मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

जमकर बरसा हूँ आज

में अक्सर इतना बुरा नहीं होता
जितना आज हुआ हूँ
शायद ज़िन्दगी में इतनी दुविधा के कारन ऐसा हुआ
पूरी ज़िन्दगी मेने ऐसा करम आज तक नहीं किया
जो आज किया, जितना जहर था सीने में उतार डाला
बहुत तक़लीफ़ थी इसलिए
या आप ये भी कह सकते हो
बहुत कमजोर हूँ इसलिए
मुझे खुद उम्मीद नहीं थी
में इस कदर कर जाऊंगा
जो सुलझाता था ज़िन्दगी औरो की
खुद उलझ गया है इस अंधे संसार में
मुझे उन सब से क्षमा की जरुरत है
जिन सब को मुझ से ढेर सारी उम्मीदें है

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कड़वे शब्द बोलता हूँ