सोमवार, 6 अप्रैल 2015

हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है
मेरे कोरे दामन पर, कुछ दाग छिड़क जाती है

नसीब तो देखो इस बदनसीब दामन का
सीरत मेरी, फिर उजला कर जाती है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

जितना रहो दूर, इन समाज के धब्बों से
ये मुड़ मुड़ कर आते है दामन भिगो जाते है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

नफरत का दौर इस जहन में, ये कड़वाहट लाती है
मेरी पीठ थपथपा कर, हैसियत मेरी दांव लगाते है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

मेरी भली सी ज़िंदगी, बुराई घोल दी जाती है
हँसते चेहरे पर, उदासी पोत दी जाती है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

किसी अपने दोस्त के द्वारा, आप की चादर मैली की जाती है
हर रोज ज़िन्दगी वो ही कहानी दोहराती है

1 टिप्पणी:

  1. मंदिर में फूल चढ़ा कर आए तो यह एहसास हुआ कि... पत्थरों को मनाने, फूलों कि क़त्ल कर आए हम ।
    गए थे गुनाहों की माफ़ी माँगने .... वहाँ एक और गुनाह कर आए हम ।।

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