चाबुक ना तू मेरे लिए
मोहब्बत की अर्जी थी
गुलामी की नहीं
कोई शौक नहीं मुझे मोहब्बत का
कम्बखत दिल चंचल है थोडा
बदस्तूर जारी नफरतो का दौर
वो आज भी नजरें चुरा जाते है
हवा बन गुजरी वो साँसों से
उसकी महक से बदन खिल उठा
कुंठा से भरा मेरा मन
तूने उज्जवल कर दिया
खंजर चला कर सीने पर
साँसे निकल जाने की शिकायत करते हो
खंजर चला कर सीने पर
साँसे निकल जाने की शिकायत करते हो
कोई भूल हमे भी याद कर ले
हम तो किसी को भूलते ही नहीं
जंगल सी ख़ामोशी क्यों है
कोई इंसान नही बसता क्या?
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