बुधवार, 22 अप्रैल 2015

दोहरापन विचारों का

लिखने का मन नहीं कर रहा पर लिखा नहीं तो नस नस में लावा बन दौड़ रहे खून के दौर को कम नहीं किया तो शायद नसें फट जाए।

अब बात आई की ऐसा हुआ क्या?

हुआ कुछ नहीं एक दोस्त(?) ने बहुत कुछ ज्ञान बांटा मुझे और फिर कहा ये तो कोई ख़ास बात नहीं।
पहले उस दोस्त के विचारो पर नजर डाले
उनके अनुसार महिलाओ को सम्मान मिलना चाहिए महिलाये पुरुषो से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं॥
जी बिलकुल, उत्तम विचार हम समर्थन करते है
अब उनके आज के नए विचार सुनिए
उनका मानना है गाँव में रहने वाले समुदाय सकीर्ण विचार व् शहरी समुदाय जैसे सवेदनशील नहीं होते॥
अनपढ़ और जाहिल होने के साथ वो लोग सवेदनहींन होते है। जबकि शहर के लोग पढ़े लिखे, सुशील और संस्कारी होते है।

अब मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि जो व्यक्ति समुदाय, धर्म एवम् रंग से इंसान में भेद करे वो खुद को संस्कारी और सुशील बताये तो आप् क्या समझें॥

अब समझ समझ की बात है और में किसी की समझ को नहीं बदल सकता ॥ इंद्री sdm दफ्तर में एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझ से दुर्व्यवहार किया था जिसके बारें मेने उपमंडल अधिकारी को शिकायत की थी तब उन्होंने एक जवाब दिया था
"विकास में आप को ठीक कर सकता हूँ या खुद को ठीक कर सकता हूँ पर एक बूढ़े दिमाग को ठीक नहीं कर सकता"

मतलब अगर हम अपने दिमाग सोच को एक धुरी पर टिका लेते है उनका कुछ नहीं हो सकता॥ अगर किसी समुदाय में सब अच्छे होते तब इस समाज में कोई विकृति होती ही नहीं। और सब बुरे होते तो कोई संगति भी नहीं होती।

देखिये में खुद उनकी बातों से इतना बुरा आहत हुआ कि खुद के धैर्य से रहने की बजाये एक दो विषय पर उलझ गया जबकि मेरी प्रकृति सुनने की है। पलट कर जवाब देना मुझे शोभा नहीं देता।। मेरी रब्ब से एक ही प्रार्थना है मुझे सन्मति प्रदान करें।। ताकि में किसी का भी अहित ना कर सकुं।। बाकि कोई जैसा भी हो उसकी प्रकृति उसके सिवा और कोई नहीं बदल सकता।।
बहुत कुछ लिखना था पर ओम चोपड़ा से मेरा फ़ोन रखना बर्दाश्त नहीं हो रहा॥

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