शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

दोस्ती का पोस्टमॉर्टम।

वक़्त की समझ थी, कि फिल्मों का असर, या कमज़ोर दिल, मुझे नही पता मग़र बचपन से मेरी एक टैगलाइन होती थी
देश
दोस्ती
फिर दुनियां

मेरे लिए अपना परिवार इत्यादि भी दुनियां में आते थे पर  देश और दोस्ती सर्वोपरि थी । जिस कड़ी में 1997 में मैने गांव के सरकारी स्कूल में नोवीं कक्षा में दाखिला लिया था तो गांव का एक लड़का मेरा दोस्त बना, दोस्ती का आलम देखिए पूरा गांव हमारी दोस्ती की बात करता था। स्कूल में तो हम सारा दिन साथ होते थे शाम को भी हम नहर किनारे वक़्त बिताते थे। 2001 में मैने उसकी खातिर सरकारी कॉलेज में नंबर पढ़ने के बावजूद , उसके नंबर कम होने के कारण अन्य निम्न दर्जे के कॉलेज में दाखिला लिया। उसकी समस्या उस से पहले मुझ से होकर गुजरती थी। मैं अपनी पॉकेट मनी को भी स्वयं पर खर्च न करके उसकी जरूरतों में खर्च कर देता था। वर्ष 2002 में उसने कॉलेज छोड़ दिया तो मैने भी कॉलेज छोड़ दिया। उसने तो प्राइवेट दवाइयों की कंपनी में नौकरी शुरू कर दी तो मैं भी दिल्ली कोर्स करने चला गया। अब हमारा मिलना सिर्फ एक या दो महीने में हो पाता था पर दोस्ती में कहीं कमी न थी। वर्ष 2003 में जब मेरा कंप्यूटर कोर्स खत्म हुआ तो मैने करनाल कैफ़े में नौकरी कर ली। उस दोस्त में गरीबी देखने के कारण पैसे कमाने की भूख थी। मुझे भी लगता था कि जरूरतों के कारण उसे सही लगता है। मेरा ऐसा हाल था उसके काम कहीं भी जाना हो उसकी एक आवाज पर मैं चला जाता था। उसने बहुत जगह इंटरव्यू दिए, वो पिछली कंपनियों की बढ़ी सैलरी स्लिप बनवाता था और आगे बढ़ता गया, वर्ष 2010 में मेरा तो वेतन 4500 था और उसका 20000 के आसपास फिर भी मेने अपनी पल्सर बाइक उसे दे दी और उसकी स्प्लेंडर ले ली। उस वक़्त तक मेरे दिमाग में उसके लिए कभी तेरा या मेरा न था।

अब वक्त आया वर्ष 2011 जब मैने 1 मई मजदूर दिवस को त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद का समय मेरे जीवन में अमूल्य परिवर्तन लेकर आया, जब बेकारी के समय घर वालों ने भी ताने मारने शुरू किए। भगवान में अत्यंत विश्वास रखने वाले को जब उसके दरवाजों से भी न उम्मीदी मिली तो मन के द्वार बंद होने लगे और मस्तिष्क के द्वार खुलने लगे। पता चल गया कि ये संसार चलता तो दिमाग से है, दिल वाले तो बेवकूफ बनाने के लिए होते है उनके सहारे तो मस्तिष्क वाले आगे बढ़ते है। घर और भगवान तो 2011 में ही मन से निष्काषित हो गए। अब बारी थी दोस्त की, कुछ आवारा लगा लीजिये, या मेरी तरह बेकार दोस्त जिनके साथ मैं घूमने लग गया। तब मैंने उस दोस्त को काफी बार फ़ोन किया तो वो दरकिनार सा करने लग गया, मैने सोचा शायद मेरे नए दोस्त पसंद नही इसलिए करता होगा। पर यहां से नींव पड़ चुकी थी दोस्ती में खटास की वर्ष 2015 तक इस दोस्ती में छोटी छोटी बातों से बड़ी दरारें आने लगी, अब बारी मेरे दरकिनार करने की थी। उसकी हर खुशियों पर जब हम मनाने की बात करते तो वो बहाने से बनाने लग जाता था। जो बाकी के सहपाठी
थे वो मुझे ताने देते ये है तेरा परम् मित्र फिर वो भी जब लालच से भरी बातें करने लग गया तो मेरा मन समझने लगा की शायद कुछ ठीक नही। और वर्ष अप्रैल 2016 में मैने अपनी तरफ़ से उस से रिश्ता तोड़ दिया और आज मेरा कोई दोस्त नही, और न बनाने का दिल है। जानकार तो होते है पर परम् मित्र नहीं होते सब, और उम्मीद है आगे बनाऊ भी नहीं।

मगर शायद किसी कोने में अब भी मन जिंदा था, मस्तिष्क पर मन भारी था।

....आगे की कहानी फिर कभी

शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

भ्रांतियों का समाज

जीवन में कभी ये भ्रांति न पाले कि आपकी समस्या या आपके विचारों से किसी को भी कोई सरोकार है। इस समाज का केवल एक ही धर्म है वो है मतलब, जब तक हम एक दूसरे से जुड़े है तो केवल मतलब ही है। इसमें समाज गलत नही क्योंकि ये वास्तविक जीवन की जरूरत  और परंपरा बन चुका है। हाँ जिस काल के विचार मेरे जहन में कौंधते है वो विचार आज के युग में केवल किताबों में धरोहर बन गए है। आप के समक्ष सब आप के उन विचारों को सुनकर , पीठ पीछे खंडन व हास्य का पात्र बनाएंगे। यहाँ सवाल उनके गलत होने का नही क्योंकि सामाजिक नियम है जो विचार बड़े हिस्से को लाभप्रद लगे वो ही पालना में होना चाहिए,

समस्या ये है मुझे किसी से कोई भी वैचारिक, सामाजिक या व्यापारिक संबंध रखने में रुचि नही लेकिन पेट को पालने के लिए नौकरी, और नौकरी को चलाने के लिए समन्वय आवश्यक है, बेशक़ वो आपके विरुध चलता हो। मैंने समाज को वो कार्य करते देखा है जिनके लिए मुझे अक्सर टोका गया और खुद वो शौक से उन कार्यो को अंजाम देते है। इतनी दोहरी हो गई है जिंदगी नियमो का दोहन निजी आवश्यकताओं के आधार पर होने लगा है। भविष्य में कोशिश करूंगा अपने विचारों को किसी पर न थोपने की बजाए, उन्हें ग्रहण करूँ।

गुरुवार, 15 जून 2017

ODF➕

ODF ➕ है क्या?

खुलें में शौच मुक्त होने के पश्चात गाँव में स्वच्छता के अगले चरण की और बढ़ना ही odf प्लस है। जिसके दौरान मुख्यतः पांच तत्वों पर कार्य किया जाता है
1. खुलें में शौच मुक्त की निरंतरता
2. ठोस कचरा प्रबंधन
3. तरल कचरा प्रबंधन
4. ग्राम स्वच्छता:- साफ सफाई
5. व्यक्तिगत स्वच्छता

1. खुलें में शौच मुक्त की निरंतरता बनाये रखना प्रमुख चुनौती है क्योंकि खुलें में शौच मुक्त एक अभियान से हुआ जा सकता है लेकिन बरसों के खुलें में शौच जाने की आदत में परिवर्तन लाने के लिए नियमित निगरानी आवश्यक है, जिसके लिए निगरानी समिति के सदस्यों का इस तरह से प्रबंधन किया जा सके कि दैनिक निगरानी हो सके। उदारहणतय अगर आपके पास निगरानी समिति में 50 सदस्य है तो रोज केवल 10 सदस्य निगरानी करें ताकि 5 स्थानों पर 2-2 व्यक्ति पहरा दे ताकि हर किसी को 5 दिन पश्चात पहरा देना पड़े जिस से निगरानी निर्बाधित चलती रहे।

2. ठोस कचरा प्रबंधन विस्तृत रूप से देखा जाए तो इसमें गलनशील व अगलनशील कचरे के दो प्रकार होते है। गलनशील में रसोई के अपशिष्ट पदार्थ, मवेशियों के चारा व गोबर इत्यादि आते है जिनका गांव में लोगो द्वारा प्रबंधन तो कर लिया जाता है मगर उनकी तकनीक में सुधार की आवश्यकता होती है
जैसे गांव में पुराने समय से गोबर की खाद के गड्ढे होते है, लेकिन उन गड्ढो में निरंतर गोबर डालते हुए उनको बेसिक बातें बता दी जाए कि समय पर मिट्टी व पत्तो की परतें बनाई जा सके जिससे बढ़िया कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकें।

अगलनशील में दोबारा इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं तो आमतौर पर ग्रामीण कबाड़ी को बेच देते है मगर पॉलीथिन, टेट्रा पैक इत्यादि कचरा जिसके निपटान का कोई स्थायी समाधान नही है एक गंभीर समस्या है, इसका वजन के हिसाब से उत्पादन प्रति घर साप्ताहिक 100 ग्राम भी नही होता, हाँ अगर हम इसका प्रयोग कलात्मक वस्तुएं बनाने के लिए कर सकते है जिनका ज्ञान स्वयं सहायता समूह प्रशिक्षण देकर, ग्राम स्तर पर सुगमकर्ता तैयार किये जा सकते है।

इसी कड़ी में स्वच्छता प्रेरक को वर्मी कम्पोस्ट व बायोगैस का इतना ज्ञान नही होता तो संवंधित कृषि सहायक को भी योजना के साथ जोड़ा जा सकता है ताकि लोगो को सटीक जानकारी दी जा सके।

3. तरल कचरा प्रबंधन एक ऐसी समस्या है जो आधुनिकरण के नाम पर संसाधनों का दिशा निर्देश की कमी में इस्तेमाल के कारण उत्पन्न हुई है। इसमें चाहे सेप्टिक टैंक वाले शौचालय का प्रयोग ले लीजिए, चाहे पानी के लिए सबमर्सिबल का प्रयोग व नालियों के निर्माण में इंजीनियर विंग का ध्यान न देना। इस समस्या को दूर करने के लिए लोगो के व्यवहार परिवर्तन के लिए व्यापक अभियान की आवश्यकता है, चाहे वो पोस्टर, रेडियो, पेंटिंग, घर घर जाकर इत्यादि सप्रेषण के माध्यमो से लोगो के मानसिक पटल पर चित्र अंकित करना। ताकि वह घरेलू स्तर पर सोखता गड्ढा बनाकर व रसोई के दूषित पानी को पेड़ पौधों में इस्तेमाल करके, वाश बेसिन के इस्तेमाल पानी का कनेक्शन टॉयलेट के फ्लश के साथ करके आंशिक सुधार किए जा सकते है।

4. ग्रामीण स्वच्छता:- बढ़ती जनसंख्या के कारण, जगह की कमी के कारण सार्वजनिक स्थलों पर ग्रामीणों द्वारा निजी कचरा व गोबर डालने से गांव की सुंदरता पर ग्रहण लग गया है, जगह जगह गलियों में पशुओं की खोर बना, पशु बांधने से भी समस्या गंभीर बनी हुई है, इसका समाधान समुदाय को ट्रिगर करके ही किया जा सकता है क्योंकि राजनीति करण की वजह से स्थानीय पंच व सरपंच इन विषयों पर गंभीरता नही दिखाते है। इसके लिए सामुदायिक स्वभाविक नेताओ की मदद ली जा सकती है। नालियों को ढकने के पश्चात उनके ऊपर सौंदर्यकरण को बढ़ावा देने के लिए फूल पौधे लगाए जा सकते है।

5. व्यक्तिगत स्वच्छता:- आमतौर पर सभी व्यक्ति गत स्वच्छता के प्रति जागरूक होते है, लेकिन फिर भी स्कूल में सेमिनार करके बच्चों को जागरूक करने से उनमें बचपन से व्यक्तिगत स्वच्छता को व्यवहार में लाया जा सकता है, क्योंकि बच्चें परिवार में बदलाव के कारण बन सकते है। इसमें साथ आंगनवाड़ी वर्करों, आशा वर्कर द्वारा घर घर जाकर महिलाओ को भी खाना बनाने व खाने से पहले, शौच पश्चात हाथ धोने की आदत में शामिल करने के लिए जागरूक किया जा सकता है।
उपरोक्त सभी कार्यों को आकार देने के लिए, एक दृढ़ इच्छाशक्ति व निर्देशन की आवश्यकता है, क्योंकि कोई भी योजना विफ़लता का कारण निर्देशन में ढील भी पाया जाता है, योजना के प्रारम्भ में जो दिशा निर्देश अधिकारी द्वारा दिये जाते है उनमें धीरे धीरे हो जाएगा जैसे विचारों से योजना के पूर्णतः सफल होने पर ग्रहण लग जाता है, इसके अतिरिक्त अन्य कारण गांव स्तर पर डेटा को अच्छी तरह से इकठा न करना भी मुख्य कारण है, हम प्रायः देखते है कि आंकड़ो को एक छत के नीचे बैठकर भर दिया जाता है जिससे बुनियादी सुधारों को छोड़ दिया जाता है। जबकि बुनियादी सुधारों के बिना कोई सफलता प्राप्त नही की जा सकती जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण शहर है, वहाँ सरकार द्वारा सभी सुविधाओं के बावजूद स्थिति दयनीय होती है।

उपरोक्त ज्ञान मेरे विवेकानुसार है जिसमें त्रुटि की संभावनाएं है मगर सुधार की गुंजाइश निरंतर रहती है, यही प्रकृति का नियम भी है, बस हम ये भूल जाते है सुधार के वक़्त उस प्रकृति को ही भूल जाते है, दूरदर्शिता का अभाव नजर आता है।

शुक्रवार, 9 जून 2017

साम्राज्य का दुष्चक्र

गत कुछ दिनों से में कार्यालय की ग्राम सचिव के समूह स्तर की बैठकों में भाग ले रहा हूँ, जिन अपेक्षाओं से मैंने इन मीटिंग में भाग लिया था उनसे विपरीत अधिकारी का आचरण देखने को मिला। मानता हूँ कि हो सकता है कि मेरी सूझबूझ का स्तर उतना न हो, लेक़िन मेरी समझ अनुसार इन बैठकों का नतीजा शून्य है, जैसे कोई खानापूर्ति के लिए कार्य किया जा रहा हो। जैसे दिखावा करने को की मेने तो अपनी जिम्मेदारी निभा दी दूसरों ने नही किया तो मेरा क्या दोष। क्या इतनी सार्थकता काफी है। केजरीवाल जैसा आचरण है ये तो? जितना हम दूसरों से कार्य की अपेक्षा रखते है अगर स्वयम को उसी तराजू में रखें तो शायद हम कुछ जान पाए। अधिकारियों के पिछले 3 वर्ष में 3 अधिकारी और 3 ही रूप दिखे। प्रथम अधिकारी तो जगजाहिर था, जैसा कहते है सब नेता चोर है पर मेरा काम करदे मुझे उससे क्या। द्वितीय अधिकारी ऐसा की जिसके लिए नौकरी एक सरकारी अध्यापक की तरह थी, जो हो रहा है ऐसे ही होगा मेरा वेतन मिल रहा है मेरा घर चल रहा है वो काफी है। और तीसरे अधिकारी की शिक्षा और दीक्षा देखकर लगा था कि ये अधिकारी तो कुछ जुनून रखता है जमीनी स्तर पर कार्य करने का, मगर आशाओं पर उस वक़्त पानी फिर गया जब मैंने उनकी अखबारों में चमकने की भूख, ग्राम विकास की पीड़ा को अनुभव करने से ज्यादा थी। मैं सहमत हूँ कि समाज स्वयम का दुश्मन बना हुआ है वो निज हित के कारण सामूहिक विषयों को दरकिनार कर देता है। लेकिन इतना आसान होता सत्य का रास्ता तो हर कोई मसीहा या फरिश्ता न होता। संसार नही बदल रहा तो मैं ही बदल गया, इस धारणा का दुष्परिणाम तब देखने को मिलेगा जब आने वाली नस्लें चैन की जिंदगी के लिए जमीन तलाशेगी और सिवा कचरे के और कुछ नही होगा, मेरा शक अधिकारी की क्षमता पर नही और न ही मैं उनकी विवेचना करने की क्षमता रखता हूँ, मैं स्वयं की पीड़ा व्यक्त कर रहा हूँ, क्योंकि इतनी शिक्षा और नयेपन का अधिकारी बहुत कम देखने को मिलेगा और जब वो ही अधिकारी नही काम करेगा तो तकलीफ़ होना जायज है, स्वयम की बात करूं तो फिर सब कहेंगे अहम हो गया, मैं अपनी निर्धारित कार्य को कभी रुकने नही देता और सही कार्य को अधिकारियों से करवा भी लेता हूँ। मुझे तक़लीफ़ इतनी सी बात देती है जब मुझे दुसरो की तुलना करके नीचा दिखाया जाता है, एक विषय पर जब आप मेरी तुलना उनसे करते है क्या अन्य विषय जिनमें मेरी दक्षता है उनकी तुलना की, नही कभी नही। क्योंकि वो विषय तो आपकी पसंद ही नही।

और कुछ बातें सीने में इसलिए दफन कर लेता हूँ क्योंकि समाज का हर बात को लेने का संदर्भ अलग होता है । जब कभी आप किसी का सम्मान करने का नाम करते हो और फिर पलट जाते हो तो क्या उसका अपमान नही हो जाता। और ऐसा एक बार नही बहुत बार हुआ, कभी रिवॉर्ड के नाम लैपटॉप की मीठी गोली, कभी स्वतंत्र दिवस पर सम्मानित करवाने के सपने, यहां इस बात से ये भी प्रश्न उठता है कि जब अधिकारी अपने क्षेत्र का कार्य सम्पन्न नही कर पाता और कर्मचारी से उसकी तय चुनोतियों से अलग कार्य की अपेक्षा रखता है और पूरा न होने पर उसे बैठकों में अपमानित करता है। हालांकि मेने अधिकारी को भी उनके उच्च अधिकारियों के समक्ष बेबस पाया है और ये ही सोचकर मैं स्वयम को तसल्ली देकर अपने कार्य को पूरी मेहनत से पूर्ण करने की कोशिश करता हूँ।
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आज बाहुबली 2 मूवी देखी उसमें कुछ सार समाज की समझ बतलाता है जब आपके मन कपट नही होता तो कपटी व्यक्ति आप का शोषण इस तरह से करेगा आप सोच नही सकते यही जीवन में घटित होता है सदा, जहां आप सहकर्मियों पर भरोसा करते है वहीं सहकर्मी निज हित के लिए आप को मूर्ख साबित करते है, जबकि वो ये भूल जाते है कि जो व्यक्ति उनके स्नेह में एक बार मूर्ख बनकर उन्हें फायदा देता है जीवन भर के दोस्ती में कितना अनमोल होता। और थोड़े लालच में वो बड़ा नुकसान कर देते है। वो मूर्ख मित्र तो मन से प्रसन्न जीवन आनंदपूर्वक जी लेगा क्योंकि उसके मन मैल नही। छल करने वाला सदा छल की दलदल में ही रहता है डर के साये में सदा।

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

गुणवत्ता और इच्छा शक्ति::चापलूसी और कर्मठता

क्यों लिख रहा हूँ इस विषय पर जबकि सब की नजरों में कार्यालय में मौजूदा दौर में मेरा एक शशक्त वजूद है, ताने रूपी बाणो से हर क्षण भेदा गया है।
  दूसरी और अधिकारी की बढ़ती उम्मीदों के कारण मानसिक रूप से अपंगता का अनुभव होता है, जब आप शत प्रतिशत देते है और आशाएं एवं अपेक्षाएं ख़त्म होने का नाम नही लेती। इसके अतिरिक्त सिमित संसाधनों व् सभी कार्यो को समावेश बनाये रखना भी आवश्यक होता है। अधिकारी जब उच्च अधिकारियों के दवाब में एक वक़्त में एक मुद्दे को प्राथमिकता देते है तो अन्य विषय लंबित हो जाते है। जिसके कारण हर समस्या के समाधान के तुरंत बाद दूसरी समस्या खड़ी हो जाती है। जबकि समय रहते उचित प्रबंधन किया होता तो शायद वो समस्या गंभीर स्वरूप न लेती।

उदारहण स्वरूप दिसम्बर/जनवरी माह के दौरान मेने अधिकारी का ध्यान नवनिर्मित शौचालय की सूचि और दिलाना चाहा तो मुझे odf की प्राथमिकता का हवाला देकर इस विषय को अनदेखा कर दिया गया। और सिर्फ माह पश्चात् जब odf हुआ तो सर्वप्रथम वही कार्य याद आया, लेकिन एक सोचने की बात odf होने के 2 माह उपरान्त भी कार्यालय के पास कुछ ग्राम पंचायतों के ग्राम सभा प्रस्ताव और शौचालय निर्माण परिवारों की सूचि नही है निरिक्षण तो दूर की बात।

वहीँ दूसरी और स्वच्छ संग्रह बारे उपायुक्त महोदय द्वारा जब डिस्कस के लिए लिखा गया तो विचार विमर्श की बजाए उस कार्य को भी अन्य एजेंसी द्वारा करवाने के निर्णय से ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया। विचार विमर्श सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है किसी भी कार्य को दिशा निर्देश देने के लिए जब तक आप एक पहलु पर कार्य करते रहेंगे दूसरे पहलु के कार्य को कमजोर कर देंगे। फिर सबसे छोटी इकाई को ही सारा दोष मढ़ने की सौहार्दपूर्ण चेतावनी/धमकी। मानता हूँ कि बहुत से विषय हम में से किसी के हाथ नही होते पर टीम के रूप में कार्य करना हमारे हाथ होता है। टीम के रूप कार्य करने का मतलब श्रेय भी सबका और दोष भी सबका।

खैर छोड़िए असली मैं जो मुद्दा था जो काफी दिन की उठा पटक की वजह से ज़हन में चल रहा था वो है एक कंप्यूटर  ऑपरेटर के कार्य न करने का,

इस से पहले में एक उदारहण से अपनी मंशा जाहिर करना चाहूंगा। कभी भी शरीर के किसी अंग में समस्या होती है तो हम उसका इलाज करते है न कि उस निकाल अलग कर देते है कुछ विषम परिस्थितियों में जब वो अंग शरीर के अन्य भागों को नुक़सान पहुंचाए तब अलग करने की जरूरत पड़ती है अनायास तो आप शरीर को ही खत्म कर दोगे, नही समझे?

उस डाटा एंट्री ऑपरेटर में गुणवत्ता या क्षमताओं की कमी नही, सिर्फ इच्छाशक्ति का आभाव है अगर मैं अन्य कर्मचारियों पर नजर डालूँ तो उस से अधिक निक्कमे कर्मचारी मौजूद है कार्यालय में, पर जब वो काम करते नही तो उनसे गलतियां भी नही होती या वो निम्न अधिकारियो की चापलूसी के कारण प्रकाश में आते ही नहीं। आपके निम्न अधिकारी पर भी काफी निर्भर करता है कि वो आपको किस तरह से सिंचित कर रहे है।
जब मौजूदा अधिकारी से मेरी पहले दिन की बैठक थी तो मध्य अन्य कर्मचारी के होने के कारण मेरी एक नकारात्मक छवि बनकर उभरी थी। क्योंकि वो मध्यस्थ कर्मचारी अपनी त्रुटियों को हमेशा दूसरों को थोपने में माहिर है और श्रेय के लिए स्वयं आगे, मुझे ज्ञात नही लेकिन कुछ दिन के पश्चात मेरी छवि में सुधार हुआ और आवश्यकता से अधिक हुआ। अगर मुझे भी उस मध्यस्थ कर्मचारी की भ्रांतियों से ही आकलन किया जाता तो शायद मैं भी उसी कागार पर होता जहाँ आज वो डाटा एंट्री ऑपरेटर है। युवाओं की मानसिकता को भी समझना आवश्यक है कम वेतन मिलने के बावजूद उनके कार्य में सजगता, पूर्ण वेतन मिलने वालों की तुलना में अधिक योगनिय है।

मेरी तो ये ही समझ है कि उस ऑपरेटर को एक और मौका देकर, कार्य करने का मौका दिया जाए तथा समस्या का समाधान किया जाये न कि जड़ें उखाड़ी जाये।

मेरा शायद इतना कहना बनता नही, किसी को ठेस पहुंचाने के मकसद से नही बल्कि एक संवेदना से भरे मनुष्य के रूप में इस स्थिति को समझना चाहा है।

और जो विषय बहुत ही ठेस जनक थे उनका तो मैं जिक्र भी नही कर पाया।

सोमवार, 27 मार्च 2017

औरत तेरी कहानी.....

पर्दा मेने किया,
नजरें उसकी चुभती थी 😢

बेपर्दा हुई जिस दिन
गुनाहगार भी , मैं ही हो गई😷

हर इंसान में अक्स है मेरा
आखिर लूटती फिर भी मैं ही हूँ 😥

मेरे ही आँचल में पलता बढ़ता मासूम
फिर किसी मासूम का आँचल छीन लेता है 😔

ख़ुद के अक्स से बच कर जाऊ भी कहाँ
मेरी ममता की आड़ में, ज़िन्दगी उजाड़ देता है 😧

जो सुना था, वो समझ लिया, एक उम्र गुजार कर
आखिर लोहे ने ही लोहे को काट दिया

मेरी ममता, मासूमियत और प्रेम को भी बाँट दिया
एक औरत को अपनी जरुरत(हिस्सों में)  से दुनिया ने छाँट(चुन) लिया

गुरुवार, 9 मार्च 2017

कंचन करनाल:- एक अभियान स्वच्छता का

राजा कर्ण के नाम से सम्बोन्धित जिला करनाल, भगोलिक दृष्टि से देश की राजधानी नई दिल्ली व् प्रदेश की राजधानी चंडीगढ़ के मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग 1 पर स्थित है
धान के कटोरे के रूप में विश्व प्रख्यात  करनाल में खुले में शौच जाना भी एक कुप्रथा थी, आर्थिक रूप से संपन्न जिला केवल मानसिकता की वजह से खुले में शौच जा रहा था, गाँव की फिरनी पर आप चल नहीं सकते थे, दुर्गन्ध व् गंदगी का वो आलम था इन रास्तों पर कोई जाना पसंद नही करता था।

जून 2016 तक जिला करनाल के केवल 19 ग्राम पंचायत खुले में शौच मुक्त हो चुकी थी इस गति से चलने में जिला करनाल को पूर्णत खुले में शौच मुक्त होने में बरसो लग  जाते, जिला उपायुक्त की प्रबल इच्छाशक्ति से clts की 21 जून से 25 जून तक प्रशिक्षण दिया गया जिसमें खण्ड स्तर से चयनित 180 मोटिवेटर को 5 दिवसीय प्रशिक्षण के साथ विभागीय अधिकारी/कर्मचारी, आंगनवाड़ी वर्कर,आशा वर्कर, पंचायत समिति सदस्य, स्वयंसेवी संस्थाओं को भी एक एक दिन की कार्यशाला में खुले में शौच जैसी विकट समस्या से समाज की भागीदारी से लड़ने के गुर सिखाए गए।
उपायुक्त करनाल ने प्रशिक्षण के दौरान सभी दिन उपस्थित रहकर सभी अधिकारी कर्मचारियों को सन्देश दिया कि यह अभियान सरकारी योजना मात्र नही एक जन आंदोलन बने।

प्रशिक्षण उपरान्त जिला करनाल ने प्रथम चरण में 133 मोटिवटरों के साथ 148 ग्राम पंचायतों में कार्य शुरू किया। प्रथम चरणों में उन गाँवों को चयनित किया गया जो छोटे थे उन गाँवों का चयन का मकसद जल्दी से खुले में शौच मुक्त कर अन्य ग्राम पंचायतों के लिए उदारहण के तौर पर रखना था ,
मोटिवटरों ने चयनित गाँव में प्री ट्रिगरिंग की ताकि ट्रिगरिंग के दिन समुदाय की अधिकतर भागीदारी हो सके।

ट्रिगर के दौरान ग्रामीणों को उनकी खुले में शौच की आदत से होने वाली बीमारियों व् दुष्प्रभावो से मैपिंग, खुले में शौच स्थानों का भ्रमण इत्यादि माध्यमो से जागरूक किया।

ट्रिगर से प्रभावित गाँव के स्वयंसेवी आगे आये उन्होंने गाँव को खुले में शौच मुक्त करने का संकल्प किया। निगरानी समितियों का गठन किया। घर घर जाकर उन घरों को चिन्हित किया जिन घरों में शौचालय नही थे। रोज सुबह शाम निगरानी करके दिन में शौचालय रहित परिवारों के घर जाकर उनको प्रेरित किया।

अभियान की शुरुआत में कुछ कठिनाइयां भी आई, कुछ समस्या स्वभाविक थी तो कुछ नए अनुभव , इन सब को ध्यान रखते अतरिक्त उपायुक्त द्वारा मीटिंगों में ज्ञान साझा (Knowledge Sharing)  नव विचार लिया जो हुआ सफल, जिस से मोटिवटोरों को आपसी समस्याओं के समाधान मिले, व् दूसरे गाँवों की सफल कहानिया बनी प्रेरणास्त्रोत।

प्रथम चरण की 100 से अधिक पंचायतों के खुले में शौच मुक्त होने पर द्वितीय चरण में 120 गाँवों का चयन किया गया तथा इसी क्रम में तीसरे चरण में शेष पंचायतों को लिया गया।
जिला टीम द्वारा मॉनिटरिंग के ऑनलाइन व् ऑफलाइन दोनों प्रारूप अपनाये गये,
ऑनलाइन व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाकर जिला कार्यालय से मॉनिटर किया गया, अतरिक्त उपायुक्त कार्यालय स्टाफ द्वारा समस्याओं को रजिस्टर में दर्ज किया तथा सम्बंधित विभागों से संपर्क कर निदान किया गया।

वहीँ जमीनी स्तर पर जिला सलाहकार की अगुवाई में दो टीम गाँवों का भ्रमण करती, निगरानी समितियों से सुबह शाम फॉलोअप पर उनका मनोबल बढ़ाने व् समन्वय स्थापित करती।

जागरूकता फैलाने के लिए खुले में शौच मुक्त पंचायतों
के उत्सव किये गए, मीडिया के माध्यम से दूसरे गाँव के लिए प्रेरणादायक बने गांव।

जैसे चोचड़ा गाँव स्कूली 150 छात्रा्ओं द्वारा निगरानी करना, मुनक गाँव को 15 स्वयं सहायता समूह द्वारा खुलें में शौच मुक्त करने में अहम् योगदान

गोली की बुजर्ग माता ने स्वयं की शौचालय की गारे से चिनाई, बुजर्ग राम सिंह बने सजग प्रहरी, दो ग्राम पंचायतें करवाई खुले में शौच मुक्त।

न जाने कितने छोटे छोटे महत्वपूर्ण फैसले व नव विचार बने कंचन करनाल बनाने के मील के पत्थर।

खुलें में शौच मुक्त होने पर दिनाक 01 मार्च 2017 को किया गया भारत सरकार द्वारा करनाल के लोगो को सम्मानित।

हमारे मेहनती टीम और ग्रामीणों के सहयोग से हम odf निरंतरता बनाये रखने को है वचनबद्ध, जय स्वच्छता,

वीडियो शूट के लिए:-

इस कड़ी में निम्नलिखित वीडियो शॉट लिए जाने है
1. जिला करनाल के महत्वपूर्ण स्मृति चिन्ह के शूट, जैसे कर्ण ताल, ndri, दिल्ली व् चंडीगढ़ की दुरी के पत्थर इत्यादि।
2. ग्राम पंचायत की फिरनी का बुरा दृश्य जहाँ खुले में मल इत्यादि।
3. CLTS ट्रेनिंग में विभागों, सांसद, विधायको, स्वयंसेवी समूह इत्यादि के शामिल होने के साक्ष्य।
4. 212 नोडल ऑफिस नियुक्ति के योजना बनाते जिला कार्यालय का वीडियो।
5. 148 मोटिवेटर के ग्रुप बांटते वक़्त का शूट
6. प्री ट्रिगर का वीडियो
7. ट्रिगर का वीडियो गुरदेव का बेस्ट कहीं का भी
8. शर्मसार यात्रा, मैपिंग, इत्यादि के वीडियो या फोटो
9. डोर टू डोर का वीडियो

10. DC/Adc मीटिंग के वीडियो।
11. व्हाट्सएप्प पर आई समस्याओं के निदान का वीडियो
12. जिला सलाहकार व् सहायक जिला समन्वयक के सुबह फॉलोअप के दौरान निगरानी समितियों से संवाद के वीडियो।
13. ODF सेलिब्रेशन वीडियो
14. सफलता की कहानियो का संक्षिप्त विवरण
15. अन्य कोई गतिविधि का वीडियो

कड़वे शब्द बोलता हूँ