बुधवार, 8 अप्रैल 2015

चल पड़े पिया संग पतंग बनके

निकले थे वो आज बन ठन के
चल पड़े पिया संग पतंग बनके

डोर से बंधी थी साँसे उनकी
चमक उठी थी आज कानो की झुमकी

रास्ते भी रुक गए थे उनके आज
भूल बैठे ये दुनिया और समाज
चल पड़े पिया संग पतंग बनके

मंद मंद चलते हुए भी पाज़ेब है खनके
सोना सा चमक उठ, गले के मणके
सोने यार दे नाल, चूड़िया भी खनके
चल पड़े पिया संग पतंग बनके

मिट गयी जो थी बरसो की दूरियाँ
खत्म हो गयी है आज मजबूरियां
आँखों का काजल भी है दमके
चल पड़े पिया संग पतंग बनके

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