उमंग भरे मन से
गए थे मिलने उनसे
गैर बता गए वो जब
वज्र सा लगा है सीने को
नजरों से जाने कितने वार करते है
बस जुबाँ से जाहिर होने से डरते है
जैसे चाहे हमे तोड़ मोड़ जाते है
खुद का दिल खोल, हमें बोझिल छोड़ जाते है
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कैसे लिखूँ कोई नग्मा मेरे हजूर
तेरी याद आते ही, हो जाता हूँ मजबूर
ज़ख्म सा हो गया है तू सीने में
बस नजरों का मरहम लगाये फिरता हूँ
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