मंगलवार, 18 जुलाई 2023

दर्द का ट्रिगर

15 मार्च 2023 का दिन मैं तो भूल गया था लेकिन आज मेरे दोस्त के दो दिन के जन्मे बच्चे की ठाकुर हॉस्पिटल करनाल में हालत देख कर, मेरा अपना दर्द भी ट्रिगर हो गया, मेरे सामने उस भयानक दिन के सारे लम्हें एक पल में आंखों के आगे से गुजर गए, 14 मार्च को बेटे की पट पर लोहे का बेंच गिरने से हड्डी टूट गई थी। डॉक्टर ने अगले दिन ऑपरेशन ही इलाज का एकमात्र विकल्प बताया, मेने भी मेडिकल विद्या के आगे नतमस्तक हो कह दिया जैसा डॉक्टर साहब आपको ठीक लगे। 
15 मार्च की सुबह 8 बजे डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर लेकर गए तकरीबन 10 बजे उन्होंने मुझे ही आईसीयू में बुलाया, वीर निरंतर रोता और सिसकता जा रहा था। एक पल भी गैप दिए बिना वो जैसे रो रहा था मेरा दिल बैठ रहा था। डॉक्टर ने उसे एक खड़तल से 3 घंटे तक पड़े रहने के निर्देश दिए। मेरा एक हाथ उसकी कमर पर स्पॉट दिए तथा दूसरा मेने उसकी मुट्ठी को अपने हाथ से पकड़ रखा था। जैसे जैसे समय बड़ रहा था उसका रोना मुझे बुरी तरह से तोड़ रहा था। शायद वो दर्द मैं बियान ना कर पाऊं लेकिन उस दर्द ने मुझे जिंदगी की अहमियत जता दी। मैं हर एक मिनट में उसे सांत्वना दे रहा था लगभग 3 घंटे उसका रोना बंद नहीं हुआ। और मैं आईसीयू में उसके पास बैठकर उस मार्मिक पलों में घुट रहा था।। मुझे एक जिम्मेदार पिता की तरह संभलना भी था और मां के दिल सा रोना भी था। रोता तो संभलता कैसे इसलिए बस उसका रोना और मेरा ये कहना कोई न बेटा बस ठीक हो जायेगा थोड़ी देर में, ये सिलसिला 3 घंटे चलता रहा। 
फिर रात के 12 बजे से उसका खाना पीना सब बंद था, जब सिसकना बंद हुआ तो उसे पानी की प्यास लगने लगी डॉक्टर का कहना था की 6 घंटे तक पानी नहीं दे सकते। मुझे लग रहा था जैसे आज कुदरत मेरे बेटे की सारी परीक्षा ले रही हो,  उसके सब्र के बांध को देख रही थी या मेरे । 
और आज दोस्त के बेटे की हालत ने वो दिन मेरी नजरों में फिर गुजार दिया। दर्द किसी भी अपने का हो तकलीफ तो देता है, हालांकि समझता वही है जिस पर गुजरती है लेकिन बेबस वो भी कम नहीं होता जो इस बुरे वक्त की घड़ी में अपनों के साथ होने के सिवा कोई मदद नहीं कर पाता। 

कड़वे शब्द बोलता हूँ