टूटे है अक्सर वो
जो मिटटी से बने है
शुक्रगुजार तेरे जो महफ़िल रोशन कर दी
वरना सब चोट खाये थे
खंजर का नाम ओ निशान ना था
खोल दे दिल के द्वार
इस पार है प्यार
क्यों फिर तकरार
महबूब के सितम तो देखो
एक तो हसीं
दूजा नाजनीन
कुछ इस कदर छुआ मन मेरा
की पाँव ज़मीन पर नहीं मेरे
खोट मेरी नजरो में मत निकालो
कुदरत ने रचा ही इतना हसीन तुमको
कोई मिसाइल इस सीने पर भी चला दो
बहुत आतंक मचाया इसकी धड़कनो ने
मेरे दर्द पर यूँ हँसता है वो
छाले नही कोई फूल हो
भरी सुबह बरसा जो बदरा
कहीं कोई अपना तो ना हो बिछड़ा
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