शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

नौकरी नहीं सांप सीढ़ी हर कदम गिराने को है सपोले

आज का दिन भी एक बुरा दिन साबित हुआ
जिस जोश से सुबह सुबह एजेंडा तैयार कर के सेट बना कर रखे थे।। उम्मीद तो ये थी की सराहना होगी मगर हुआ इसके विपरीत।। विकर्ण मानसिकता वाले जिला सलाहकार ने इतने अनर्गल आरोप लगाये जो निराधार थे।

दो ही कारण हो सकते है या तो उनके कोई कान भरता है या फिर उनको ख़ुद पर शर्म आती होगी की वो इतना बुरा कार्य करते है उनके साथ कोई साफ़ छवि कैसे रह सकता है।। क्योंकि सरकारी दफ्तरों में 90 प्रतिशत लोग खाने की फिराक में होते है कुछ मांग कर खाते कुछ और बहानो से।।

मुझे घृणा तब होती है जो व्यक्ति मुझ पर आरोप लगा रहा है वो बहाने से कभी किसी से कुछ मांगता है कभी कुछ।। और मुझे कहता है की तेरा क्या स्वार्थ है जो सब के काम करता है।। अरे मुर्ख व्यक्ति जिसे खाना होता है वो काम करने की बजाये बहाने लगाएगा।। ताकि उसे कुछ मिले और वो काम करे। मेरी प्रकृति है की जिस कार्य को दिया जाता है में सब भूल उस कार्य को पूर्ण करना का पर्यत्न करता हूँ । बैंक में खातो का, स्थापना शाखा, bpl आदि कार्यो का मेरे से कोई सम्बन्ध नहीं फिर भी में उन सब का कार्य करता हूँ। क्या उन लोगो का कार्य भी में किसी स्वार्थ से करता हूँ। एक वर्ष में इतना भी नहीं जान पाया वो व्यक्ति वरिष्ठ होने के सम्मान का भी हकदार नहीं इस तरह की हरकतों से वो मेरी नजरो में अपना सम्मान गिराएगा।। अगर मुझे गलत तरीको से पैसे कमाने का तनिक भी शौक होता तो यूँ सुबह 5 बजे घर से से निकल कभी बस पकड़ो कभी कदमो से दूरिया नाप दफ्तर 2 घंटे पहले पहुंचना और शाम को फिर बस निकल जाने पर 5 km पैदल चलने की आवशयक्ता नहीं होती।। में भी एक बाइक ले सकता और समय समय पर आता।। में जितना अपने क्रोध को दबाकर खुश रहकर काम करने की कोशिश करता हूँ उतना ही संकीर्ण विचारो वाले व्यक्ति मुझे परेशां करते है।। में तो प्रभु से निवेदन करूँगा ऐसे वक़्त मुझे सहन शक्ति देना क्योंकि क्रोध में अक्सर इंसान वो कदम उठाता है जिसका शायद जीवन भर उसे मलाल रहता है।। अब कल शनिवार पूरा दिन कोई काम नहीं पर निजी स्वार्थ के चलते दफ्तर में बुलाया जाता है और मानसिक शोषण किया जाता है।।

एक तरफ सरकार कम वेतन पर कच्चा कर्मचारी रखती है ऊपर से पक्के कर्मचारी से अधिक कार्य लेकर मानवाधिकार की बात करते है।। इस देश में इन्साफ तो सिर्फ किताबो की कहानी बनकर रह गया है।। चापलूस व्यक्ति का जमाना है काम करने वाले ने तो फिर भी चोट खाना है। ज़मीर नाम का शब्द अब किसी इंसान के शब्दकोष का हिस्सा नहीं रह गया।।

आप में से कोई अच्छा सुझाव दे सके तो अवशय दें आप की अति कृपा होगी

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चलता हूँ कुछ लम्हे सकूँ के है
कल फिर नरक में जाना है
जहरीले शब्दों को पीना है
और कंठ नीला कर आना है
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