आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी
मोहताज हो जाती है जिंद सहारे को
ढूंढ़ नहीं सकता किसी किनारे को
आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी
लाचारी के आलम में अपने भी रूठ जाते है
दूसरों का बोझ उठाते वक़्त रिश्ते भी टूट जाते है
आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी
दया की नजरें चुभती है इन आँखों को
वक़्त तोड़ नहीं सकता बेबसी की सलाखों को
आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी
आसाँ नहीं होती
बैसाखियों पर ज़िन्दगी
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मुझे भी बिन बैसाखी जीने की चाहत है
ये ही उम्मीद जीवन में एक राहत है
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