गुरुवार, 31 जनवरी 2019

झूठ हूँ झूठ था झूठ रहूँगा

ज़िन्दगी कभी ऐसी शख्शियत से मुलाकात करवा देती है कि उनसे मिलने पर जो भावनाएं या वादे आपने खुद से उनके प्रति जीवन भर निभाने के लिए किए थे आज वो उनकी महत्वकांक्षा या आपकी स्वयं की इच्छाओं का दामन, कारण जो भी है मगर खुद का अस्तित्व खतरे में पड़ गया, उस शख़्स से विश्वास/भरोसा इस तरह से टूट जाता है उसका सत्य भी झूठ और स्वयं भी झूठ हो जाता हूँ, एक दिल है कि वो मानने को तैयार नहीं होता कि वो फ़रेब से डूबा गुलाब था उसकी खुशबू भी सजावट की थी जिसे केवल ग्राहक को लुभाने को इस्तेमाल किया जाता है, दिल कहता है मेरा क्या कसूर था मेने तो चाहा था, मुझे क्यों सजा मिली, जरूरतें उसकी भी संसारिक थी और तुम्हारी भी, मुझे क्यों दर्द मिला, अब इस नादान दिल को कौन समझाए जरूरत इसकी भी सीने में धड़कने की है, अगर तुझे नापसंद है तो  धड़कना छोड़ दें, सांसारिक लोग तो संसार की रीति पर चलते है, अवसर तलाशते है अवसर से ही बदलते है, दिल बेचारा अमुक खड़ा सुन रहा था, सांसारिक जीव की प्रलोभन से लिपटी जिह्वा की बातें, समझ नही आ रहा था कि सीना छोड़े कि चाहत, छन से फिर आवाज आई, टूटे दिल ने स्वीकार करली तन्हाई।

कड़वे शब्द बोलता हूँ