रविवार, 9 अगस्त 2015

क्यों आदत हो गई .......

क्यों आदत हो गई
मुझे तड़पाने की
बात बात पर रूठ जाने की

संजोता हूँ सपने तेरे संग
वक़्त बिताने के
तू ढूंढता है बहाने
मुझ से दूर जाने के
क्यों आदत हो गई .......

बेशक ये रिश्ता मेने बनाया है
दिल ने तेरे भी हामी भरी होगी
बेशक हमारी राहें जुदा होंगी
फिर भी ज़िंदा मोहब्बत होगी
क्यों आदत हो गई .......

गुजारिश है तुझ से इतनी मेरी
चाहे मुझसे मीलों दूर चले जाना
पर रिश्ता है जो, अंतिम सांस तक निभाना
किसी भी वहम को मध्य ना लाना
क्यों आदत हो गई .......

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मैं कुछ भी कह जाता हूँ बेचैनी में
गर तुझे है चैन मेरे दोस्त
मेरी बेचैनी ने जो किया है सवाल
उसका हल भी ढूंढ लाना



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कड़वे शब्द बोलता हूँ