बुधवार, 16 सितंबर 2015

बेगानो से अपने अपनों से बेगाने

नन्हें कदमो से चलना सीखा था
की बचपन छीन लिया
अपने और कुछ बेगानो ने

खेत खलिहानों की जगह ले ली
आलीशान मकानों ने
ऐसा छला मुझे अपने और कुछ बेगानो ने

वक़्त की रैना में वो बेगाने भी अपने हो गए
हम कुछ वक़्त के लिए हसीं सपनो में खो गए
लगने लगा है कि वो बेगाने भी अपने हो गए

रास ना आई मेरी खुशिया, अपनों की ही नजर लग गई
इस तरह हुयी विपदा की
जो बेगाने हुए थे अपने
आज फिर बेगानो सा हो गए

जो संजोये थे संग जीने के सपने
वो कहीं अपनों की खुशियो में खो गए
जो बेगाने हुए थे अपने
आज फिर बेगानो सा हो गए

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क्या खेल जीवन ने है खेला
आगे बढ़ने को नहीं
पीछे हटने को नहीं

तथ्य:- एक दोस्त ने अपने दोस्त की वेदना सुनाई थी कुछ इस तरह ही व्यक्त कर पाया॥ हिम्मत ना हुयी कुछ और लिखने की

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