दोस्त तुम बुरे नहीं
मेरा दृष्टिकोण बुरा है
अंदर से टूटा हूँ में कांच की तरह
तुझे चमक नजर आती टूटे दिल की
मुझे है की टुकड़ो की चुभन ने है मारा
किस्से और भी है मेरे ज़हन में
सुनाया मुझ से अब जाता नही
तू इस कदर रो पड़ा दिल भर के
मुझे से कोई आंसू छुपाया जाता नहीं
क्यों तोड़े दिल तुम्हारा
जब कुछ लगता ही नहीं हमारा
गम हो गर इतने तुझे
तो मेरे नाम कर दे
कुछ अन्धकार हुआ है
शायद मेरे दर्द रस्ता भूल जाए
और सकूँ आये सीने को।।
पढ़ लिखा नहीं तुझ सी किताबें मेने
पर ज़िन्दगी बढे करीब से पढ़ी है दोस्त
महसूस होता नहीं गर तुझे
फिर क्यों पलकें झपकता है
बारिश के डर से
शुक्रिया ए दोस्त
जो तूने ज़ख्मो को कुरेदा
जम कर दर्द है बरसे
इतनी समझता है गर दिल तुम्हारी बातें
कम्बखत मेरे दिल को भी समझाना
तुम से मिलने की जिद्द किये बैठा है
कसूर मेरा इतना
जिंद से ज्यादा चाहा तुझे
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