शनिवार, 30 मई 2015

दंगो का अभिशाप

कोई दर्द आज भी सीने में सुलग जाता है
दहक उठती है बुझे हुए शोलो में आग

कैसे दमन हुआ उन चिरागों का
जिनका रोशन होना था अभी बाक़ी

लूट गयी अस्मत उन दामनो की
जिनकी किलकारियां गूंजती आँगन में
उन घरो में सन्नाटा छा गया

जिन पनघटों पर लगते थे जमावड़े
आज कोई वहां लहू बहा गया
बरसो की बेपरवाह दोस्ती को
एक शक/अहम् का कीड़ा खा गया

भेद ना जाने था जो नन्हा जीवन
उसको भी ये खुनी भेड़िया खा गया
अपने स्वार्थ की खातिर
किसी घर का दीपक बुझा गया

लिपटी पड़ी शोलो में वो काया
जो कल लाल जोड़े में थी आई
महकना था जिसे अभी खलिहानों में
वो बूटी नोच कर है बलि चढाई

दंगो की ये आग ना किसी रोटी के काम आई
सिवाए बदन जलाने के और कुछु ना भलाई
बैर की ये बीज़ जो भी जग में बोता है
शायद वो अपने घर/ जग में इकलौता है

शुक्रवार, 29 मई 2015

सिमटता जीवन

मुसाफ़िर बन आया था जमीं पर
कुछ अंजानो ने अपना समझ हक़ जता दिया
मेरे कुछ सपने थे उनको खुदगर्जी से मिटा दिया

कहने को वो अपना बताते है हमे
मगर मतलब के रिश्ते, रुलाते है हमे

उनकी उम्मीदें इस कदर है बढ़ती
ज्यों ही, मेरी ज़िन्दगी की खुशिया है घटती

हर कोई अपना ख़्वाब मुझ से जोड़ देता है
जाने अन्जाने वो , मेरा सपना तोड़ देता है

कब इस दुनिया को जीना आएगा
हर कोई अपना ख़्वाब खुद सजायेगा

वजह के बिना, इंसान रिश्ता निभाएगा
कुछ अपनों से निकल, जग को अपनाएगा

मंगलवार, 26 मई 2015

शायर

रोज रोज तेरा आना यूँ कसीदे कस चले जाना
मोहब्बत नहीं तो क्या है, दिल्लगी किसी और पे आजमाना

सोमवार, 25 मई 2015

भुला दें, कहीं खो ना जाऊ

उमड़ उमड़ अरमान जगाये जाता है
भूले न भूले भुलाये जाता है वो चेहरा

मेरे जहन का कुछ इस कदर है दिल पर पहरा
जो भूल भी जाऊ, नश्तर सा चुभ गया है वो गहरा

होंठो से दूर वो जाता नहीं, शब्द बन झरता है
खलिश है जो दिल की, दर्द बन कर भरता है

जाने क्यों, मेरी जान का प्यासा बन गया है
एक तस्वीर बन , आँखों जे सामने तन गया है

कविता बन मेरे काव्या का, बसने को जी चाहता है
तोड़ कर बंधन लाज के, शब्द रस में डूब चाहता है

जाने क्यों

जानें क्यों उसको कुछ तो है गम
फिर नजर आई उनकी आँखें नम

यूँ ही बरस जाता है वो बिन बरसात सा
भिगो जाता है मेरा मन, उसकी करुणाइ से

डरता नहीं जो दिल कभी किसी ज़ख्म और चोट से
मोम सा पिघल गया, क्यों उसके आँखों की मायूसी से

कोई गुनाह तो मुझ नाचीज से हो गया
इसलिए वो बंद आँखों से ज्यों रो दिया

आलम तन्हा रोज रोज मुझ से सहा जाता नहीं
खुशियो से डरता है मेरा मन, दर्द से घबराता नहीं

शनिवार, 23 मई 2015

वो ................... क्यों है ज़िन्दगी में

उम्र भर का दर्द बन गया है  वो
काँटा सा सीने से उतर गया है वो

हर लम्हा, चुभन बन सताता है वो
ख़ुशी के लम्हें, याद बन रुलाता है वो

अब तो साँसों को, एहसास हो गया है वो
कभी भूलता हूँ, लगे अंदर से छूट गया हो वो

मामूली सी ज़िन्दगी मेरी, ख़ास कर गया है वो
बिना रंग की ज़िन्दगी में, सांस भर गया है वो

एहसान बन, मेरी ज़िन्दगी लूट गया है वो
क़र्ज़ के बोझ से बांध, रिश्ता जोड़ गया है वो

तक़लीफ़ है की सकूँ, बन सीने में बस गया है वो
कड़वी ज़िन्दगी में, कुछ मीठा सा रच गया है वो

#
इशानी  नाम किरदार वाले कलर्स के सीरियल को देख उमड़े कुछ जजबात॥ खूबसूरत कहानी लिखी जो मेरी पंक्तियों की प्रेरणा बनी॥

रविवार, 17 मई 2015

खिल गया वो मेरे मन में फूल की तरह

खिल गया वो मेरे मन में फूल की तरह

बस डर है इतना
मुरझा ना जाना कहीं
उस फूल की तरह

खिल गया वो मेरे मन में फूल की तरह

खुशबू से तो जग महकेगा तेरी
पर किसी की झोली ना जाना
उस फूल की तरह

खिल गया वो मेरे मन में फूल की तरह

आँखों से तो सब निहारेंगे बेशक तुझे
पर किसी के चरणों की भेंट ना बनना
उस फूल की तरह

खिल गया वो मेरे मन में फूल की तरह

फूल से फल बन, ज़िंदगी को महकाना
चंद रोज में तन्हा ना कर जाना
उस फूल की तरह

शनिवार, 16 मई 2015

अर्क दर्द का

गणित कुछ ऐसा है कुदरत का
जब गरीब को अचानक मध्यम वर्ग की उन्नति
मध्यम वर्ग को अमिर वर्ग की उन्नति
और अमिर को बेइंतेहा दौलत मिल जाए
तो उसके पाँव जमीन से उठना स्वाभाविक है

ऐसा कुछ मेरे दो सहकर्मियों के साथ हुआ
उनको लगता है कि कुछ अच्छे दिन क्या आये उनके
उनकी बेहतर रणनीति का कमाल है
वो वक़्त की मार से बेखबर हो गए है
जिनके साथ कदम से कदम मिलाते थे
आज उन्हें बौने नजर आने लगे है

उन्हें मालूम नहीं, उनकी बदतमीजी
हमे तो दो चार दिन तक़लीफ़ देगी
मगर उनके लिए जीवन भर घातक सिद्ध होगी
जब भी आदमी अपने कद से ऊपर उठा है
वो जमीन पर औंधे मुँह गिरा है

प्रार्थना है मेरी प्रभु से अक्सर जो में खुद के लिए भी करता हूँ
कि हमे सदबुद्धि बख्शे, बाकि सब तो हम अपनी मेहनत स हासिल कर लेंगे

उम्मीद है आने वाले दिन से
में अपना व्यवहार सौहार्द पूर्ण रखूंगा
क्योंकि जिसके लिए परेशान था
जब उसे ही परेशानी नहीं
फिर मुझे भी हर लम्हा उत्साह और उल्लास से जीना चाहिए

एक और फूहड़ गाना

कुडिया नु आजकल जचदा एको प्यार
bmw कार् ते नोटा वाला यार

आउटिंग तो जाना, मुंडे दा खर्चा करोना
डोमिनो ते पिज्जा, मैक डी दे बर्गर खाना

व्हाट्सएप्प ते ग्रुप विच एडमिन ता मजाक बनाना
फेसबुक ते , अंखिया घुमान दी dp लगाना

गीत:- कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

कोई खुशबू तेरे जिस्म की
मुझे क्यों खींच लाती है-2

मेरी धड़कनो पे होकर सवार-2
लहू संग बहक जाती है
कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

बावरी हो अंखिया-3
तेरी प्यासी हो जाती है
जो ना देखे तुझे तो
बरस कर सैलाब लाती है
कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

ठंडी आहें बनकर-2
रूह को तपिश में झुलसा जाती है
आग का समंदर, लहर उठा लाती है
कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

पाजेबो  की झंकार, सोलह शिंगार
उठते यौवन का, मीठा सा खुमार
मदहोशी बन, दिल और जान को
बेसुध् बनाता है
कोई खुशबू तेरे जिस्म की-2

शुक्रवार, 15 मई 2015

मतलब का संसार मित्र ना कोई शत्रु

कुछ इस तरह मतलब का हो गया संसार
बस एक मतलब है जरूरी ना की नफरत ना प्यार

अँधा हो गया है इंसान , चमक की दौड़ में
फीके पड़ गए रिश्ते, ऊँचा उठने की होड़ में

साँसों की जरूरत से ज्यादा, जिस्म की ख्वाहिशें
पेट की भूख से अधिक, इंसान की फरमाइशें

भरोसा बन गया है, ऊंचाइयों का पायदान
बेशक अंदर से टूट गया हो वो इंसान

चुपके जो तन्हाई है सीने में, सिक्को की खनक से दबा दी
जो ज़मीर करता था वसूलो की बातें, आज उसकी रूह रुला दी

गुरुवार, 14 मई 2015

मानसिक रोगी विकृत मानसिकता के

मेरे दफतर की कुछ ऐसी है कहानी
मानसिक रोगियो की भरमार है
आज कुछ फ़ोन नहीं उठाये की
उस अपने ने अपनों संग
मनगढ़ंत किस्से रच डाले

विकृत दिमाग अक्सर जहर ही फैलाता है
फिर उसके कुछ बिरादर भी उसकी तरफदारी करते है
बस ज़िन्दगी शायद इनसे लड़ने का नाम रह गयी

क़सूर बन गयी मेरी सादगी, हर कोई छलावा पसंद है
बस कूटनीति का दौर है इंसानियत के द्वार तो बंद है

अपनी कमजोरी को छिपाने को
ढूंढते बहाने दुसरो को जलाने को
ख़ुद फुरसत नहीं ख़ुशामद से

होंसला दे रब्बा, मुझे डर कहीं विनाशक ना बन जाऊ
सृष्टि नाम है जीवन का, कहीं नफ़रत से ना मर जाऊ

क्या करूँ कुछ समझ नहीं आते
नफ़रत भरे दौर में
मेरी मत धूमिल हो गयी
इस शौर से

बुधवार, 13 मई 2015

दिल की बात॥ सादगी के साथ

खुशबू बन कर जिस्म से लिपट गया वो
एक स्पर्श से, छुईमुई सा सिमट गया वो

चंद लम्हें जो मांगे उनसें, वो गुलाबी हो गए
सुर्ख आँखों से देखा तो, अंदाज नवाबी हो गए

शब्द नहीं निकले, होंठ जो फड़फड़ाने लगे उनके
एक इजहार ए मोहब्बत थी, होश फाख्ता थे सुनके

रिश्ता बुनते है वो इस तरह, दुनिया को ख़बर
जिसके दरमियाँ हो रिश्ता, बस दो वो ही बेख़बर

पढ़ लेता है आँखें, जालिम ज़माना उनसें पहले
कोई तो बहाना मिले ए खुदा, जो दिल की बात उनसें कह लें

#
गुस्ताख़ हो बेशक दिल ये मेरा
पर कोई कसूर कम ना था तेरा
जो तू कातिल सा मुस्करा जाता है
बैठे बैठे मेरा सब, ठग ले जाता है

सोमवार, 11 मई 2015

वैधानिक चेतावनी:- ह्रदय रोगी ना पढ़े

हुस्न की बारिश, मेरा बदन भिगो गयी
मेरी अंखिया उसके दामन में खो गयी

लिपटी सांसो से थी उसकी गर्म आहें
वो नागिन सा बल खा गया
जब मेरे लब छु गए उसके होंठो को

निढाल हो गया जिस्म, कायनात का करिश्मा देख
घूरती रही शराफत, ना जाने कब पलकों से गुस्ताखी हो गई

मलमल सा हुआ बदन, सोखियों के नज़ारे में डूब गया
कभी प्यासी थी ज़मीन जहाँ आज पानी वहां खूब गया

निचोड़ दिया बूँद बूँद अरमानों को उसके कदमो पर
वो भीग गया इस तरह, बरसो से सावन का हो प्यासा

बिखर गई, मोतियो सी उसकी लिपटी चादर पर
समेट गया वो अपनी बाँहों में, कोई खज़ाना मिला हो रूह का

दो धाराओ में जिंदगी बह सकती नहीं

लिपट गया मेरा दिल जो तेरी रूह से
अलग होता नहीं, रोज जमाना हँसता है
अक्सर जिद्द के दामन में ही दर्द बसता है

छोड़ ये सकता नहीं, निभाना मुझ से जाना नहीं
ये पल पल तड़पेगा, बेबसी भरा दिल धड़केगा
जाने क्यों जख्म नासूर बनाता है

पत्थर होने को कहा था इसे,
उसकी साँसों की तपिश
पत्थर को मोम बना गई

गर्मजोशी से आते है वो मेरे आशियाने में
डर के मारे, अक्सर नजरें फेर लेता हूँ
उस से कहीं ज्यादा, खुद को चोट देता हूँ

हिम्मत कर कह भी दूं हाल ए दिल
उस गैर से संभाला ना जाएगा
उसका अतीत, उसको रुलाएगा

दो धाराओ में जिंदगी बह सकती नहीं.....................

#साहस टूट गया लिखने को, हम पत्थर है बस दिखने को

रविवार, 10 मई 2015

आवाज देता अँधा दिल

रूठ गयी जमीन मुझ से
खिसक गयी पैरो तले से

धँसता गया हूँ दर्द के कुंए में
ओझल हो गया हूँ तन्हाई के धुंए में

रात दिन कशमकश में डूबा है मन
मछली सा तड़पता है मोरा बदन

आंसुओ को भी इजाजत नहीं बहने को
दर्द ने मेरा दिल घरोंदा बनाया है रहने को

परस्पर मेल खाती नहीं, दिल और दिमाग की
जीत की खबर नहीं, हार हुयी मेरे विश्वास की

हो सके तो कुछ लिहाज रखना मेरे आखिरी श्वास की
तू करीब न आना, कहीं डोर बंध ना जाये टूटते सांस की

#
मासूमियत भरे हसीं चेहरे पे मत पिघल जाना
शौक है इनका, दिल में आग लगा कर निकल जाना

शनिवार, 9 मई 2015

एक दिन जुदा हुआ यार तो अन्धकार हो गया

क्यों एक दिन की जुदाई अरसा हो गयी
बरसो की मुलाकात, पल में पलछिन हो गयी

हम देखते रहे, वो ओझल हो गए हमसे
मुट्ठी से फिसल गए हो रेत के जैसे

अब उनके जाने का दर्द सहे कैसे
हो जख्मी सीना, हँसते हुए रहे कैसे

चंद यादें रखी है उनकी, सीने से लगाकर
बाकि तो संग ले गया वो, रिश्ता तोड़कर

अब और कहीं दिल ना लग पायेगा
बहुत देख लिया, बेव्फा से दिल जोड़कर

अर्ज मेरी हो सके तो अपने मासूम दिल को बताना
दिल हो बेशक पत्थर, पर किसी पत्थर से ना दिल लगाना



रस बहता गया और में लिखता गया, क्या लिखा मालूम नहीं

खामोश रह कर यूँ सताया ना कर
बोझ दिल का अकेले उठाया ना कर

आज होता नहीं आंसुओ का किसी पर असर
हर कोई अपनी धुन में सबको अपने सिवा किस का फिकर

तू यूँ ही रुलाता है अपना सीना
बड़ा मुश्किल है इस जग में जीना
जाने किस ने किस किस से क्या क्या है छिना

रस्में अदायगी और भी है, रिश्तों के समुन्दर में
कोई महबूब ही नहीं, साथ निभाने को

बाहें खोल, दरवाजे खुले थे जिनके लिए
वो किसी तंग गली से, आँचल समेट निकल गए

ज़िन्द्गी दोहरापन वाली

दो जिंदगी जीते है हम

एक तो जो फ़र्ज़ के लिए बनाई इस दुनिया ने
इसके लिए ये फर्ज
उसके लिए वो फर्ज

दूसरी जिंदगी जो हम खुद बुनते है
बाहर अन्जान लोगों से मिलते है
दोस्त और दुश्मन अपने विवेक से बनाते है

पहली जिंदगी हम चाह कर भी नहीं छोड़ सकते
इस कदर थोप दी हमारी मानसिकता पर

और दूसरी जिंदगी हम छोड़ना नहीं चाहते
इस का अच्छा पहलु यह भी है जो मंन में है
जुबां पर नहीं होता मगर चेहरा बोल देता है

पहली जिंदगी में जुबाँ वो सब बोलती है
जो दिल में कभी नहीं होता पर
मानसिकता हो जाती है जहर उगलने की

बड़ी मुश्किल वाली संस्कृति है ये
शिक्षा का भी असर नहीं हुआ इन पर
बस ढोये जा रहे है जिंदगी
दो विपरीत दिशा वाले पहियो पर

#लगे रहिये मेरे ब्लॉग को सीरियस ना लीजिये॥ पीकू देखकर सच याद आ गया थोडा सा

गुरुवार, 7 मई 2015

खुशियों को नजऱ

निगाहें ज़माने की मुझ से ज्यादा कहीं तुझ पर है
उन्हें फ़िक्र खुद से ज्यादा, हमारे रिश्ते की है

रवैया इस कदर बिगड़ा है इस समाज का
भूलकर अपना कल, बस तमाशा बनाता मेरे आज का

हो गया है दुश्मन जब से, में और मजबूत हुए जाता हूँ
भावनाओ के समुन्दर से निकल, में भी सख्त हो गया हूँ

अब अश्क़ नहीं बहाता, औरो के कसूर पर
वक़्त बे वक़्त हंस लेता हूँ, उस मगरूर पर

वजह जो हो, ख़ुशी है मेरी ज़िंदगानी की
जीने की चाह है मुझको भी, बरसो बरसी अंखिया पानी की

कभी आंसू पोंछने ना जो उस वक़्त आया, आज वो आया है
संग अपने ढेरो मशवरे और फ़िक्र का संदूक लाया है

मेरा तकाजा है जिंदगी से, ज़िन्दगी फूल माफिक कुछ पल महकती है
तन्हाई और परेशानियो के दौर में, बस लम्हें जी भर चहकती है

इस बारिश में मुझे भीग जाना है
सर्द मौसम नहीं, कम्बखत ये जमाना है
वक़्त के थपेड़ो से आज हमने लूट कर ये जाना है

लम्हें उदासी भरे

क्यों उदास बैठे हो
क्या ज़ख्म है तुम्हारा

अंखियो में उदासी छाई है
चेहरे पर मायूसी क्यों आई है

कुछ ज़ख्म मेरे नाम कर दो
बेपनाह मोहब्बत अपने नाम कर लो

कोई शिकवा हो गर हम से
यूँ दोस्ती न करो किसी गम से

पास आकर बताता हूँ
हर शिकवा दूर करवाता हूँ

हमदर्द नहीं बेशक में तेरा
दोस्त होने का फ़र्ज़ निभाता हूँ

मंगलवार, 5 मई 2015

छोड़ मुझे, दर्द बेइन्तहा, अब ना सहे जाना

जी भर देखना चाहा तो
हया से चूर हो जाता है वो
में कहता हूँ जो दिल की बात
मजबूर हो जाता है वो

दस्तूर है मोहब्बत का, नजरें चुराना
फिर भी छुप छुप, उन्हें देख कर आना
झूठे बहाने बनाकर, उनसे  मिलने जाना
आँखों में बसे दर्द को, होंठो से छुपाना

गर्दिश भरे हो बेशक हमारी मोहब्बत के सितारे
ज़िन्दगी हमारी तो हर सांस उनको ही पुकारे
कोई शिकवा नहीं, जो वो हुए ना हमारे
हमने तो तन्हा लम्हें, सब उनकी यादों में है गुज़ारे

दो पल की खुशिया, मेरे दामन में भी छोड़ जाना
ताउम्र सजदा ना सही, किसी मोड़ पर मुस्कराना
आँखें फेर लेना हुआ बहुत, शिद्दत से गले लगाना
बरसो की प्यासी जमीं को, प्यार से भिगो जाना

छोड़ मुझे, दर्द बेइन्तहा, अब ना सहे जाना
सिर्फ चंद साँसे जो है, संग तेरे जीवन महकाना

रविवार, 3 मई 2015

प्यार की परिभाषा

प्यार एक जज्बा है
प्यार एक हुनर है
जो बंधन में बंधे वो डोर ही प्यार है
प्यार से बनते है रिश्ते हजार
इसमें रंगो की लय, नाजुक भय
इक आकर है जो परमात्मा है
उसका एक अंश प्यार है
दो दिलो में पलने वाला मासूम इजहार है
इसमें बंधा अलग जज्बा ही सब को स्वीकार है
कहता है हर पल, झरना, पवन, चमन सब में बसा
अनमोल उपहार है
प्यार को जितना फैलाये
उतना फैले, ऐसा व्यापार है
इसमें ना होता धोखा, ना घाटा
ऐसा व्यवहार है
जीवन प्यार ना होता
जीवन बेजान मूर्त समान है
प्यार का तो आकार निराकार है
प्यार सब के दिलों में
इसका अलग ही आकार है जो
रचा कण कण में
जिसमे है एक ठंडा एहसास वो प्यार है
सकूँ पहुंचाए दिलो को, करता एक दूजे को बेकरार है
फिर भुला बैर को
'कहो न प्यार है'

ये पंक्तिया आठवी कक्षा में लिखी थी शायद अच्छी नहीं पर उस वक़्त के दिमाग से बहुत सटीक है

शनिवार, 2 मई 2015

बचपन में ठूँठे आम से जो दिल लगाया

ठूँठे आम से दोस्ती कर ली बचपन में
सोचा था की, इसका भी वक़्त आएगा
कुछ नयी कोंपलों से, आँगन खिल जायेगा

सींचती रही में उसे अपने त्याग और बलिदान से
बूँद बूँद कर बहाया, पसीना अपना निचोड़ दिया
उस ठूँठे आम की खातिर, रसीला जग छोड़ दिया

हर मौसम उसका इन्तजार करती थी भूखी प्यासी
वो हर वक़्त बेरुखी और नीरसता भरा जीवन लाया
मेने अपने बचपन के प्यार से, इस कदर धोखा खाया

आज खोखली हो गयी है ठूंठे आम की असलियत भी
भरा था दीमक से जो, बस छलावा जो है दिखाया
अब ना भेद सकेगा ह्रदय, अपना और पराया

अब तो ठूँठे आम संग या तो अरमान जलाउंगी
हो सका तो, अकेले ही जीवन पथ पर कदम उठाऊंगी
बस रहम कर देना , एक तुम ठूँठे आम
ना करना मुझे किसी गली मोहल्ले बदनाम

कड़वे शब्द बोलता हूँ