शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

ज़िन्दगी के रंग

समाज के सम्मान का तमगा था जिसके पास
उसे अन्धकार से दिखा कर रौशनी की आस

फिर धकेल दिया पहले से भी गहरे अन्धकार में
उसी सम्मान के नाम मुझे कर शहर में बदनाम
खुद का दामन छुड़ा गये, रूह मेरी रुला गये

समझ नहीं पाया, क्यों मुझे वो रास्ता क्यों दिखाया
शायद वो ही अपने कायदों को मुझ पर थोप गया
मुझे दुविधा की आग में तनहा ही झोंक गया

शुक्र है फिर भी , साँसों को कुछ पल ही रोक गया
ज़िन्दगी थी दांव पर, मुझे कम से कम ज़िंदा छोड़ गया

#
रिश्तों से खेलना छोड़ दे जिंदगी
मेने छोड़ दी तो ना रिश्ते होंगे ना तुम

कड़वे शब्द बोलता हूँ