सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

महिला सशक्तिकरण

चारों तऱफ बात तो सब करते है महिलाओं के सशक्तिकरण की, पर करते क्या है? सुरक्षा के नाम पर चंद दीवारें और महिलाओं के लिए खड़ी कर देते है। तुम्हें ये नहीं करना, वो नहीं करना इत्यादि बन्धनों में बांध दिया जाता है।
महिला सशक्तिकरण? महिलाओं को इतना सक्षम बनाना कि उनकी निर्भरता चाहे वो आर्थिक हो या सामाजिक किसी अन्य व्यक्ति विशेष पर न निर्भर हो। उसके आत्मविश्वास को इतना सृदृढ़ बनाना कि उसे किसी भी कार्य को करने में अक्षमता का अनुभव न हो।

पर हम लोग सशक्तिकरण के नाम पर करते क्या है,
कॉलेज के बाहर लड़कियों को लड़के छेड़ते है, वहां पुलिस लगा दो
दफ़्तर में महिलाओं को शोषण होता है, वहाँ भी किसी कमेटी का गठन कर दीजिए।
बेटी को स्कूल जाना है तो बड़े भाई व अन्य को कवच बना जिम्मेदारी उसे सौंप दी।
शादी कर रहे है तो बेटी को अगले घर परेशानी न हो, तो दहेज के बड़ा सा टोकरा लाद दिया।

इन बैसाखियों के सहारे दे दिए ताकि वह अपना जीवन सुखद बना सके। क्या ये ही है महिला सशक्तिकरण।
कल कोई बैसाखी नहीं हुई तो वह महिला फिर स्वयं को असहाय महसूस करें।
सहारा चाहे पुरुष हो या औरत उसे केवल कमज़ोर बनाता है सशक्त नहीं। आपका पुत्र क्यों सशक्त बनता है क्योंकि बचपन से उसके जहन एक ही बात डालते हो ये तो लड़का है कर लेगा बस वह फूक जिंदगी भर उसे उड़ाए रखती है और उस लड़की जिसे कहते है ये तो लड़की है उसको सोने के पिंजरे में कैद कर देते है। कोमलता के नाम पर उसे परिवार की सबसे कमजोर कड़ी बना दिया जाता है। जिसने सही बात कर दी तो उसका मुँह चंद खोखली मिसालों से बन्द कर देंगे कि नारी तो मजबूत है जो बच्चों को जन्म देती है सर परिवार संभालती है इत्यादि बड़ी बड़ी बातों से उसके वजूद को, भावनात्मक परत से ढक दिया जाता है।

महिलाओं को अगर सक्षम बनाना है तो वास्तविकता में बचपन से उनके साथ वही व्यवहार करना होगा जो एक पुरुष के साथ होता है कोई भी ऐसा विन्रम व्यवहार कि वो लड़की है नहीं कर सकती उसके अंदर हीनता को जन्म देना है। अगर परिवार का पुरुष ही उसका सरंक्षक होता तो महिलाओं पर अत्याचार के ज्यादातर मामले में पुरुष परिवार से या रिश्तेदार नहीं होता।

कानून का फायदा भी वो तब उठा सकती है जब उसमें पुरुष के विरुद्ध जाने कि आत्म शक्ति का एहसास होगा।

मेरी उक्त बातें सब निर्रथक है अगर अब भी आप लड़की या महिला को मजबूत बनाने की बजाए उसे सरंक्षण की बैसाखी देना चाहते है। भगवान द्वारा ऐसी कोई कमज़ोरी नहीं दी गई कि महिला पुरुष की ताकत का मुकाबला नहीं कर सकतीं। समाज में अनेक ऐसे उदारहण है जा महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया उसका मुख्य कारण उनकों बढ़ने के लिए सामान अवसर प्रदान करना था।

औरत को सम्मान के साथ होंसला दीजिए, सहारे की बैसाखी कमज़ोर बनाती है इंसान को असली पहचान उसकी समाज में लड़ने की हैसियत दिलाती है।

शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

बजट 2018: युवाओं का देश और युवा ही नहीं।

न मैं कोई अर्थशास्त्री हूँ , न कोई राजनीतिज्ञ
हाँ एक ऐसा देशवासी हूँ जिसकी उम्मीद होती है कि ख़ुशहाली सबके हिस्से आए, और उसका एक ही रास्ता होता है सबके जीवन यापन हेतु रोज़गार, नोटबन्दी, GST इत्यदि ऐतिहासिक फैसलों के बावजूद सरकार रोज़गार के अवसर देने में पूर्णतः विफल रही। इस आख़िरी बजट से उम्मीद थी शायद युवाओं के लिए कोई सौगात आएगी।

हालांकि सरकार ने गत वर्षों में स्किल इंडिया (ddukgy) नाम की योजनाओं से नए रोजगार सृजन की कोशिश की लेकिन अंतिम चरण में वो भी अन्य सरकारी योजनाओं की तरह लक्ष्य पूरा करने की होड़ में केवल खानापूर्ति बन कर रह गई। युवाओं को रोजगार के नाम पर मार्केटिंग कंपनीयों के शोषण के बाजार में झोंक दिया गया जोकि 5000 से 7000 के वेतन के रूप में लॉलीपॉप साबित हुई।
सरकार को चाहिए कि योजनाओं का किर्यान्वयन करते हुए लक्ष्य पूरा करने की होड़ की बजाए गुणवत्ता पर ध्यान दें। वोटबैंक की राजनीति देश को आगे बढ़ाने की बजाए खोखला बनाती जा रही है। आरक्षण जैसे मुद्दों की वजह से पहले ही समाज में युवाओं में नई खाई बनती जा रही है। एक शोषण को ख़त्म करने के रास्ते हम नए शोषण को जन्म दे रहे है। वो दिन दूर नहीं कब इस देश में आरक्षण को ख़त्म करने के लिए व्यापक आंदोलन होने के आसार है। युवाओं को भी कुछ मुद्दों पर निज हित को भुलाकर सामूहिक हितों को प्राथमिकता देकर फैसले लेने होंगे। शायद तब ही इनके लिए कोई सरकार संजीदगी से फैसले ले।

कड़वे शब्द बोलता हूँ