सोमवार, 20 जुलाई 2015

दिल की कलम से

कुछ लम्हें मेरे जीवन के
तेरे गुलाम हो गए
तेरे चाहत के बिना
हम बदनाम हो गए

तलाशती है बेशक आँखें तुम्हें
जमाना तुम से पहले जान जाता है
बेबसी का आलम है कुछ इस तरह
तुमसे जुदा होकर भी पास है

दूर जाता हूँ जितनी योजन
दिल उतना तेरे करीब हो जाता है
तड़पता है तन्हा, पंछी सा छटपटाता है
बिन मौसम ये आँखों से बरस जाता है

लौट जाए हम तो, इश्क़ की राह से
मगर रह रह उनका ख्याल जो आता है
जो मुझ से दूर जाने की सोच से ही डर जाता है
मेरा होंसला बस यूँ ही उसके आंसुओ पर टूट जाता है

अब तो रब्ब तू ही मेहरबानी कर
जिस्म से दिल की रवानी कर
या उनकी आँखों में रौशनी भर
उसकी हर अर्ज कबूल कर

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टूट कर भी, दिल उनको याद करता है
खुद फ़ना हो गये
पर उनकी सलामती की फरियाद करता है

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