रविवार, 19 जुलाई 2015

शिथिलता की और चंचल मन

मस्तिष्क के गहन मंथन और मन की शिथिलता के कारण सब कुछ अनान्यास नजर आ रहा है। मयूर की भांति नाचने वाला मन किसी घोर अन्धकार की दुनिया में रस्ते की तलाश कर रहा है। अत्यंत तीक्ष्णता से कार्य करने वाला दिमाग के घोड़े बेलगाम से हो गए है। अब इस चिंतन से शायद कुछ हल निकल आये। रात्रि का पहर जब भी मुझे कचोटता है समझो की में बहुत ही द्वन्देश की अवस्था में होता हूँ। मानसिक पटल पर सिवाए चन्द बूंदों के कुछ नजर नहीं आ रहा वो बूंदें भी सुख कर सिर्फ निशाँ बाकि रह गए है। एक तरफ सही का प्रश्न है तो एक तरफ गलत का? समस्या ये भी है की जगह बदलने से सही और गलत का मायने भी बदलते नजर आते है। देर रात जागना मेरी प्रकृति कभी नहीं रही पर अक्सर जब भी मुझे कुछ चुनाव करने पड़े ज़िन्दगी ने मुझे चैन से सोने नहीं दिया। और हर बार ज़िन्दगी हार जाती और ये सामाजिक ज्ञान बाजी मार जाता है। शायद ये वो बात हो रही है पानी में रह क्यों मगर से बैर। अब रहना इन लोगो के साथ है तो इनके बनाये कायदे मानने होंगे या मानने का दिखावा करना होगा। जैसा अक्सर हम जब करते है किसी दूसरे धर्म या जाति के व्यक्ति के साथ उसके जीवन शैली को अपनाने या जानकारी होने का दम भरते है। हालाँकि सब कुछ आखिरी में मिलना मिटटी में है फिर भी जाने क्यों इतने फसादों में उलझे रहते है। जब कोई विपदा आये तब जरूर सब्र का परिचय दे देते है। अगर सामान्य जीवन में भी हम सब्र से एक दूसरे की मानसिकता को समझ उनका आदर करना सीख जाये तो शायद बहुत सी समस्याओ का निपटारा हो जाये। अक्सर मुझे तक़लीफ़ होती है कोई मेरी बुराई करता है जबकि उसने मेरा कुछ लीग नहीं पर वो मेरे मानसिक पटल पर अपने जिह्वा से उसके मानसिक जहर को छोड़ जाता है और वो जहर हमे तक़लीफ़ देता है। किसी के दिल में जगह बनाने में बरसो लग जाते है मगर एक छोटी सी घटना आप को उसके दिल से निकल बाहर फैंक देती है । सही मायने में तो फैंकने वाला गलत है क्योंकि उसने उसकी एक गलती के पीछे सो अच्छाइयों को जल दिया। जबकि ये समाज भी एक गलती को ज्यादा महत्व देता है उसके 100 गुणों पर एक अवगुण भारी हो जाता है। अब कोई संत आप को सांसारिक साधनो का उपयोग करता नजर आ गया तो आप अचानक उसके प्रति अपना दृष्टिकोण बदल देते हो क्योंकि आप ने अपने मस्तिष्क में उसकी छवि बना रखी थी उसको झटका लग जाता है। अगर हम खोजी दृष्टि रखते है तब हमें कोई बात बुरी नहीं लगती। मुझे जब तक आप को जानने व समझने की उत्सुकता होगी तब तक आप की बुराई और अच्छाई को में सकरात्मक नजरिये से अध्यन करूँगा और आप से अच्छी पहचान के बाद आप की कोई नई बात पता चल जाती है तो जैसे मुझ पर पहाड़ टूट पड़ा हो। ये नजरिया ही हमेशा हमारे रिश्तों व् ज़िन्दगी के दुखो क कारण बनता है।

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