शनिवार, 31 जनवरी 2015

आखिरी पन्ना ज़िन्दगी का

क्यों ज़िन्दगी ऐसे इम्तिहान लेती है अक्सर बरसों के साथ आप को अपने प्रियजनों से अलग होना पड़ता है
आसपास होने के बावजूद दूरिया मीलो की हो जाती है।। इतना भी आसान नहीं होता एकदम ज़िन्दगी एक पटरी से दूसरी पटरी पर ले जाना।। बहुत कुछ छूट जाता है अंदर से कुछ घट रहा होता है।।

कल वेद सर की रिटायरमेंट थी दफ्तर में अक्सर वो रूखे व्यवहार के लिए जाने जाते थे।। कल उनकी बोलने की बारी आई तो उनका गला भर आया और उन्होंने साबित किया जो बाहर से जितना सख्त अंदर से उतना नरम होता है।। सभी की धारणा है की उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता शायद ये कोई नहीं सोचता होगा अकेले में वो भी उन सब बातों के मायने निकालते होंगे।। में खुश हूँ मुझे मौका दिया उन्होंने उनकी स्कूटर उनके घर पहुंचाने का।। सुखद अनुभव था यह मेरे लिए।।

बस एक गाना उनके नाम
कल तू चला जाएगा तो में क्या करूँगा
तू याद बहुत आएगा तो में क्या करूँगा

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कड़वे शब्द बोलता हूँ