गुरुवार, 3 नवंबर 2016

मेहनत का जनाजा

आज दफ्तर में कार्य करते हुए तीन साल बीत गए और जब आज नया अनुबंध सिर्फ 6 माह के लिए बढ़ाया तो मनोबल को गहरा आघात पहुँचा। कार्य के प्रति अपना शत प्रतिशत देने के बावजूद जब ....….....।

मैं मानता हूँ कि जब भी कोई नया अधिकारी आता है उसकी कार्यशैली को समझने में वक़्त लगता है। उस वक़्त डाँट से भी इतना फर्क नहीं पड़ता क्योंकि आप की कार्य दक्षता का उनको और उनकी कार्यशैली का आपको पता नहीं होता। एक अनुबंध कर्मचारी का पहले ही आर्थिक शोषण होता है उसके बावजूद समय पर वेतन व् एक वर्ष तक अनुबंध बढ़ने का सकूँ होता है निश्चिन्त होकर कार्य कर सकते है। आज वो भी छीन जाने से एक भी कार्य करने का मन नहीं हुआ। जाने अगले अनुबंध से पहले नया अधिकारी आ जाये और फिर अनिश्चिताओं का दौर शुरू हो जायेगा। पहले वर्ष पश्चात् ये भय सामने होता था अब हर 6 माह बाद होगा। बेहतर कार्य करने के उपरांत भय में जीना पड़ता है। जबकि सारी शक्तियां अधिकारी के पास होती है वो चाहे तो अगले दिन ही घर भेज दें फिर भी जाने क्यों अनुबंध की तलवार से डराया जाता है।

फिर आपके पास वो अधिकार भी नहीं कि आप अपनी बात कह सके। यह अत्यंत दुःखद व् पीड़ादायक है।

कड़वे शब्द बोलता हूँ