शनिवार, 1 अप्रैल 2017

गुणवत्ता और इच्छा शक्ति::चापलूसी और कर्मठता

क्यों लिख रहा हूँ इस विषय पर जबकि सब की नजरों में कार्यालय में मौजूदा दौर में मेरा एक शशक्त वजूद है, ताने रूपी बाणो से हर क्षण भेदा गया है।
  दूसरी और अधिकारी की बढ़ती उम्मीदों के कारण मानसिक रूप से अपंगता का अनुभव होता है, जब आप शत प्रतिशत देते है और आशाएं एवं अपेक्षाएं ख़त्म होने का नाम नही लेती। इसके अतिरिक्त सिमित संसाधनों व् सभी कार्यो को समावेश बनाये रखना भी आवश्यक होता है। अधिकारी जब उच्च अधिकारियों के दवाब में एक वक़्त में एक मुद्दे को प्राथमिकता देते है तो अन्य विषय लंबित हो जाते है। जिसके कारण हर समस्या के समाधान के तुरंत बाद दूसरी समस्या खड़ी हो जाती है। जबकि समय रहते उचित प्रबंधन किया होता तो शायद वो समस्या गंभीर स्वरूप न लेती।

उदारहण स्वरूप दिसम्बर/जनवरी माह के दौरान मेने अधिकारी का ध्यान नवनिर्मित शौचालय की सूचि और दिलाना चाहा तो मुझे odf की प्राथमिकता का हवाला देकर इस विषय को अनदेखा कर दिया गया। और सिर्फ माह पश्चात् जब odf हुआ तो सर्वप्रथम वही कार्य याद आया, लेकिन एक सोचने की बात odf होने के 2 माह उपरान्त भी कार्यालय के पास कुछ ग्राम पंचायतों के ग्राम सभा प्रस्ताव और शौचालय निर्माण परिवारों की सूचि नही है निरिक्षण तो दूर की बात।

वहीँ दूसरी और स्वच्छ संग्रह बारे उपायुक्त महोदय द्वारा जब डिस्कस के लिए लिखा गया तो विचार विमर्श की बजाए उस कार्य को भी अन्य एजेंसी द्वारा करवाने के निर्णय से ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया। विचार विमर्श सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है किसी भी कार्य को दिशा निर्देश देने के लिए जब तक आप एक पहलु पर कार्य करते रहेंगे दूसरे पहलु के कार्य को कमजोर कर देंगे। फिर सबसे छोटी इकाई को ही सारा दोष मढ़ने की सौहार्दपूर्ण चेतावनी/धमकी। मानता हूँ कि बहुत से विषय हम में से किसी के हाथ नही होते पर टीम के रूप में कार्य करना हमारे हाथ होता है। टीम के रूप कार्य करने का मतलब श्रेय भी सबका और दोष भी सबका।

खैर छोड़िए असली मैं जो मुद्दा था जो काफी दिन की उठा पटक की वजह से ज़हन में चल रहा था वो है एक कंप्यूटर  ऑपरेटर के कार्य न करने का,

इस से पहले में एक उदारहण से अपनी मंशा जाहिर करना चाहूंगा। कभी भी शरीर के किसी अंग में समस्या होती है तो हम उसका इलाज करते है न कि उस निकाल अलग कर देते है कुछ विषम परिस्थितियों में जब वो अंग शरीर के अन्य भागों को नुक़सान पहुंचाए तब अलग करने की जरूरत पड़ती है अनायास तो आप शरीर को ही खत्म कर दोगे, नही समझे?

उस डाटा एंट्री ऑपरेटर में गुणवत्ता या क्षमताओं की कमी नही, सिर्फ इच्छाशक्ति का आभाव है अगर मैं अन्य कर्मचारियों पर नजर डालूँ तो उस से अधिक निक्कमे कर्मचारी मौजूद है कार्यालय में, पर जब वो काम करते नही तो उनसे गलतियां भी नही होती या वो निम्न अधिकारियो की चापलूसी के कारण प्रकाश में आते ही नहीं। आपके निम्न अधिकारी पर भी काफी निर्भर करता है कि वो आपको किस तरह से सिंचित कर रहे है।
जब मौजूदा अधिकारी से मेरी पहले दिन की बैठक थी तो मध्य अन्य कर्मचारी के होने के कारण मेरी एक नकारात्मक छवि बनकर उभरी थी। क्योंकि वो मध्यस्थ कर्मचारी अपनी त्रुटियों को हमेशा दूसरों को थोपने में माहिर है और श्रेय के लिए स्वयं आगे, मुझे ज्ञात नही लेकिन कुछ दिन के पश्चात मेरी छवि में सुधार हुआ और आवश्यकता से अधिक हुआ। अगर मुझे भी उस मध्यस्थ कर्मचारी की भ्रांतियों से ही आकलन किया जाता तो शायद मैं भी उसी कागार पर होता जहाँ आज वो डाटा एंट्री ऑपरेटर है। युवाओं की मानसिकता को भी समझना आवश्यक है कम वेतन मिलने के बावजूद उनके कार्य में सजगता, पूर्ण वेतन मिलने वालों की तुलना में अधिक योगनिय है।

मेरी तो ये ही समझ है कि उस ऑपरेटर को एक और मौका देकर, कार्य करने का मौका दिया जाए तथा समस्या का समाधान किया जाये न कि जड़ें उखाड़ी जाये।

मेरा शायद इतना कहना बनता नही, किसी को ठेस पहुंचाने के मकसद से नही बल्कि एक संवेदना से भरे मनुष्य के रूप में इस स्थिति को समझना चाहा है।

और जो विषय बहुत ही ठेस जनक थे उनका तो मैं जिक्र भी नही कर पाया।

कड़वे शब्द बोलता हूँ