शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

वो जब आये मेरे मोहल्ले में

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
होंठो से नहीं, नजरो से बतियाना हुआ
कुछ तो नजरो का मिलाना
कुछ उनका शर्माना हुआ

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
कुछ इस तरह उनका मुस्कराना हुआ
होंठ तो खुले नहीं, चेहरा गुलाब हो गया
देखते ही मैं तो लाजवाब हो गया

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
कुछ इस तरह उसका इतराना हुआ
उसने तो पूछ लिया, पता अपने ख़ास का
रंग उड़ गया मेरे आत्म विश्वास का

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
मेरा दिल ही निशाना हुआ
वो तो चले गए वापिस कब से
मेरे लिए उम्र भर का अफ़साना हुआ

वो जब आये मेरे मोहल्ले में
तो मेरा दिल भी दीवाना हुआ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कड़वे शब्द बोलता हूँ