मंगलवार, 28 जुलाई 2015

जाने क्योंहर कदम वो

जाने क्यों
हर कदम वो
मुझे बेबस कर जाता है
होंठो से निकले तीरो से
मेरा सीना भेद जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
खुद की बातों से कर हैरान
मेरी बातों से परेशां हो जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
सिसकियां भर कर मुझे भी
खून के आंसू रुलाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
मेरी हर बात से रूठ जाता है
अपने सपनो से
मेरी ख्वाहिशें धूमिल कर जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
मेरी साँसों की डोर सा
बंधा चला जाता है
महरूम हूँ में
जो वो भरपूर हुआ जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
अग्न से पीड़ित कर मुझे
खुद शीतल सा हुआ जाता है
मेरी आहट से ही
कंपकंपा जाता है
जाने क्यों
हर कदम वो
जाने क्यों
हर कदम वो
मेरा सुर्रूर
और मगरूर सा हुआ जाता है
#
नशे सा छा गया है तू बेशक मुझ पर
तुझ से बेहतर भी नशे है ज़माने में
बस दो जाम लगते है उन्हें भुलाने में

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