गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं।।

हर कोई तांक जाता है
जो देखे वो ही झाँक जाता है
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

लाचारी और बेबसी का कोई ठिकाना नहीं
जिसे देखो हर पांचवे के पास आशियाना नहीं
गरीबी का बेशक कोई पैमाना, नहीं पर में हूँ
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

अस्मत मेरी खुलेआम , बेआबरू हो जाती है
राह चलते को नीलामी की वस्तु नजर आती है
पर्दा में करू किस किस हैवान से
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

कह खुश हो जाता है मोरा जिया
सारा जहाँ मेरा आँगन है कोई सीमा जो नहीं
पर कोई भी दुतकार दुत्कार चला जाता है
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

रोती अंखिया अक्सर, सितारों के नीचे
जो घूर जाता था भरी दोपहर
आंसू उसे नजर आते नहीं
एक जानवर है जो पास आने पर घबराते नहीं
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

लाज शर्म मुझे भी आती है
आबरू मेरी भी घबराती है
अँखिया ज़माने की मुझे नोच खाती है
क्योंकि मेरे आँगन को चारदीवारी नहीं

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कड़वे शब्द बोलता हूँ