मांगता हूँ हर सांस में सदबुद्धि तुझ से ओह रब्बा
यूँ ना मुझ को शैतान बना
ह्रदय को बेध जाते कठोर शब्द ज़माने के
मुझ को भी ना ऐसा कठोर बना
में तो जीवन में बसना चाहता हूँ
यूँ ना मुझको शैतान बना
ख़ामोशी लूट लेती खुशिया सबकी
मुझको ऐसा ना खामोश बना ओह रब्बा
यूँ ना मुझ को शैतान बना
दर्द उनको भी होता है जो दर्द देता है
उनके दर्द से ना अन्जान बना ओह रब्बा
यूँ ना मुझको शैतान बना।।
इतनी ठोकरे देने के लिए शुक्रिया, ए-ज़िन्दगी.. चलने का न सही,,, सम्भलने का हुनर तो आ गया.
जवाब देंहटाएंशुक्र है किसी को तो सम्भलना आया
जवाब देंहटाएंहम तो आज भी लड़खड़ा जाते है