शनिवार, 11 अप्रैल 2015

बारिश॥बर्बादी॥बर्बरता॥

रोज की ये बारिश की बर्बरता सिर्फ बर्बादी के सिवा कुछ नहीं दे सकती। इसने साबित कर दिया की आवशयकता से अधिक कोई भी वस्तु हो जीवन में बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं दे सकती।

किसान रब्ब को निहारता है तो कभी अपनी फसल को
उसके पास 6 महीने की म्हणत को पानी में बहा दिया इस बेरहम कुदरत ने,

रोटी को मोहताज हो गया वो किसान
जिसने तुम्हारे घर भरे धन्य धान
कुछ तो सोच उस बारे ए इंसान

बदलती फ़िज़ा ने शिकंज बढ़ा दी मस्तक की
इस बरस और दो चार झुर्रियां पढ़ गयी

दाना दाना लूट रहा है मेरी बगिया का
कोई पगड़ी संभालता तो कोई डबड़ी

गाडी घोडा तो दूर की बात है
किसान का तो हर दिन अँधेरी रात है

चमक देखि बस उजड़े खलिहानों में
या फिर आसमां के गरजते बादलों में

दर्द मेरा कोई सुन कर नहीं जाता
बस हँसता है और मुस्कराता है

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कड़वे शब्द बोलता हूँ