गुरुवार, 16 जुलाई 2015

धुंआ है ये मोहब्बत

धुआँ है ये मोहब्बत
एक बार बहुत नजर आती है
एक हवा के झोंके से
कहीं खो जाती है

मन होता बावरा जब तक धुआं होता है
और कुछ इसे नजर आता नहीं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कड़वे शब्द बोलता हूँ