सोमवार, 21 मई 2018

पराकाष्ठा जिल्लत की

जिल्लत भरी है उसकी बातें , रोज जलता हूँ

सहनशक्ति की भी सीमा होती है, खुद की जुबान पर नियंत्रण न कर, अक्सर दूसरों को कोसते है कि वो ऐसा वो वैसा, क्यों भूल जाते है कि जब तुम्हारी खँजर जैसी बातें किसी के दिल को लगेगी कुछ तो फर्क पड़ेगा, बस एक क्रिया पर प्रतिक्रिया तुरन्त कर, मसलें को वही बराबर कर लेता है जबकि अन्य सीने में दर्द पाल उस राह से दूरियाँ कर लेते है।
महफिलों में अक्सर आपको यूँ ताने कसने वाले मयल जाएंगे जिनको सिर्फ निज स्वार्थ या इच्छापूर्ति की विफलता के कारण बस औरों को निशाना बनाना होता है।
अब दलित शब्द को ही ले लो, वो होता है जो समाज में कुचला गया हो जिसका शोषण हुआ ये जाति से सम्बंधित नही होता जबकि समाज में होता उल्टा है, एक जाति पर दलित का लेबल लगा देंगे, जबकि कुछ जगह अक्सर देखा गया कि उसी जाति का सम्पन्न व्यक्ति अपनी ही जाति के निर्बल का शोषण करता है।

पहले आप रिश्ता बनाते हो
फिर रिश्तों की दुहाई से रिश्ता तोड़ देते हो...
फिर आपके फैसले के सम्मान में कोई पीछे हट जाता है
तो फिर आपको लगता है कि आपका ये भी अपमान हुआ, मतलब आपकी सुविधाओं के अनुसार सँसार नही तो आप सब राख कर दोगे, इसी मानसिकता के आधार पर कुछ लोग अक्सर दूसरों के जीवन में ज़हर डालते है।

जबकि असली रिश्ता एक बार जुड़ गया तो आप चाह कर भी उस इंसान का बुरा सोच भी नही सकते, कहना तो दूर ....और जो सर्वनाश की बातें करें तो आप उनकी मानसिकता का अंदाजा लगा सकते है,

सभी दोस्तों से निवेदन है कि बेशक़ आप निभा न पाओ दोस्ती के अन्य मायने, मगर उसके शुभचिंतक बन हमेशा रह सकते है बशर्ते आपके पास एक सुंदर दिल हो।

रविवार, 20 मई 2018

मैं विकास हूँ

मैं विकास हूँ
नाम से विकास हूँ
पर बौद्धिक विकास नही

क्यों.....

बचपन में बुजर्गों के पास बैठता था
अच्छी बातें सुन, अच्छाई डालता गया

फिर स्कूल गया, किताबो में भी कुछ ऐसा ही था
अच्छाई की जीत होती है झूठ की हार होती है

स्कूल हुआ, कॉलेज हुआ अब वो वक़्त आया
जब मैने पहली बार,..... जिंदगी हो था छुआ

कर्म करने को, मेने जैसे ही पहला कदम बढ़ाया
कर्म से पहले, जी हजूरी ने मुझे थप्पड़ लगाया

उम्दा और बेहतरीन है हुनर तुम्हारा, जो चलता नहीं
पकड़ बनाओ, झूठ पर....सच है कहीं बिकता नहीं

जो बिक जाता है वो ही बाज़ार में टिक जाता है
उसूलों और सिद्धांतों को, किताबों में बन्द कर दिया

पेट की भूख और काया के शौक ही नज़र आते है
सच की राह चलने वालों के बच्चे भूख से बिलबिलाते है

ये तो सबक थे व्यापार के, फिर रिशतें मिले प्यार के
सुहावने थे, मिश्री भी फ़ीकी पड़ गई उनके अंदाज से

क़ायदे सुविधा से बनाए, दिल किया तो भगवान समझा
उसी दिल ने ली करवट तो तीखें खँजर सीने में चुभाये

वाह री दुनियां, कब्र बना दी , जिन्दा इंसानों की
ज़रूरत से बने व्यापार, जरूरत से किया प्यार

विकास तो मखौल हो गया...भीड़ की दौड़ में

अच्छाई से मेरा भी दामन छुड़ा दो
जिन्दा कंकालों से मेरा भी रिश्ता बना दो

#जसजसजककसब्सब्जसजसम्सम्सब्ज़बजकजज़्सब

बुधवार, 2 मई 2018

शुभचिंतक vs मैं अथार्त गुनाहगार।

बात शुरू कहाँ से करूँ समझ नही आ रहा, उनके वक्तव्य से नजर आ रहा है कि जहां में सबसे बड़ा दोस्त का दुश्मन में ही हूँ। मैं शायद इस वजह से भी मुझ में खामियां हो क्योंकि मैं में ज्यादा रहता हूँ, मेने अक्सर दोस्तों को समझाने की कोशिश कि कौन अच्छा है कौन बुरा, तुम्हारे सामने जो अच्छे बनते है वही पीठ पीछे आपकी बुराई करते है, बस मेरा ये गुनाह ही था कि मैं गुनाहगार हो गया। या तो वो उनके इतने प्यारे थे कि मेरी बातें महत्वहीन हो गयी या फिर उनको भी अच्छे से पता है पीठ पीछे बुराई होती है मगर किसी का कुछ किया नही जा सकता , मानव प्रवृति ऐसी है। जो भी है पर मुझे चोट बहुत लगती है, एक सत्य ये भी है कि मेरी चोट का मूल्य वहां नही हो सकता जहां दोस्त को खुद की असुविधा हो। कोशिश जारी करने लगा हूँ कि अब किसी को भी किसी के पीठ पीछे के कथन को न दोहरा सकूँ। दोस्ती के पैमाने पर में जीरो हो चुका हूँ, क्योंकि चुनिंदा दोस्तों में से आज कोई मेरे पास नही, एक इल्जाम ये भी आया कि मैं दोस्त लाभ के लिए बनाता हूँ ह्म्म्म मानता हूँ  अकेलेपन को दूर करने के सिवा कोई ऐसा स्वार्थ न था जिसके लिए मेने दोस्त बनाया हो, फिर भी आज कठघरे में खड़ा कर दिया गया।

इतना सत्य है कि दोस्तों से मेरा मोहभंग भी जब हुआ मुझे उनकी सख्त जरूरत थी और वहां न मिले, इसके कारण तो सही भी है मुझे लाभ के लिए दोस्त चाहिए था पर जो नराज है वो भी समझे क्या उनका कोई लाभ या स्वार्थ न था। मेरा तो कल भी वही व्यवहार था और आज भी वही है, जो प्रेम से बोले तो कभी ख़ामोश नही रहता पर जब आप तानों के बाण से बतियाओगे तो कहां से शब्द निकलेंगे, जब दिल ही घायल हो चुका होगा, फिर इल्जाम आएगा तुम शब्दो के माहिर हो,अरे वो शब्द भी तो दिल से निकलते है वो भी तो मेरे है, जब दिल दुखाने वाले शब्द मेरे है तो मरहम वालों पर क्यों यकीन नही करते दोस्त। मेने जिसे दोस्त माना आज तक उसका बुरा न चाहा, हां जो खामियां मुझे लगती शायद उनपर विचार किया हो लेकिन कभी बुरा नहीं चाहा, पर मेरे दोस्त कुंठित होकर इतना बुरा कह देते कि रब्ब से मौत ही मांगना बेहतर लगता है किसी एक का भी दिल दुखाया तो जीवन किस काम का....

लाख बुरा हूँ मैं... पर तेरी बुराई न चाहूँगा
तुम बेशक़ कत्ल कर दो मेरा...उफ़्फ़ न होगी

कड़वे शब्द बोलता हूँ