बुधवार, 27 अप्रैल 2016

उसूलों की भेंट

बचपन की सीख
कि ज़िन्दगी उसूलों पे चलती है
मेने भी कुछ बनाये थे

पर जब किताबों से बाहर
व्यावहारिक दुनिया आये थे
उसूलों ने कुछ यूँ थपेड़े खाये थे

वो ही लूटेरे निकलेे जिसने कायदे बनाये थे
खुद की सीख के चीथड़े करते हुए ना शरमाये
मेरे उसूल झूठी शान की भेंट चढ़ाये थे

अब कैसे बदलता खुद को
बचपन में घोट कर पिलाये थे
उनकी आदत थी बदल जाने की
हमने तो एक जीवन के उसूल बनाये थे

ज़मीर से जुड़ा था मेरा हर उसूल
फिर समाज के कुछ कायदे कबूल
ये ही थी जीवन की सबसे बड़ी भूल

हर किसी ने उसूलों के कतरे बहाए है
किसी ने लहू पिया किसी ने टुकड़े चबाये है
फिर क्यों मेने उसूलो के ख़ातिर
ज़िन्दगी के हसीन पल गंवाए है

उसूलो की भेंट मैने सुखद पल खो दिए
दुनिया से लड़ते लड़ते होंसले भी रो दिए

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

बला का खूबसूरत।।

बला का खूबसूरत है वो
मुझे तो नाकाफी था
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शिकायत है उनको रब्ब ना समझा
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है चीज कुछ ऐसी ज़िन्दगी
जिसको माना हो भगवान
जागा है उसका अहम का शैतान
न बना भगवान, ना रह पाया इंसान

बला का खूबसूरत है वो
मगर दिल खूबसूरत रख ना पाया
रेत सा फिसलती है रोज ज़िन्दगी
कोई रिश्ता ना उससे सम्भल पाया

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अहम को जो मिटटी में मिलाया होता
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बला का खूबसूरत है वो
खूबसूरत दिलों का साथ पाया होता
पलकों पर ना सही बेशक़
दिल में बिठाया होता
ज़िन्दगी का सलीका सिखाया होता

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वजूद है कुछ ऐसा मेरा
दिल में रखता हूँ अच्छाई
अच्छो की तमन्ना है दिल की
बस ये ही मुझ में एक बुराई

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

चिंता

सबको खाती है
कुछ बात हुई न
कि चली आती है
हँसते खेलते जीवन में
कौन सी आग लगाती है

कड़वे शब्द बोलता हूँ