बुधवार, 1 अप्रैल 2015

बेबस क्यों है दिल मेरा

मौजे और भी है जमाने भर की
मेरा दिल क्यों गम ए मोहब्बत
के आगे बेबस सा हो जाता है

कोई निशान नहीं रखता में दर्द के
मुस्कान सी रखता हूँ छुपाने को
मगर कोई इन आँखों से झाँक लेता है
मेरे दर्द भरे इस दिल को भांप लेता है

शौक हो गया अब तो दर्द में जीने का
खुशियो को देख अचानक घबराते है
ज्यों ज्यों गम आते हम फिर मुस्कराते

2 टिप्‍पणियां:

  1. हर आह को वाह मिली है यहाँ, कौन कहता है दर्द बिकता नहीं है..!!

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  2. तेरी वाह से मेरी आह और बढ़ जाती है
    तू हंसती जख्मो पर
    मेरी खुशिया तमाशा बन जाती है

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कड़वे शब्द बोलता हूँ