मंगलवार, 22 सितंबर 2015

सर्वोतम हूँ में

सर्वोतम हूँ में

इस दौड़ में
जानवर हो गया इन्सान
भले बुरे की छोड़ पहचान
हो गया हूँ महान

सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में
दुसरो को नीचा दिखाता गया
खुद का परचम लहराता गया
दिल को बहलाता गया

सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में
नशे में चूर हो गया था मय के
भूल गया था मायने भय के
बस दौड़े जा रहा था

सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में
कुछ अपने थे जो समझाते रहे
मेरे जहन से रुकावट समझ बहते रहे
वो फिर भी अपना कहते रहे


सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में
सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में

सर्वोतम हूँ में
इस दौड़ में

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सर्वोतम की होड़ में
मंजिल पर अकेला होगा तू
दुनिया छोटी आएगी नजर
कोई बराबरी को नहीं होगा बेशक




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कड़वे शब्द बोलता हूँ