुझको है राह दिखाती

हर पल उसकी साँसे है घबराती
कभी पुछु तो कुछ बहक सी जाती
दिल की आग वो लब पर नहीं लाती
बस एक झूठी मुस्कान बिखेर जाती

ज़िंदा हूँ मैं
जिंदा हूँ मैं
इतना तो है ये बताती
मुझको है राह दिखाती

#
एक मोहब्बत ने ही मुझे इंसान बनाया है
नहीं तो हर रहगुज़र ने नफरत से ही मिलाया है
बस दुआ है रब्ब से मोहब्बत के जाम ही लुटाना
नहीं तो नफ़रत से जला देगा ये जालिम जमाना

रविवार, 9 अगस्त 2015

क्यों आदत हो गई .......

क्यों आदत हो गई
मुझे तड़पाने की
बात बात पर रूठ जाने की

संजोता हूँ सपने तेरे संग
वक़्त बिताने के
तू ढूंढता है बहाने
मुझ से दूर जाने के
क्यों आदत हो गई .......

बेशक ये रिश्ता मेने बनाया है
दिल ने तेरे भी हामी भरी होगी
बेशक हमारी राहें जुदा होंगी
फिर भी ज़िंदा मोहब्बत होगी
क्यों आदत हो गई .......

गुजारिश है तुझ से इतनी मेरी
चाहे मुझसे मीलों दूर चले जाना
पर रिश्ता है जो, अंतिम सांस तक निभाना
किसी भी वहम को मध्य ना लाना
क्यों आदत हो गई .......

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मैं कुछ भी कह जाता हूँ बेचैनी में
गर तुझे है चैन मेरे दोस्त
मेरी बेचैनी ने जो किया है सवाल
उसका हल भी ढूंढ लाना



कड़वे शब्द बोलता हूँ